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तो भैया, अब चाय-पकौड़ी की दुकानों में खोजें रोजगार!  

- उत्तराखंड के बकलौल मंत्रियों के लिए शर्मनाक खबर, सरकारी नौकरी की भर्ती की दौड़ में पिछड़े उत्तराखंड के युवा, राज्य के गांवों में पंजाब और हरियाणा के युवा बांटेंगे चिट्ठी

देहरादून:  उत्तराखंड के युवाओं के लिए ही नहीं, बल्कि शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के लिए भी यह खबर शर्मनाक है और होनी भी चाहिए। खबर यह है कि उत्तराखंड के पोस्ट आफिस में काम करने के लिए हरियाणा और पंजाब के युवा चयनित हुए हैं, जबकि सरकारी नौकरी की इस दौड़ में उत्तराखंड के युवा पिछड़ गए हैं। राज्य सरकार के बकलौल मंत्रियों के बेहतर शिक्षा और रोजगार के दावों के बीच आई यह खबर सचमुच चिंता का विषय है।

   दरअसल, इसी वर्ष मई में पोस्ट आफिस में बीपीएम (ब्रांच पोस्ट मास्टर) और एबीपीएम (असिस्टेंट ब्रांच पोस्ट मास्टर) के पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई थी। सितंबर में 160 पदों पर भर्ती प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है। इनमें से 157 पदों पर हरियाणा और पंजाब के युवक चयनित हुए हैं, जबकि सिर्फ तीन पदों पर उत्तराखंड के युवा और वह भी अनुसूचित जनजाति के कोटे से चयनित हुए हैं। चयन मेरिट के आधार पर हुआ है, इसलिए यह अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं है कि उत्तराखंड में किस तरह की शिक्षा दी जा रही है और युवाओं की शैक्षिक योग्यता शैक्षिक पैमाने पर कितनी खरी उतर रही है। हालांकि, इस खबर में इस तरह का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि इस भर्ती प्रक्रिया में उत्तराखंड के सामान्य जाति के उम्मीदवार भी शामिल हुए थे या नहीं।

  देहरादून से प्रकाशित एक दैनिक अखबार में गोपेश्वर से छपी खबर में पोस्ट आफिस के एक अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि इन पदों के लिए चयनित हरियाणा और पंजाब के कई युवाओं के गणित विषय में 100 में से 99 नंबर हैं, लेकिन इन्हें प्रतिशत तक निकालना नहीं आता है। यही नहीं, गढ़वाली बोली-भाषा का भी इन्हें ज्ञान नहीं है, ऐसे में यह रुद्रप्रयाग और चमोली जिले के गांवों में कैसे काम करेंगे, यह समझ से परे है। हैरान कर देने वाली इस खबर को लेकर विश्व गुरु बनने की राह पर अग्रसर होने का दावा करने वाले देश के कर्णधारों और बयानवीर मंत्रियों से यह तो पूछा ही जा सकता है कि राज्य की एक बड़ी आबादी के ‘अक्षम’ युवाओं के लिए उनके पास क्या योजना है? हालांकि, पोस्ट आफिस के लिए निकली इन भर्तियों को मानक माना जाए, तो विश्व गुरु का राग अलापने वालों का चाय-पकौड़ी की दुकानों को रोजगार में शामिल करने की बात करना बेमानी नहीं है। इस खबर के विश्लेषण के दौरान राज्य में युवाओं को दी जाने वाली शिक्षा पर सवाल उठना या उठाना भी लाजिमी है। यह सवाल भी अपनी जगह है कि मोटी-मोटी फीस लेने वाले उच्च शिक्षण संस्थान युवाओं को एक अदद नौकरी लायक शिक्षा भी क्यों नहीं दे पा रहे हैं? युवाओं के साथ ही शिक्षा मंत्री को भी इस सवाल पर मंथन की जरूरत है कि युवाओं को उनके भविष्य के लिए किस तरह की शिक्षा मुहैया कराई जानी चाहिए?

 

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