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साक्षात्कार: जीवन का मतलब समझाते हैं कवि सम्मेलन: श्रीकांत श्री 

- डॉ. हरिओम पंवार की कविता सुनने के बाद कविता के क्षेत्र में आया, मंचों पर टिकने को कविता का मंचन आना जरूरी, चार पुस्तकें प्रकाशन के लिए तैयार, युगनायक श्रीराम पर रचित पहली पुस्तक का लोकार्पण इसी साल दिसंबर में करने की योजना

          ओज के अंतर्राष्ट्रीय हस्ताक्षर हरिओम पंवार की छत्रछाया में मंच पर कविता को सुशोभित करने वाले युवा कवि श्रीकांत श्री का मानना है कि बच्चों और युवा पीढ़ी में समझ पैदा करने के लिए कवि सम्मेलन जरूरी हैं। कवि सम्मेलन बच्चों में संस्कार पैदा करते हैं। उन्हें जीवन का मतलब समझाते हैं। मंच पर कविता के गिरते स्तर से वह इत्तेफाक नहीं रखते। उनका मानना है कि आज भी मंचों पर अच्छी कविता है, लेकिन मंचों पर वही टिक पाएगा, जो कविता का मंचन करना जानता हो। ऐसे ही तमाम सवालों को लेकर शब्द क्रांति लाइव डाट काम ने देहरादून में जीटीएम स्थित आवास पर युवा कवि श्रीकांत श्री से लंबी बातचीत की। इसी बातचीत के प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं।

सवाल: आपकी साहित्यिक यात्रा कब और कैसे शुरू हुई?

जवाब: मैं एक्सीडेंटल पोएट हूं। दरअसल, मैं वर्ष 2003 में मेरठ महाविद्यालय में मैं एलएलबी की पढ़ाई के लिए आया था। इसी दौरान संयोजक से डिबेट कंपिटीशन में भागीदारी की बात की तो उन्होंने मना कर दिया और कहा कि यदि स्वरचित काव्य पाठ में हिस्सा लेना चाहें, तो ले सकते हैं। मैंने एक कविता पढ़ी और तीसरा स्थान हासिल किया। इसी बीच, मैं ओज के सशक्त हस्ताक्षर हरिओम पंवार की ओर से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर मेरठ में कराए जाने वाले कवि सम्मेलन को सुनने गया, तो मेरे मित्रों ने हरिओम पंवार जी से कहा,  सर यह श्रीकांत है और यह भी कविता पढ़ना चाहता है। पंवार जी के सामने कविता पढ़ी, तो दोस्तों ने खूब तालियां बजाई। पंवार जी को भी कविता अच्छी लगी, तो उन्होंने मंच पर मुझे बिठा दिया और दूसरे नंबर पर कविता पढ़वाई। बाद में घर पर बुलाया और न केवल खाना खिलाया, बल्कि पांच सौ रुपए भी बतौर मानदेय दिए। उस कवि सम्मेलन में शैलेश लोढ़ा थे, कमलेश शर्मा थे, प्रवीण शुक्ला थे, पंवार जी के अलावा सुनील जोगी जैसे बड़े कवि थे। सोचा कि यह तो अच्छा काम है कि कविता भी पढ़ो और पैसे भी मिलेंगे। जहां तक कविता की बात है मैंने डॉ. हरिओम पंवार को मेरठ में आकर पहली बार देखा। बड़ौत कालेज में वर्ष 2001 में बीएससी कर रहा था। बस स्टैंड पर एक कविता सुनी ‘डोली दुल्हन कहारों में, सूरज चंदा तारों में, गांव गली गलियारों में, भाषण कविता नारों में, धीरे धीरे भोली जनता है बलिहारी, ऐसा न हो देश जला दे ये चिंगारी..’। यह कविता मुझे बहुत पसंद आई, तो दो कैसेट खरीद कर घर ले आया। मेरे पिताजी कविता प्रेमी थे, उन्होंने देखा तो कहा यह डा. हरिओम पंवार हैं। बस कविता का शौक चढ़ गया और इस क्षेत्र में आ गया।

सवाल: आपका कविता लिखने का उद्देश्य क्या है। क्या आप मानते हैं कि कविता समाज को बदल सकती है?

जवाब: जी, बिल्कुल। समाज में परिवर्तन केवल कविता ही कर सकती है। वाल्मीकि को क्रोंच पक्षी के कलरव ने कवि बना दिया। मैंने ख़ुद लिखा है ‘किमकर्तव्य विमूढ़ हुए जब पार्थ धर्म के रण में, तब गीता का ज्ञान कराकर बुद्धि फेरी क्षण में।’ यह कविता ही है, जो मनुष्य को देवात्मा बनाने की प्रक्रिया में ले जाती है। नीरज जी ने भी कहा है ‘आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य, मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य।’ वेद वाक्य क्या है, गीता क्या है, रामायण क्या है, कुरान क्या है कविता ही तो है। मैं हमेशा कहता हूं यदि मनुष्य को अंबर तक जाना है, मनुष्य को देवता बनना है, तो उसकी पहली प्रक्रिया है कवि होना। मनुष्य भाग्यशाली हो सकता है, लेकिन कवि हैं जो सौ-सौ भाग्य लेकर पैदा होता है। ‘मेघदूत लिखने वाले हम कालिदास की पीढ़ी, धरती से अंबर तक जाने की कविता है सीढ़ी, मम्मट ने लिखा प्रकाश जो, फिर दिखलाना होगा, कवि हैं तो कवि धर्म को हमें निभाना होगा’। चंद्रवरदाई दो पंक्ति कहते हैं और पृथ्वीराज से मोहम्मद गौरी की हत्या करवा देते हैं। कविता की ताकत यह है। अर्जुन ने तो धनुष वाण ही रख दिए थे, लेकिन गीता का ज्ञान कराया कि तू क्या है। बंकिम चटर्जी ने वंदे मातरम लिखा, तो वह राष्ट्रीय गीत बन गया और इसे सुनकर अंग्रेजों को भागना पड़ा। कविता बहुत महत्वपूर्ण चीज है।

सवाल: आजकल के कवि सम्मेलन पर आरोप लगता है कि वहां पर चुटकुलेबाजी होती है और कहा जाता है कि जनता ऐसा सुनना चाहती है?

जवाब: जनता पर यह आरोप ग़लत है। कविता कालजयी है और कविता ही लंबे समय तक चलने वाली होती है। लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ चुटकुलेबाज हमारे मंच पर आ गए हैं, लेकिन चुटकुले की आयु कितनी होती है, एक साल, दो साल, तीन साल..। लेकिन कविता की आयु तो अनंत है। चुटकुलेबाज को कहा जाता है कि उसने बढ़िया चुटकुला सुनाया था, लेकिन कविता सुनाने वाले के लिए कहा जाता है कि उसने अच्छी कविता सुनाई है। यही कविता और चुटकुले में अंतर है। कवि सम्मेलन को वर्तमान में बचा रही है तो केवल कविता बचा रही है। लेकिन, कुछ स्वार्थी तत्वों ने जनता को अपनी बपौती समझ लिया है और उसे डालडा पिला रहे हैं, लेकिन कविता तो देसी घी है।

सवाल: अब तक आपके कितने कविता संग्रह छपे हैं और क्या कोई नया कविता संग्रह आने वाला है?जवाब: नहीं, मेरा अभी तक कोई कविता संग्रह नहीं आया है। मैं नई पीढ़ी को अक्सर कहा करता हूं कि बहुत सारे लोग आपको कविता संग्रह प्रकाशित करने के लिए प्रोत्साहित करने वाले होते हैं, लेकिन मैं उन्हें हतोत्साहित करता हूं। जब किसी कविता संग्रह का लोकार्पण होता है तो वह समाज की वस्तु हो जाती है, मेरा मानना है कि जब तक हममें कविता लिखने का शऊर पैदा नहीं होगा, तब तक हमें कविता संग्रह नहीं छपवाना चाहिए। मेरे चार कविता संग्रह तैयार हैं। युगनायक श्रीराम पर पुस्तक तैयार है, वीर रस की कविता पर पूरी पुस्तक तैयार है। मैंने ऐतिहासिक चरित्र पर बहुत कविताएं लिखी हैं। मुझ पर पुस्तक छपवाने के लिए कई मित्रों का दबाव है। अब सोच रहा हूं दिसंबर तक अपनी पहली पुस्तक युगनायक श्रीराम पर लोक को समर्पित कर दूं।

सवाल: आपके प्रिय कवि कौन से हैं, जिनसे प्रेरणा लेकर अपने सोचा कि मुझे भी इस क्षेत्र में जाना है।जवाब: डॉ. हरिओम पंवार। उनकी पहली कविता मैंने कैसेट के माध्यम से सुनी थी। वह कभी खुद को कवि नहीं मानते। उनसे विनम्र व्यक्ति मैंने इस कवि सम्मेलन की दुनिया में नहीं देखा। वह अक्सर कहते हैं मैं प्रसिद्ध कवि हूं सिद्ध कवि नहीं हूं। वह कहते हैं मेरी कविताओं में बहुत कमियां हैं, जैसा अन्य कवि नहीं मानते। यह उनकी विनम्रता है। हरिओम पंवार कोई परिचय का मोहताज नहीं है। विश्व विख्यात वीर रस के कवि हैं और मैं आज भी मानता हूं हरिओम पंवार के बाद जब 10 पायदान खाली हो जाएं, तब जाकर कोई उनके बराबर खड़ा होने की सोच सकता है। हरिओम पंवार के अलावा मैं गीतकारों का घोर प्रशंसक रहा। मुझे नीरज जी बहुत अच्छे लगते थे। उर्मिलेश शंखधर जी बहुत अच्छे लगे। वर्तमान पीढ़ी में देखेंगे, तो विनीत चौहान बहुत अच्छा लिख रहे हैं। अशोक चारण बहुत अच्छे कवि हैं। नई पीढ़ी में मुझसे बहुत छोटी उम्र के कवि आए हैं। सुमित ओरछा है। मनवीर मधुर, अमित शर्मा, मोहित शौर्य बहुत अच्छा लिख रहा है वीर रस में। अर्जुन सिसौदिया हमारे कुनबे के बहुत अच्छे कवि हैं। भीलवाड़ा के योगेंद्र शर्मा हैं, जो बहुत शानदार कवि हैं। निश्चित रूप से मेरे ऊपर हरिओम पंवार का बहुत प्रभाव रहा है।

सवाल: उत्तराखंड में कभी कवि सम्मेलन का बहुत अच्छा माहौल था। ओएनजीसी जैसे संस्थान कवि सम्मेलन कराते थे, लेकिन करीब तीन साल से उत्तराखंड सरकार ने कवि सम्मेलन के आयोजन का सिलसिला बंद कर दिया है। क्या आपको नहीं लगता कि साहित्य की उपेक्षा हो रही है। गोष्ठियां हो रही हैं, लेकिन कवि सम्मेलन नहीं हो रहे। उत्तराखंड में कवि सम्मेलन का पहले सा माहौल बनाने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब: मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूं। गोष्ठी और कवि सम्मेलन में एक मूलभूत अंतर होता है। गोष्ठी एक प्रयोगशाला है, जहां पर कवि एक-दूसरे को कविता सुनाते हैं और सुझाव भी दे सकते हैं। जहां तक सरकार की बात है, ओएनजीसी की बात है, तो कवि सम्मेलन होने चाहिए। एक तरफ हम कहते हैं कि समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। नई पीढ़ी में संस्कार नहीं हैं। नई पीढ़ी में संस्कार लाने का काम कविताएं ही करती हैं। कक्षा आठवीं में एक प्रश्न होता था, अपनी पाठ्य पुस्तक में से एक कविता की आठ लाइन सुनाएं और सारी कविताएं तुकांत होती थी, छंदबद्ध होती थी। मैं यह नहीं समझ पा रहा कि कब छंदबद्ध कविता की जगह अतुकांत कविताओं ने ले ली। मैं अतुकांत कविताओं का विरोधी नहीं हूं, लेकिन अतुकांत कविताओं के नाम पर जो कूड़ा परोसा जा रहा है, मैं उसका विरोधी हूं। जब कवि सम्मेलन होता है, तो एक बड़े समाज तक कविता जाती है। साहित्य होगा तो समाज बचेगा, समाज को बचाने के लिए साहित्य को बचाना अनिवार्य है। साहित्य को बचाना सरकार का काम है। पुराने समय में राजा के दरबार में एक कवि होता था। इस कवि का काम राजा का गुणगान करना नहीं होता था, बल्कि वह समाज की कुरीतियों को भी राजा तक पहुंचाता था। पुराना किस्सा है, एक बार नेहरू जी संसद भवन की सीढ़ी चढ़ रहे थे कि अचानक गिरने लगे, इस पर दिनकर जी ने उन्हें संभाल लिया। नेहरू जी ने दिनकर जी से कहा अगर आप मुझे नहीं संभालते तो मैं गिर जाता। इस पर दिनकर जी का जो जवाब था, वह उत्तराखंड सरकार को भी सुनना चाहिए। उन्होंने कहा जब-जब राजनीतिक मूल्य गिरेंगे या सरकारें गिरेंगी, तब-तब कवि उसको सहारा देगा। कवि का काम केवल सरकारों का विरोध करना नहीं होता। कई बार लगता है कि कवि सरकार का विरोध कर रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है। कवि का काम है सरकार का सही रूप समाज को दिखाना और समाज की समस्याएं सरकार तक पहुंचाना। इस काम को हमें करना पड़ेगा और सरकारों को साथ देना होगा। ओएनजीसी को साथ देना होगा। विरासत में कवि सम्मेलन नहीं होता। हिंदी पखवाड़ा में एफआरआई समेत तमाम सरकारी विभाग कवि सम्मेलन नहीं कराते। भाषा संस्थान वर्ष भर में एक भी कवि सम्मेलन नहीं कराता। केवल निबंध प्रतियोगिता कराकर सरकारी पैसे की बंदरबांट की जा रही है।

सवाल: इन दिनों अच्छा साहित्य बाजार में नहीं आ रहा है। प्रकाशक कोई भी किताब छाप दे रहा है, उस किताब में क्या सामग्री है, प्रकाशक यह नहीं देख रहा। इससे यह नहीं लगता कि पैसे कमाने का उद्देश्य लेकर ही प्रकाशक चल रहे हैं?

जवाब: प्रकाशक का यह व्यवसाय है। उसे इससे कोई मतलब नहीं कि उसके पास क्या सामग्री आ रही है और ऐसा अभी नहीं, पहले से ही चल रहा है। अब तो किताबों में कई गलतियां जा रही हैं। प्रकाशक प्रूफ रीडिंग तक नहीं कराता। इसीलिए मैं कहता हूं कि पहले किसी बड़े साहित्यकार से सलाह लें लेनी चाहिए और उसके बाद ही किताब छपवानी चाहिए, ताकि अच्छी सामग्री लोगों को पढ़ने को मिल सके।

सवाल:  आप नए कवियों को क्या संदेश देना चाहेंगे? क्या कविता के क्षेत्र में भविष्य बन सकता है? मेरी आदरणीय बुद्धिनाथ मिश्र और असीम शुक्ल से बात हुई थी, तो उन्होंने कहा था कि कविता के साथ नौकरी भी जरूरी है, क्योंकि इससे रोजी-रोटी नहीं चल सकती। आप क्या कहेंगे?

जवाब: दोनों वरिष्ठ कवि जिस समय की बात कर रहे हैं, उस समय ऐसा ही था, लेकिन अब नहीं है। वर्तमान में मैं कई ऐसे कवियों को जानता हूं, जो फुलटाइम केवल कविता ही कर रहे हैं और अच्छा पैसा कमा रहे हैं। चराग जैन, जिन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी कविता के लिए। विनीत चौहान, शंभू शिखर, कमल आग्नेय, प्रवीण शुक्ला, कुमार विश्वास, यह सब वह लोग हैं, जिन्होंने अच्छी नौकरियां छोड़ कविता को चुना और फुलटाइम कविता कर रहे हैं। स्वयं श्रीवास्तव और मणिका दुबे। कविता में आजकल खूब पैसा है। पैसा देने वालों की कोई कमी नहीं है। जैसा कि आपने पहले भी कहा। कविता और चुटकुला। लेकिन, कविता एक अलग चीज है और मंच का क्षेत्र अलग है। मंच का अर्थ ही मंचन करना है। जो अपनी कविता का ठीक से मंचन कर सकता है, वह इस कवि सम्मेलन की दुनिया में आए और जो ऐसा नहीं कर सकता, वह न आए। जहां तक आपने कहा देहरादून में नई पीढ़ी में क्या संभावनाएं हैं। मैं देहरादून ही नहीं पूरे उत्तराखंड की बात करता हूं। यहां प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। मैं हर वर्ष देहरादून में एक कार्यक्रम करता हूं दस्तक नई पीढ़ी की, जिसमें 30 साल तक के कवि आते हैं, जिनसे हम कविता भी पढ़वाते हैं और पैसे भी देते हैं। बहुत सारे मंच, ओपन माइक वाले हैं, जो बच्चों को कविता पढ़वाने के लिए पैसा लेते हैं, जबकि हम पैसा देते हैं, जो सिस्टम होना चाहिए। कवि कविता पढ़ रहा है, तो उसे उसका मानदेय मिलना ही चाहिए। मैं एक बार फिर कहूंगा कि कविता करते रहिए, लेकिन मंचों पर आना है, तो उसके लटके-झटके तो आने ही चाहिए, क्योंकि आपको पब्लिक को बांधकर रखना है।

(साक्षात्कारकर्ता: लक्ष्मी प्रसाद बडोनी, देहरादून 09455485094)

 

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