गिर्दा जैसे लोग जुदा होकर भी ‘जुदा’ नहीं होते
गिर्दा की पुण्यतिथि पर विशेष, जनकवि डॉ. अतुल शर्मा ने शब्दक्रांति से साझा की गिर्दा की यादें

देहरादून: जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की आज पुण्यतिथि है। पृथक उत्तराखंड राज्य के आंदोलन के दौरान गिर्दा ने भी लोगों में जागरूकता जगाई। आंदोलन में जनगीतों से अमिट छाप छोड़ने वाले जनकवि डॉ. अतुल शर्मा की गिर्दा से जुगलबंदी की कई यादें हैं। डॉ. अतुल शर्मा ने गिर्दा की पुण्यतिथि पर शब्द क्रांति से उनसे जुड़ी यादें साझा की।
जनकवि डॉ. अतुल शर्मा बताते हैं अंजनीसैंण स्थित भुवनेश्वरी महिला आश्रम में तीन दिन की नाट्य गीत कार्यशाला में गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ के साथ रहना हुआ। वहाँ मेरे एक दिन के सत्र में रंग गीतों का प्रशिक्षण होना था। मैंने उसे आन्दोलनों के जयगीतों से जोड़ दिया।
गिर्दा ने जब यह सत्र सुना और देखा तो उन्होंने कहा कि कविता लिखने से ज्यादा जीनी होती है। जो उत्तराखण्ड आन्दोलन में अतुल ने किया था।
मुझे आज भी याद है जब उन्होंने मेरे लिखे जनगीत अब तो सड़कों पर आओ की पंक्तियां गायी थीं। लग रहा था कि वहाँ कोई कार्यशाला नहीं आन्दोलन हो रहा है। उस कार्यशाला में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी भी आये थे। और रंगकर्मी श्रीश डोभाल भी।
जब हम लौट रहे थे तो पूरे रास्ते जनगीत चलते रहे।
हिमालय की गूँज: दूनलाईबेरी व शोध केन्द्र देहरादून का आयोजन,,,
अकेला होटल मे पेंग्विन प्रकाशन दिल्ली और दूनलाईबेरी के आयोजन में एक सत्र था,,, जयगीतों पर आधारित। उसका संचालन डॉ. शेखर पाठक ने किया था। तीन लोगों के गीत होने थे। उनमें जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा लोकगायक व कवि नरेंद्र सिंह नेगी और जनकवि डॉ. अतुल शर्मा।
मैने अपना वह जनगीत सुनाया, जो उत्तरकाशी चमोली भूकंप पर केंद्रित था। ऐसा तो देखा पहली बार। गिर्दा और नेगी जी ने महत्वपूर्ण गीत प्रस्तुत किये। मेरे जनगीत पर गिर्दा की टिप्पणी आशिर्वाद की तरह थी । उन्होंने वह पंक्तियां दोहराई,,,,, कंबल तो कम बंटवाये , ज्यादा फोटो खिंचवाए,,, ऐसा तो देखा पहली बार रे ।
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नैनीताल : युगमंच द्वारा नुक्कड़ नाटक समारोह,,,,
गिर्दा के साथ पूरी माल रोड पर सांस्कृतिक जुलूस में साथ साथ गायन, गिर्दा जब गाते थे तो उनकी पूरी मुद्राये गाती थीं। वो चाहे किसी का भी जनगीत हो। वह एक सिपाही की तरह सांस्कृतिक मोर्चे पर तैनात रहते। हमने बहुत जगह साथ साथ संघर्ष किया है ।
उत्तरकाशी:
जनकवियों को एकत्र करके एक कवि सम्मेलन में हम साथ रहे। यह उत्तराखंड आन्दोलन के दिन थे
उसमें बल्ली सिंह चीमा, ज़हूर आलम, नरेंद्र सिंह नेगी, धर्मानन्द उनियाल पथिक आदि थे। संचालन नागेंद्र जगूड़ी ने किया था।
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श्रीनगर गढ़वाल: बैकुंठ चतुर्दशी मेला कवि सम्मेलन में गिर्दा की सलाह पर ऐसा तो देखा पहली बार और अब तो सड़कों पर आओ सुनाई तो वह लोगों के दिलों तक पहुँच गयी। अनुभव था गिर्दा के पास जनता का मन समझने का। ऐसे ही सैकड़ों जगह साथ रहे हम गिर्दा के साथ। लगता है आज भी साथ हैं हम गिर्दा के।