मुशायरे की कामयाबी की सनद थे ख़ुमार बाराबंकवी

कुछ शायर मुशायरों में ऐसे होते हैं जिनकी मौजूदगी मुशायरे की कामयाबी की सनद मानी जाती है। ऐसे ही एक शायर थे ख़ुमार बाराबंकवी। वह जिस मुशायरे में अपना कलाम पेश करते दर्शक और श्रौताओं को अपना प्रशंसक बना लेते। 20 सितंबर 1919 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में पैदा हुए ख़ुमार बाराबंकवी का असली नाम मोहम्मद हैदर ख़ान था। शराब के शौक़ीन और मधुर आवाज़ के मालिक ख़ुमार मुशायरों में तरन्नुम में पढ़ना पसंद करते थे। ख़ुमार की मधुर आवाज़ सुनकर लोग उन्हें बड़े ग़ौर से सुनते थे। पाठकों के लिए आज हम पेश कर रहे हैं ख़ुमार बाराबंकवी के 20 मशहूर शेर-
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही
जज़्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
——–
वो जान ही गए कि हमें उन से प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हम से पूछिए
अकेले हैं वो और झुँझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही
जज़्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही
झुँझलाए हैं लजाए हैं फिर मुस्कुराए हैं
किस एहतिमाम से उन्हें हम याद आए हैं
ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए
ख़ुदा बचाए तिरी मस्त मस्त आँखों से
फ़रिश्ता हो तो बहक जाए आदमी क्या है
मोहब्बत को समझना है तो नासेह ख़ुद मोहब्बत कर
किनारे से कभी अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ नहीं होता
मुझे तो उन की इबादत पे रहम आता है
जबीं के साथ जो सज्दे में दिल झुका न सके
सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है
तेरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
हुस्न की मेहरबानियाँ इश्क़ के हक़ में ज़हर हैं
हुस्न के इज्तिनाब तक इश्क़ की ज़िंदगी समझ
कहने को ज़िंदगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया
क्या हुआ हुस्न है हम-सफ़र या नहीं
इश्क़ मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं
हवा को बहुत सर-कशी का नशा है
मगर ये न भूले दिया भी दिया है
गुज़रता है हर शख़्स चेहरा छुपाए
कोई राह में आईना रख गया है
रौशनी के लिए दिल जलाना पड़ा
ऐसी ज़ुल्मत बढ़ी तेरे जाने के बाद
वो हैं पास और याद आने लगे
वो अकेले में भी जो लजाते रहे
हो न हो उन को हम याद आते रहे
वो हैं पास और याद आने लगे हैं
मोहब्बत के होश अब ठिकाने लगे हैं
उन मस्त मस्त आँखों में आँसू अरे ग़ज़ब
ये इश्क़ है तो क़हर-ए-ख़ुदा चाहिए मुझे