सरकार की उपेक्षा से अब रंगकर्मी भी खफा
रंगकर्मी बोले, प्रोत्साहन तो दूर रंगमंच दिवस तक में नहीं होता कोई सरकारी आयोजन, प्रेक्षागृह के किराए तक में नहीं मिलती छूट, साहित्यकार नरेंद्र कठैत ने भी भाषा संस्थान की कार्यप्रणाली को लेकर जताई नाराजगी, वरिष्ठ साहित्यकार कुसुम भट्ट ने सम्मान के लिए चयनित कुछ साहित्यकारों के योगदान पर उठाई उंगली

लक्ष्मी प्रसाद बडोनी
देहरादून: उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से हाल ही में दिए गए उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान को लेकर जहां उंगली उठाई जा रही हैं, वहीं दीर्घकालीन उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए पहले पुरस्कृत किए जा चुके साहित्यकारों की उपेक्षा के कारण उनमें क्षोभ की स्थिति है। कारण, कुछ लोगों को जहां कार्यक्रम का निमंत्रण ही नहीं भेजा गया, वहीं बोली-भाषा के उन्नयन और भाषा संस्थान के आगामी कार्यक्रमों के लिए उनसे सुझाव तक लेने की जहमत नहीं उठाई जा रही है। यही नहीं, पृथक उत्तराखंड राज्य के लिए हुए आंदोलन में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाने वाले रंगकर्मियों में भी उचित सम्मान न मिलने पर रोष है। उनका कहना है कि प्रोत्साहन तो दूर नाटक के मंचन के लिए प्रेक्षागृह में किराए तक में छूट नहीं दी जाती है। रंगमंच दिवस के दिन सरकारी स्तर पर कोई आयोजन नहीं होता।
वर्ष 2022 में गढ़वाली भाषा में भजन सिंह ‘सिंह’ सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र कठैत ने फेसबुक पोस्ट के जरिए कहा कि उत्तराखंड भाषा संस्थान ने वर्ष 2023 में कुमाउंनी भाषा में दीर्घकालीन उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए ’गुमानी पंत सम्मान’ से त्रिभुवन गिरी तथा गढ़वाली भाषा में भजन सिंह ‘सिंह’ सम्मान से उन्हें (नरेंद्र कठैत) सम्मानित किया। कहा कि उत्तराखंड भाषा संस्थान से कुमाउंनी और गढ़वाली दोनों जनपदीय भाषाओं में दीर्घ कालीन साहित्य सृजन के लिए ‘उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान’ से सम्मानित होने वाले ये पहले कलमकार रहे हैं, लेकिन तत्पश्चात उत्तराखंड भाषा संस्थान की दृष्टि में ये दोनों कलमकार किसी समिति में साधारण सदस्य अथवा किसी सुझाव के योग्य भी नहीं समझे गए। सवाल किया कि क्या इन दोनों रचनाकारों का काम अथवा उक्त दिए गए सम्मान ‘उत्तराखंड भाषा संस्थान’ की दृष्टि में अब प्रासंगिक नहीं हैं? उपेक्षा से क्षुब्ध कठैत ने साफ कह दिया है कि भविष्य में उत्तराखंड भाषा संस्थान के किसी भी कार्यक्रम में उपस्थित होना अब उनकी प्राथमिकता में नहीं है। वरिष्ठ साहित्यकार कुसुम भट्ट ने सम्मान के लिए चयनित कुछ साहित्यकारों के योगदान पर उंगली उठाई है।
उधर, रंगकर्मी वीके डोभाल रंगमंच के प्रति राज्य सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैए को लेकर खफा हैं। उनका कहना है कि नाटक के मंचन के लिए प्रेक्षागृह के किराए में छूट तक नहीं दी जाती, ऐसे में कोई भी संस्था नाट्य मंचन के लिए कैसे आगे आए। इसी तरह रोशन धस्माना का कहना है कि रंग कर्मियों का आज तक धामी सरकार ने सम्मान नहीं किया। जिन रंगकर्मियों ने राज्य आंदोलन में निर्भीकता, ईमानदारी और जनजागरण से आंदोलन को गति प्रदान की आज उनके त्यौहार विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च का आयोजन सरकार ने भुला दिया है।