‘सच में थोड़ा झूठ मिलाना ठीक रहेगा’
- मूलनिवासी सभ्यता संघ की ओर से ओएफडी जूनियर क्लब में हुआ मुशायरा एवं कवि सम्मेलन - शायरों ने प्यार-मुहब्बत के साथ-साथ सामाजिक विसंगतियों पर भी किया प्रहार

देहरादून: मूलनिवासी सभ्यता संघ की ओर से संयुक्त जयंती समारोह के उपलक्ष्य में शनिवार को ओएफडी स्थित जूनियर क्लब में आयोजित मुशायरा एवं कवि सम्मेलन में शायरों ने जहां प्यार-मुहब्बत की रचनाएं पढ़ी, वहीं सामाजिक विसंगतियों पर भी प्रहार किया।
चर्चित कवि कुमार विजय द्रोणी की ग़ज़ल के ये शेर ‘रफ्ता-रफ्ता ये मुश्किल वक़्त भी निकल जाएगा, फिर नयी सुबह होगी, सारा मंज़र बदल जाएगा। जो नहीं किया तूने गुनाह उसका गिला न कर, मंज़िल कठिन होगी पर रस्ता निकल आएगा।’ को खूब पसंद किया गया। युवा शायर राजकुमार राज़ ने अपने दो शेरों ‘सच में थोड़ा झूठ मिलाना ठीक रहेगा, शायद ये नुस्ख़ा अपनाना ठीक रहेगा। नए ज़माने के कछुओं ने हमें बताया, ख़रगोशों पर दाँव लगाना ठीक रहेगा।’ सुनाकर जमकर तालियां बटोरी। युवा शायर इम्तियाज़ अकबराबादी ने दो शेर ‘मंज़िलों पर बुला रही है मुझे
कोई आवाज़ आ रही है मुझे। मेरा उस्ताद कोई एक नहीं, सारी दुनिया सिखा रही है मुझे।’ सुनाकर जमकर तालियां बटोरी।
शायर दर्द गढ़वाली ने चार मिसरे ‘देखा-देखी लब पर ताले पड़ गए हैं, अब तो आंखों में भी जाले पड़ गए हैं। दो रोटी की खातिर इतना दौड़े हम, देखो पेट तलक़ में छाले पड़ गए हैं।’ से श्रोताओं की वाहवाही लूटी।
शायरा मोनिका मंतशा की तरन्नुम में प्रस्तुत ग़ज़ल ‘दरमियां जंग कैसी जारी है, दीन को लेके मारा मारी है। बात इंसानियत की कौन करे, सब पे मज़हब की ही ख़ुमारी है।’ को भी खूब सराहा गया। इसके अलावा, महेंद्र सिंह कामा ने अपनी कविता ‘युग बदलना है तो क्रांति की जरूरत आज है, मुश्किलों से जो लड़ें सर पर उनके ताज है।’ को भी खूब सराहा गया।
शिव शंकर कुशवाहा का ये शेर ‘आज कुछ पास आ बैठे हो कोई गुफ़्तगू है क्या, हवा तेजी से आ रही ला रही कोई खुशबू है क्या।’ भी खूब पसंद किया गया। मीना रवि की रचना ‘संविधान निर्माता के योगदान की गूंज आज भी दिलों में है।’ सुनाकर सबका दिल जीत लिया। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।