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उत्तराखंड में बिना सचिव के चल रहा भाषा विभाग

-एक साल बाद भी उत्तराखंड भाषा संस्थान में नहीं हो सकी स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति -अस्थायी कर्मचारियों के भरोसे किस तरह होगा बोली-भाषा का उत्थान, उठ रहे सवाल

लक्ष्मी प्रसाद बडोनी
देहरादून: उत्तराखंड में भाषा विभाग स्थानीय बोली-भाषा के उत्थान के लिए कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दो माह बाद भी विभाग में सचिव की नियुक्ति नहीं हो सकी है। यही नहीं, कैबिनेट में 42 पद सृजित करने के एक साल बाद भी उत्तराखंड भाषा संस्थान स्थायी कर्मचारियों और अधिकारियों की नियुक्ति की राह देख रहा है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में 14 फरवरी 2024 को आयोजित कैबिनेट की बैठक में एक प्रस्ताव पेश किया गया था, जिसमें कहा गया था कि वर्तमान में उत्तराखंड भाषा संस्थान का कार्य नितांत अस्थायी सृजित पदों एवं आउटसोर्स कर्मचारियों के माध्यम से किया जा रहा है। विभाग में करीब 14 पीआरडी कर्मचारी तैनात हैं। संस्थान में सहायक निदेशक, प्रकाशन अधिकारी, शोध अधिकारी सहित कई पदाें सहित कुल 51 पद सृजित करने का प्रस्ताव रखा गया था। कैबिनेट ने उस समय इसमें से 42 पदों को सृजित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। कहा गया कि संस्थान में स्थाई अधिकारी, कर्मचारी मिलने से स्थानीय बोली, भाषा को बढ़ावा दिए जाने के काम को गति मिलेगी, लेकिन एक साल बीतने के बाद भी स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हो सकी है। हैरत की बात है कि विभागीय सचिव की अनुपस्थिति में ही राज्यस्तरीय कार्यक्रम हो गया, जिसमें मुख्यमंत्री धामी ने 18 साहित्यकारों को सम्मानित करने के साथ-साथ दो लेखक ग्राम बनाने की घोषणा की। यही नहीं, साहित्य को पर्यटन से जोड़ने की भी बात कही गई। लेकिन धरातल में स्थिति यह है कि भाषा संस्थान के पास अपना भवन बनाने के लिए जमीन तक नहीं है। हालांकि अब भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने डीएम को भाषा संस्थान के लिए जमीन तलाशने के निर्देश दिए हैं।
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2010 में हुई थी भाषा संस्थान की स्थापना:
गौरतलब है कि उत्तराखंड में स्थानीय बोली, भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2010 में उत्तराखंड भाषा संस्थान की स्थापना की गई थी। इसके बाद वर्ष 2018 में इसका एक्ट तो बना दिया गया, लेकिन स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की गई। करीब छह साल बाद वर्ष 2024 में कैबिनेट में पद सृजित करने के प्रस्ताव को मंजूरी तो दे दी गई, लेकिन स्थायी कर्मचारियों की तैनाती एक साल बाद भी नहीं हो सकी।
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सबसे बड़ा सवाल :
उत्तराखंड भाषा संस्थान के तहत गठित हिंदी, उर्दू, पंजाबी एवं लोक भाषा एवं बोली अकादमियों का उद्देश्य हिंदी, उर्दू, पंजाबी एवं लोक भाषा और बोलियों का विकास संवर्धन, शोधकार्य, मानकीकरण, अनुवाद कार्य करना है। लेकिन स्थायी कर्मचारियों और अधिकारियों के अभाव में किस तरह बोली-भाषा के उन्नयन के लिए काम होगा, यह सबसे बड़ा सवाल है।

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