उत्तराखंडकाम की खबररीति-रिवाज

करवा चौथ: सजना है मुझे सजना के लिए…

-राजधानी देहरादून समेत समूचे उत्तराखंड में बाजारों में रौनक, दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को चांद को अर्घ्य देकर व्रत खोलती है सुहागिनें, पति की लंबी उम्र के लिए मांगती है दुआ

देहरादून: करवा चौथ को लेकर शनिवार को राजधानी देहरादून समेत समूचे उत्तराखंड में बाजारों में रौनक छाई रही। सुहागिनों ने बाजार से करवा और अन्य सामान खरीदा। चूंकि करवा चौथ का त्योहार सुहागिनों का त्योहार होता है, इसलिए इस त्योहार में श्रृंगार का भी बहुत महत्व होता है। सभी महिलाएं इस त्योहार में सुंदर दिखना चाहती हैं।

इस त्योहार में हर महिला अपने हाथों में मेहंदी भी लगाती है। हाथों में लगी मेहंदी का गहरा रंग सुहागिनों के लिए शुभ माना जाता है। इसीलिए मेहंदी लगाने को लेकर ब्यूटी पार्लर और पंडालों में भीड़ रही।

इस साल करवाचौथ का पवित्र त्योहार 20 अक्टूबर रविवार को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, करवाचौथ का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिए व्रत रखती हैं। इस अवसर पर देशभर में महिलाएं विभिन्न रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करते हुए करवाचौथ मनाती हैं।

सरगी का महत्व और विधि-विधान—

करवाचौथ व्रत का एक प्रमुख भाग है “सरगी”। इसे सूर्योदय से पहले ग्रहण किया जाता है और इसे सास अपनी बहू को देती हैं। सरगी में मेवे, फल, मिठाई और श्रृंगार का सामान शामिल होता है। जिन परिवारों में सरगी की परंपरा नहीं होती, वहां महिलाएं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि लगने के बाद निर्जला व्रत रखती हैं। सूर्योदय से पहले भोजन के बाद दिनभर अन्न-जल का त्याग करना इस व्रत का मुख्य नियम है।

सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व—

करवाचौथ पर सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है। महिलाएं अपने सुहाग की समृद्धि के लिए मेहंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ियां, बिंदी और बिछिया  जैसे 6 मुख्य श्रृंगार धारण करती हैं। ये प्रतीक उनकी वैवाहिक स्थिति को दर्शाते हैं और इन्हें धारण करके करवा माता की विधिवत पूजा की जाती है, जिससे सौभाग्य में वृद्धि होती है।

दान का महत्व—

करवाचौथ की पूजा के बाद दान देना भी आवश्यक माना गया है। महिलाएं एक थाली में चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, शीशा, कंघी, रिबन और शगुन का सामान रखकर अपनी विवाहित सास, जेठानी या किसी वरिष्ठ महिला को दान करती हैं। इसे सौभाग्यवर्धक माना जाता है और इससे परिवार में समृद्धि और खुशहाली आती है।

पूजा की दिशा और व्यवस्था—

करवाचौथ की पूजा करते समय दिशा का भी ध्यान रखना चाहिए। व्रती महिलाओं को पूर्व दिशा की ओर मुख करके करवा माता की पूजा करनी चाहिए और करवा माता का मंदिर भी पूर्व दिशा में ही स्थापित करना चाहिए। इससे पूजा का सकारात्मक प्रभाव बढ़ता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।इस वर्ष के करवाचौथ पर सुहागिनें पूरी श्रद्धा के साथ अपने पति की दीर्घायु और दांपत्य जीवन की खुशियों के लिए व्रत रखेंगी। इस त्योहार की धार्मिकता और प्रेमपूर्ण भावना इसे भारतीय संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा बनाती है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button