उत्तराखंडमुशायरा/कवि सम्मेलन

राजशाही के ज़ुल्मों की गवाह ‘श्रीमन’ की कविताएं 

हिमालय के यशस्वी कवि मनोहर लाल उनियाल श्रीमन् की 105वीं जयंती पर आयोजित हुई काव्य गोष्ठी

देहरादून, ‘रक्त रंजित पथ हमारा हम पथिक हैं आग वाले, नाम से जो क्रांति गीत टिहरी कारागार में लिखा,  जिस गीत ने आजादी के मतवालों में एक क्रांति का बिगुल फूंक दिया, वह गीतकार थे मनोहर लाल उनियाल श्रीमन।

 

बुधवार को दून के एक  वेडिंग पॉइंट में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं हिमालय के यशस्वी कवि मनोहर लाल उनियाल श्रीमन्  की 105वीं जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पहले चरण में वक्ताओं ने श्रीमन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा की और दूसरे चरण में काव्य गोष्ठी हुई, जिसमें कवियों ने श्रृंगार और वीर रस की कविताएं पढ़ कर तालियां बटोरी।

     कार्यक्रम में मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार सोमवारी लाल उनियाल , “प्रदीप” ने अपने संबोधन में कहा कि टिहरी जनपद के उनियाल गाँव में जन्मे श्रीमन ने मात्र 22 साल की अवस्था में” हम पथिक हैं आग वाले”के नाम से जो क्रांति गीत टिहरी के कारागार में लिखा था, वह आजादी के दीवानों का प्रयाण गीत बन गया था। उन्होंने कहा कि  ‘श्रीमन्’ ने राजशाही के जुल्मों को नजदीक से देखा, इसलिए उनकी कविताओं में राजशाही के प्रति विद्रोह साफ झलकता है।

काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुये  वरिष्ठ कवि साहित्यकार असीम शुक्ल  ने कहा कि प्रकृति के सानिध्य में बीता क्षण क्षण श्रीमन् जी की कविता में बोलता हुआ सा लगता है। उन्होंने कहा कि ‘श्रीमन” के जन्म दिवस पर हम एक कवि के जुझारू रूप को याद कर रहे हैं। उन्होंने कविता के माध्यम से कहा ‘बेला कचनार जूही चंपा कि आंचल पर गंध तोड़ लाई है पुरवइया मालिन, के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किए।

 इसके बाद कवि गोष्ठी का दौर शुरू हुआ। कवि अरूण भट्ट ‘अरूण’ ने ग़ज़ल ‘बहारों पर फिजा का छा गया, आलम तो क्या होगा, बदल जाये अगर तेरी खुशी से गम तो क्या होगा’ सुनाकर दर्शकों को भाव विभोर कर दिया। कवि अवनीश उनियाल ने अपनी कविता में मजदूरों का दर्द बयां कर तालियां बटोरी।

    काव्य गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए शायर लक्ष्मी प्रसाद बडोनी ‘दर्द गढ़वाली’ ने ग़ज़ल ‘बात करते हैं दिल दुखाने की, शर्त रक्खी है मुस्कराने की, आइना देखना दिखाना है, शर्त ये कैसी है ज़माने की’ सुनाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रो. राम विनय सिंह ने कविता बदल रहे शब्दार्थ मनुज के बदले बदले मन में, नव चिंतन बदलाव ग्रस्त सत्वहीन जीवन में, सुनाकर वाह वाही लूटी। कवि  शादाब अली ने कविता इस तरह कही कि ‘आहलादित घर द्वार दुखी हैं सारे परिजन, जन गण मन को याद बहुत आते हैं श्रीमन,  खग मृग व्याकुल हैं विह्वल  पर्वत कानन  जन गण मन की याद बहुत आते हैं श्रीमन्’  तो कवि चन्दन सिंह नेगी ने गढ़वाली गीत ‘बैठकों में हल टंगे हैं बल हमारे गांव में, बस पधानों के मजे हैं बल हमारे गांव में’, के माध्यम से सामाजिक परिदृश्य पर कटाक्ष किया। प्रसिद्ध कवि श्रीकांत श्री ने पन्ना धायी पर कविता सुनाकर श्रोताओं के दिल में जगह बनाई। प्रसिद्ध शायर अंबर खरबंदा ने देहरादून शहर पर ग़ज़ल सुनाकर वाहवाही लूटी। वरिष्ठ कवि जसवीर सिंह हलधर ने देशभक्ति पर आधारित कविता सुनाकर माहौल में जोश भरा।

   वहीं शान्ति प्रकाश जिज्ञासु की कविता ‘दुश्मनी और नफरत दोनों अलग-अलग चीज है जिसमें अंतर है जमीन आसमान का’ सुनाकर खूब तालियां बटोरी| काव्य गोष्ठी से पहले रजनीश त्रिवेदी ने श्रीमन् जी के काव्य रचनाओं और उनके व्यक्तित्व पर अपने विचार रखे।

    कार्यक्रम में मनोहर लाल उनियाल श्रीमन् की पुत्री कल्पना बहुगुणा एवं पूनम नैथानी ने सभी अभ्यागतों को धन्यवाद प्रेषित करते हुये कहा कि आप सब की उपस्थिति ने श्रीमन जी को जीवंतता प्रदान की है | दो सत्रों में चले इस कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ कवियत्री बीना बैंजवाल और शान्ति प्रकाश जिज्ञासु ने संयुक्त रूप से किया |

   इस अवसर पर मंजू काला, डा. अर्चना बहुगुणा, माहेश्वरी कनेरी, डा. मुनिराम सकलानी, मणि अग्रवाल मणिका, कविता बिष्ट, डा. राकेश बलूनी, वीरेन्द्र डंगवाल ‘पार्थ’, ललित लखेड़ा, प्रदीप कुकरेती, शिव मोहन सिंह, डा. सत्यानंद बडोनी, डा. हर्षमणी भट्ट ‘कमल’, डा. नीता कुकरेती, डा. सविता मोहन, मधु पाठक, पूनम नैथानी आदि ने भी कविताएं सुनाईं।

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