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‘आप क्या हैं मुझे पता भी है, और मिरे पास आईना भी है’

- अहल-ए-सुख़न ने स्वतंत्रता दिवस पर सजाई शायरी की महफ़िल, अपनी रचनाओं से शहीदों की शहादत को किया नमन

देहरादून: अहल-ए-सुख़न ने शुक्रवार को स्वतन्त्रता दिवस पर टर्नर रोड स्थित सुपर मून स्कूल में शेरी नशिस्त का आयोजन किया, जिसमें शायरों और कवियों ने अपनी रचनाओं से शहीदों की शहादत को नमन किया, वहीं समाज की विसंगतियों पर तंज भी कहे।

कार्यक्रम की शुरुआत फरीदाबाद से आए शायर नरेंद्र शर्मा और मेजबान और संस्था के सरपरस्त इक़बाल आज़र ने शम्आ रोशन कर की। युवा शायर अमन रतूड़ी ने अपनी शायरी से खूब वाहवाही लूटी।

इम्तियाज़ कुरैशी के दो शेर ‘रोज़ अहल-ए-सुख़न की महफ़िल में। कुछ हसीं पल गुज़ारती है ग़ज़ल। यारो हम हो गए ग़ज़ल वाले, ऐसे हम को पुकारती है ग़ज़ल’ को खूब सराहा गया। राजकुमार राज़ ने अपने शेर’ बेसबब छोड़ के जाने वाले, हम नहीं तुझको बुलाने वाले। शहर से आये हुए लगते हैं, गाँव में धूल उड़ाने वाले।’ से तालियां बटोरी। युवा कवयित्री कविता बिष्ट ने अपनी कविता से शहीदों को नमन किया।

वरिष्ठ शायर बदरुद्दीन ज़िया ने अपने शेर ‘आप क्या हैं मुझे पता भी है, और मिरे पास आईना भी है। ‘ से महफ़िल लूट ली। दर्द गढ़वाली के चार मिसरे ‘हुई है मुहब्बत हमें शायरी से, निभाएं कहां तक भला ज़िंदगी से। कोई देवता हैं तो कोई फरिश्ता, कभी तो महिलाओं किसी आदमी से’ को भी खूब दाद मिली। वरिष्ठ शायर शादाब मशहदी ने इस शेर ‘सारे ही आस्तीन में घुट-घुट के मर गये, मैंने किसी को ज़िंदा निकलने नहीं दिया’ से खूब वाहवाही बटोरी। वरिष्ठ शायर इक़बाल आज़र ने अपने शेर  ‘मैंने सब कुछ कह दिया आँखों में आँखें डाल कर, तुम भी कुछ बोलो ज़रा आँखों में आँखें डाल कर। ‘ सुनाकर महफ़िल को बुलंदी पर पहुंचा दिया। इसके अलावा, कुमार विजय ‘द्रोणी’, हरेंद्र माझा और राही नहटौरी ने भी अपनी रचनाओं से तालियां बटोरी।

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