प्यार का पारावार ‘ज़ुबिन गर्ग’

देहरादून/गुवाहाटी: पिछले आठ साल से मैं प्रकृति के सबसे निकट भारत के पूर्वोत्तर में स्थित राज्य असम के एक छोटे से कस्बे दुलियाजान में रह रहा हूँ, जिसे ऑयल नगरी के नाम भी जाना जाता है। यहाँ प्रकृति अपने अस्तित्व को अभी तक बचा पाई है, तो उसका प्रमुख कारण यहाँ के लोगों का प्रेम है। यहाँ के लोग प्रेम से अभिभूत आज भी अपनी भाषा व प्राकृतिक भावनाओं को हृदय में लिए अपने विकास के क्रम में आगे बढ़ रहे हैं। इनकी भावुकता हृदय पर अंकित उन बचपन की यादों को छेड़ जाती है, जो अक्सर मेरे मन को आनन्द से भर देती है।
19 सितम्बर 2025 का वैसे तो मेरे जीवन में कोई खास महत्व नहीं है, लेकिन असम के लोगों के प्यार के पारावार ने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया। क्या कोई अपने कलाकार से इतना प्रेम करता है? सचमुच इतना प्रेम!
हिन्दी भाषी क्षेत्र का होने के कारण मैं जानता भी हूँ तो केवल हिन्दी भाषी कलाकारों या लेखकों को। भले ही मुझे यहाँ रहते हुए आठ साल हो गए, लेकिन भाषा की विविधता के कारण में यहाँ के किसी भी कलाकार से परचित न हो सका। 20 सितम्बर 2025 की अल-सुबह वाहट्सअप पर एक स्टेट्स पर नज़र जाती है, कि ज़ुबिन गर्ग नहीं रहे। एक सामान्य ईश्वरी घटना क्रम मानते हुए मेरे हृदय ने कुछ ज्यादा सोचने की ज़रूरत महसूस नहीं की। सुबह होते-होते यह जानकारी मैंने अपने वाहट्सअप पर महसूस की, कि ज़ुबिन गर्ग को अब तक मेरे सम्पर्कों में 50 से अधिक स्थानीय लोग अश्रूपूरित श्रद्धांजलि दे रहे थे। मेरा मन तब ठिठक गया जब असम सरकार ने 20-22 सितम्बर तक राजकीय शोक घोषित किया।
किसी घटना का घटित होना हमारे वश में नहीं होता, लेकिन घटना से घटित दुख व सुख हम जरूर महसूस करते हैं। इस बार एक ऐसा ही दुख मेरे हृदयतल में जम गया।
चंद सांसों का भी क्या था आनी-जानी थीं गईं
कौन कितनी देर का शख्सियत बतलाएगी
ज़ुबिन गर्ग की वही शख्सियत में देख रहा हूँ, अपने चारों ओर, अभिभूत हूँ, एक कलाकार के लिए लोगों के प्रेम को लेकर। यह प्रेम मैंने कभी नहीं देखा अपने क्षेत्र में वहाँ यह एक घटना मात्र से ज्यादा कुछ नहीं होती। शोक संवेदना भी केवल निज परिचित लोग ही व्यक्त करते हैं। मैंने यहाँ देखा उन अपरचितों को भी जो बस नाम से जानते हैं ज़ुबिन गर्ग को, लेकिन फिर भी वह एक कलाकार उनके मन में बैठा हुआ, गीत गा रहा है अपनी संवेदना के और उससे प्रेम करने वाले करोड़ो लोगों के कण्ठ भर आये हैं अपने इस प्रेमी के लिए। यह प्रेम बिल्कुल वैसा ही है जैसा था अपरचित राम के लिए शबरी का, कुब्जा का अपने कृष्ण के लिए, भस्म रमाये शिव की चाहना का जो प्रेम सती के मन में था, कुछ वैसा ही प्रेम पा लिया है ज़ुबिन गर्ग ने, यह प्रेम का पारावार तुम्हें कभी भूलने नहीं देगा और ध्वनित होती रहेंगी तुम्हारी स्मृतियाँ |
– सुरजीत मान जलईया सिंह (लेखक युवा कवि हैं)