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प्रतिस्थानी के चक्कर में दुर्गम में ही अटके कई बाबू 

-शासनादेश में प्रतिस्थापन शब्द बना कर्मचारियों के तबादलों की राह में रोड़ा, उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग संयुक्त महासंघ ने कार्मिक विभाग को पत्र भेजकर की प्रतिस्थानी शब्द को विलोपित करने की मांग 

देहरादून: कार्मिक विभाग की तरफ से जारी शासनादेश में अंकित प्रतिस्थानी शब्द तमाम बाबुओं के तबादलों की राह में रोड़ा बन गया है। उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग तृतीय खंड कार्यालय मिनिस्टीरियल संघ ने कार्मिक विभाग को भेजे ज्ञापन में प्रतिस्थानी शब्द को हटाने की मांग की है, ताकि तबादलों में आसानी हो।

   राज्य में विभिन्न विभागों में अनिवार्य तबादले के लिए बीती 15 अप्रैल को शासनादेश जारी हुआ था, जिसमें तबादलों को लेकर एडवाइजरी जारी की गई थी। इसमें एक बिंदु यह था कि सुगम से दुर्गम और दुर्गम से सुगम में बराबर संख्या में तबादले किए जाएंगे। इसमें एक बिंदु यह भी जोड़ा गया कि तबादला करते समय प्रतिस्थानी की व्यवस्था भी कर ली जाए। यही प्रतिस्थानी शब्द तमाम बाबुओं के तबादलों की राह में रोड़ा बन गया। पात्रता होने के बावजूद कई बाबुओं को प्रतिस्थानी न मिलने के कारण दुर्गम में ही रहने को मजबूर होना पड़ रहा है।

उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग संयुक्त महासंघ के प्रांतीय महामंत्री सुरेन्द्र प्रसाद बछेती ने कार्मिक विभाग को भेजे ज्ञापन में कहा कि लोनिवि के हर कार्यालय में तकनीकी और गैर तकनीकी पद स्वीकृत होता है। ऐसे में किसी एक संवर्ग के कार्मिक के तबादले के उपरांत उसी संवर्ग के दूसरे कार्मिक को कार्यभार दे दिया जाता है, जिससे दुर्गम स्थान में रिक्तिता की स्थिति नहीं रहती है। यही नहीं, दोनों ही संवर्ग में कई कार्मिक 15 से 20 साल से दुर्गम स्थान पर हैं, लेकिन प्रतिस्थानी न होने के कारण वह सुगम में तबादले से वंचित रह जाएंगे, इसलिए प्रतिस्थानी शब्द को विलोपित किया जाए।

 

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