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दून को बचाना है तो सड़कों पर उतरना होगा 

-धाद और ट्रीज आफ दून के बैनर तले शहर को बचाने के लिए दून लाईब्रेरी में जुटे लोग, किया मंथन, हरियाली की रक्षा का अधिकार स्थानीय समुदाय को दिया जाए: डॉ. रवि चोपड़ा, शहर में पेड़ कटेंगे तो विरोध किया ही जाएगा: रीनू पाल,सरकार का विकास का पैमाना ही गलत: हिमांशु अरोड़ा, शहर को बचाने के लिए जनता भी आगे आए: लोकेश नवानी 

 देहरादून: अनियमित विकास की होड़ में कटते पेड़ और मानव जीवन पर मंडराते खतरे से चिंतित लोग शनिवार को दून लाइब्रेरी में जुटे। तय किया गया है कि यदि शहर को बचाना है तो सरकार को जगाना होगा। नीति-नियंताओं पर नजर रखनी होगी। सड़कों पर उतरकर गलत नीतियों का विरोध करना होगा। ग्रीन मैनीफेस्टो को अपने चुनाव घोषणापत्र में शामिल करने के लिए राजनीतिक दलों को मजबूर करना होगा या खुद ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने के लिए आगे आना होगा। जनकवि डॉ. अतुल शर्मा ने जनगीत गाकर कार्यक्रम को सार्थकता प्रदान की।

   सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित संस्था धाद और ट्रीज आफ दून के बैनर तले आयोजित इस कार्यक्रम का विषय ‘देहरादून @ 43 डिग्री, तपता हुआ शहर और असंतुलित विकास’ था। प्रख्यात पर्यावरणविद् डॉ. रवि चोपड़ा ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग पूरी दुनिया की समस्या है और सभी को इसकी चिंता करनी होगी। कहा कि ग्रीन इकोनॉमी यानी हरित अर्थव्यवस्था इसका हल है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना सतत विकास ग्रीन इकोनॉमी का मूल है। हरियाली की रक्षा का अधिकार स्थानीय समुदाय को देना होगा। पेड़ों के अंधाधुंध कटान से बचना होगा। जंगल बचेंगे तो मिट्टी बचेगी, पेड़ बचेंगे और तभी जीवन भी बचेगा।

सामाजिक कार्यकर्ता रीनू पाल ने कहा कि दून घाटी नदियों, रिजर्व फॉरेस्ट, नहरों, नाले और खेतों की सुन्दर संरचना थी जो आज हीट आइलैंड बनता जा रहा है I इसका एक कारण देहरादून के आसपास के वनो का विभिन्न परियोजनाओं के चलते काटन होना और शिवालिक रेंज का कटाव भी है I कहा कि प्रदेश में भूस्खलन की घटनाएं विकास की अंधाधुंध दौड़ का नतीजा हैं। स्पष्ट किया कि हम विकास विरोधी नहीं हैं, लेकिन विकास के नाम पर नदी-नाले को पाटा जाएगा या पेड़ों को काटा जाएगा, तो इसका विरोध तो किया ही जाएगा। उन्होंने पीआईएल को लेकर कुछ न्यायाधीशों के नजरिए पर भी एतराज़ जताया।

सिटीजन फार ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा ने कहा कि सरकार ने चौड़ी रोड और बड़ी बिल्डिंग को ही विकास का पैमाना मान लिया है और यह भी मान लिया है कि जनता भी यही चाहती है। उन्होंने सरकार के विकास के इस पैमाने पर एतराज़ जताते हुए कहा कि दस फीसदी लोगों के फायदे के लिए वह नब्बे फीसदी लोगों की जान खतरे में डाल रही है। कहा कि देहरादून शहर का तापमान 43 डिग्री पहुंच जाने के बाद जनता भी संभलने लगी है। खलंगा तथा कैंट में पेड़ कटान को लेकर एकत्रित लोगों ने यह साबित भी कर दिया है। उन्होंने कहा कि हैरानी तो तब होती है, जब पेड़ों के कटान के बाद सड़क चौड़ी होने के बजाय वहां पर कारें खड़ी होने लगती हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी ने आम जनता से भी शहर को बचाने की इस मुहिम में शामिल होने का आह्वान किया। कहा कि ज्यादातर विकासशील देशों में हो रहा अनियोजित विकास पर्यावरण असंतुलन को जन्म दे रहा है और हम सबका विकास की इस धुरी पर घूमना एक बड़ी विडंबना है। विकास के इस असंतुलित और विनाशकारी मॉडल में उस समावेशी दृष्टिकोण की कमी है जो प्रकृति के हर अंग में संतुलन कायम करता है। इस वर्ष देहरादून में तापमान 43 डिग्री के पार जाना और दूसरी जगहों पर सूखा, अतिवर्षा, बाढ़ और भूस्खलन के साथ ही क्लाइमेट चेंज का एक बड़ा सवाल हमारे सामने खड़ा हो गया है। ऐसे में विचार करना जरूरी होगा कि आने वाले समय में हमारे विकास का मॉडल क्या हो?

इससे पहले धाद के महासचिव तन्मय ममगाईं ने संस्था की ओर से पर्यावरण और सामाजिक सरोकारों से संबंधित किए जा रहे कार्यों के बारे में विस्तार से बताया। दून लाईब्रेरी के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने अतिथियों का स्वागत किया।

कार्यक्रम का संचालन हिमांशु आहुजा और सुशील पुरोहित ने किया। कार्यक्रम में डॉ. एस एस खैरा, हर्ष मणि व्यास, सुरेश कुकरेती, सुरेन्द्र अमोली, सुंदर सिंह बिष्ट,अवधेश शर्मा, गणेश उनियाल, उत्तम सिंह रावत, नरेंद्र सिंह रावत, ब्रिगेडियर के जी बहल, इरा चौहान, आशा डोभाल, रेखा शर्मा, रंजना शर्मा, मणि अग्रवाल मणिका, चारू तिवारी, मुकेश नौटियाल, दयानंद अरोड़ा, दर्द गढ़वाली, जगमोहन मेहंदीरत्ता, हर्षमणि भट्ट, राकेश अरोड़ा, कल्पना बहुगुणा आदि मौजूद थे।

 

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शहर को बचाने के लिए सुझाव

-कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए एसी की जगह कूलर का उपयोग किया जाए।

– ‘थ्री आर’ यानी कंजम्पशन रिड्यूस, रिसाइकिल और रियूज की थ्योरी अपनाई जाए।

– निजी कार का कांसेप्ट खत्म कर पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

-मसूरी के लिए और सड़क नहीं बनाई जानी चाहिए।

-शहर के सुनियोजित विकास के लिए मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया जाए

-पेड़ों के अंधाधुंध कटान का हर हाल में विरोध किया जाए

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