मठाधीशों के कारण हो रहा कविता का नुकसान : शिव मोहन सिंह
मौजूदा दौर में रचनाकारों की भूमिका अहम, साधना मांगती है छांदस रचना, पुरस्कार चयन की प्रक्रिया में पुनर्विचार की जरूरत

वरिष्ठ साहित्यकार शिवमोहन सिंह का मानना है कि साहित्य को आगे बढ़ाने के नाम पर बनी संस्थाओं में बैठे मठाधीशों के दखल के कारण साहित्य का भला कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है। यह मठाधीश चाहते हैं कि जैसा वह चाहते हैं वैसा ही चलता रहे। ऐसे में रचनाकार की भूमिका अहम हो जाती है। साहित्य समाज का दर्पण है और रचनाकार को ही यह ध्यान रखना होगा कि वह सिस्टम को आइना ही न दिखाए, बल्कि एक बेहतर समाज बनाने की दिशा में काम भी करे। साक्षात्कार की श्रृंखला में पिछले दिनों shabdkrantilive.com ने देहरादून में किशननगर स्थित आवास पर वरिष्ठ साहित्यकार शिवमोहन सिंह से मुलाकात की और उनसे उनकी साहित्यिक यात्रा, हिंदी कविता और उसके भविष्य को लेकर बातचीत की। उसी बातचीत के प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं।
सवाल: आपकी साहित्यिक यात्रा कब, कहां और कैसे शुरू हुई।
जवाब: हमारे घर में साहित्य का कोई माहौल नहीं था। हां, हिंदू परिवार के नाते हनुमान चालीसा और तुलसीकृत रामायण का पाठ होता था। इसलिए हनुमान चालीसा बचपन में ही कंठस्थ हो गई और रामायण की भी कुछ चौपाइयां याद हो गई। गांव में पढ़ाई के दौरान स्कूल में अंत्याक्षरी होती थी, तो वहीं से कविता के प्रति रुचि पैदा हुई। गांव से स्कूल दो-ढाई किमी दूर था, तो आते-जाते हरियाली, नदी और पक्षी दिखते थे, जिससे प्रकृति के प्रति लगाव हुआ। साइंस का विद्यार्थी था, लेकिन साहित्य में रुचि थी, इसलिए स्कूली शिक्षा के दौरान ही प्रसाद, पंत, निराला और महादेवी वर्मा को पढ़ लिया। साहित्य की ओर रूझान का एक और कारण हमारे एक शिक्षक राजनारायण शुक्ल भी बने, जिन पर लाइब्रेरी का प्रभार भी था। अंग्रेजी का शिक्षक होने के बाद भी उन्होंने हिंदी साहित्य की पुस्तकें पुस्तकालय के लिए मंगाई थी, जिससे हिंदी साहित्य की पुस्तकें पढ़ने को मिली। हालांकि अपनी पुस्तक प्रकाशित करने का कभी सोचा भी नहीं था, क्योंकि सिखाने वाला कोई नहीं था। साहित्यिक यात्रा देहरादून से नौकरी के दौरान शुरू हुई, जब मित्रों ने उत्साहित किया।
सवाल: आपकी अब तक कितनी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और पुस्तक प्रकाशित कराने का ख्याल कैसे आया।
जवाब: मेरी पहली पुस्तक जागृति वर्ष 1994 में छपी थी, जो मित्रों के सहयोग और उनके उत्साहवर्धन से प्रकाशित हुई। इसकी सभी कविताएं 10 वीं कक्षा के दौरान लिखी गई थी। दूसरी पुस्तक वर्ष 2018 में प्रकाशित हुई, जिसका नाम था मन हुआ मधुमास। लेकिन इस शीर्षक से मेरी कविता उत्तरांचल पत्रिका में करीब 10 साल पहले ही छप चुकी थी, जिसे संपादक सोमवारी लाल उनियाल ने प्रकाशित किया था। जब इस पुस्तक का लोकार्पण हुआ, तो उसकी अध्यक्षता खुद सोमवारी लाल उनियाल कर रहे थे। तीसरी पुस्तक गीत संग्रह ताल किनारे और चौथी पुस्तक दोहा संग्रह ‘ज्यों कोहरे में धूप’ है। यही नहीं प्रसिद्ध पत्रकार असीम शुक्ल के संपादन में खुद मेरे सृजन पर एक पुस्तक ‘लोकमंगल का गीत सर्जक शिवमोहन सिंह’ आई है, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया है। इस तरह मेरी साहित्यिक यात्रा निरंतर जारी है।
सवाल: छांदस और छंदमुक्त रचना को लेकर इन दिनों विवाद बना हुआ है। इस विवाद को आप किस तरह देखते हैं।
जवाब: विधा कोई भी हो, छंदमुक्त हो या छांदस रचना। जिसमें समय न लगे, वह कविता स्तरीय नहीं हो सकती। कविता साधना मांगती है और छांदस रचना में कवि को मानकों के अनुशासन में चलना होता है, जिसमें समय ज्यादा लगता है और इसीलिए वह श्रोताओं के दिल को भी आनंदित करती है। छंद मुक्त रचना में भी अभिव्यंजना तो होनी ही चाहिए और यदि ऐसा नहीं होता है तो वह सपाटबयानी होगी, जिसे कविता कतई नहीं कहा जा सकता।
सवाल: इन दिनों मंचों में कविता के क्षेत्र में गिरावट आई और उसे बचाने के नाम पर कई संगठन बन गए हैं। आपको लगता है कि यह संगठन कविता को बचा पाएंगे।
जवाब: कहने को कई संस्थाएं कविता को बचाने के नाम पर बनी हैं, लेकिन सच कहूं तो ज्यादातर संस्थाओं में मठाधीशों का कब्जा है और वह अपने हिसाब से संस्था को चलाना चाहते हैं, ऐसे में रचनाकार को अपनी भूमिका खुद बनानी होगी।
सवाल: उत्तराखंड में साहित्य का क्या भविष्य है। थानो गांव में बने लेखक गांव की गतिविधियों से आप कितने संतुष्ट हैं और किस तरह का वातावरण वहां बनाया जाना चाहिए। इसके अलावा कविता की जो संस्थाएं यहां चल रही हैं, उनके सृजन से आप कितने प्रभावित हैं।
जवाब: उत्तराखंड की भूमि कविता के लिहाज से बहुत उर्वर है। मेरी अधिकांश रचनाएं यहीं हुई हैं। लेखक गांव मैं ज्यादा नहीं गया, लेकिन अख़बारों के माध्यम से जानकारी मिलती रहती है। यह जरूर कहूंगा कि इन संस्थाओं को नए लेखकों को प्रोत्साहन देना चाहिए।
सवाल: हाल ही में उत्तराखंड सरकार की ओर से साहित्य गौरव पुरस्कार वितरित किए गए थे, जिनमें से कुछ विवादास्पद थे, जिनके बारे में अखबारों में भी चर्चा हुई। पुरस्कार विवादरहित हों, इसके लिए सरकार को क्या करना चाहिए।
जवाब: किसी भी सरकार की ओर से साहित्यकारों को पुरस्कृत किया जाना अच्छी बात है। जहां तक उत्तराखंड साहित्य गौरव पुरस्कार की बात है, उनका विरोध भी हुआ था। अच्छे रचनाकारों को सम्मान मिले, इस पर सरकार को पुनर्विचार की जरूरत है।
सवाल: नए रचनाकारों को आप क्या संदेश देना चाहते हैं।
जवाब: इस समय साहित्य सृजन खूब हो रहा है। खासकर कविताएं खूब लिखी जा रही हैं। नए साहित्यकारों से मैं यह कहना चाहूंगा कि वह जिम्मेदारी से लिखें। मनुष्यता के लिए लिखें, तभी साहित्य का भला हो पाएगा।
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शिवमोहन सिंह का जीवन परिचय
नाम – शिव मोहन सिंह
(कवि,गीतकार,साहित्यकार, संपादक)
पत्नी – श्रीमती निर्मला सिंह
माता – स्व. श्रीमती सोमारी देवी
पिता – स्व. श्री राम धारी सिंह
जन्म तिथि :- दिनांक 09 जून 1956
जन्म स्थान:- ग्राम – मुजान, पो.- मुजान , जिला- कैमूर (भभुआ),
बिहार ।
शिक्षा:-
*हाईस्कूल:- श्रीकृष्ण उच्च माध्यमिक विद्यालय, मुजान, कैमूर, बिहार।
*इंटरमीडिएट: – क्वींस कालेज वाराणसी, उ०प्र०।
*सिविल अभियंत्रण में तीन वर्षीय डिप्लोमा:- राजकीय पाॅलिटेक्निक, मिर्जापुर, उ०प्र०।
संप्रति- उत्तराखण्ड पेयजल निगम से सेवानिवृत सिविल इंजीनियर।
*वर्तमान में देहरादून में रहकर स्वतंत्र लेखन।
*कृतियाँ* –
1. जागृति (काव्य-संग्रह)
2. मन हुआ मधुमास (काव्य-संग्रह)
3. ताल किनारे (काव्य-संग्रह)
4. ज्यों कुहरे में धूप (दोहा-संग्रह)
5 *लोकमंगल का गीत सर्जक-शिव मोहन सिंह* , संपादक- असीम शुक्ल.
शीघ्र प्रकाश्य:- सर्जना के विविध आयाम ( निबंध संग्रह )
संपादन-
*प्रबंध संपादक* – “युगधारा” राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, लखनऊ, उ०प्र०
*क्षेत्रीय संपादक*(उत्तराखण्ड) – राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका “माध्यम” ,नागपुर, महाराष्ट्र।
* उप संपादक* – राष्ट्रीय मासिक पत्रिका *सच्च की दस्तक* वाराणसी, उ.प्र.।
साहित्यिक एवं सामाजिक सरोकार* –
* अध्यक्ष* , उद्गार साहित्यिक एवं सामाजिक मंच, देहरादून ।
*प्रांतीय सलाहकार* राष्ट्रीय कवि संगम, उत्तराखण्ड ।
*आजीवन सदस्य*, हिन्दी साहित्य समिति , देहरादून।
*सदस्य* , भारत विकास परिषद, देहरादून।
*विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, आलेख,साक्षात्कार प्रकाशित।
*आकाशवाणी , दूरदर्शन तथा अन्य टेलीविजन चैनलों पर समय-समय पर काव्य-पाठ तथा साहित्य-वार्ता।
*सम्मान* –
*विद्या सागर* मानद सम्मान – विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार ।
*विद्यावाचस्पति* सारस्वत सम्मान – विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार
*साहित्य शिरोमणि* (मानद उपाधि)-2023, युगधारा फाउंडेशन लखनऊ ।
*साहित्य गौरव सम्मान*-२०२२. – विश्व हिन्दी शोध-संवर्धन अकादमी, वाराणसी।
*साहित्य शिल्पी सम्मान*- राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ” सच की दस्तक” (महामहिम राज्यपाल, सिक्किम द्वारा)
*साहित्य सौमित्र सम्मान*2022 युगधारा फाउंडेशन लखनऊ द्वारा ।
*साहित्य सेवा सम्मान-2021* – मुख्यालय राजभाषा विभाग, ओ.एन.जी.सी , देहरादून।
*अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति सम्मान*- 2020 युगधारा फाउंडेशन लखनऊ ।
*श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान*2021 – युगधारा फाउंडेशन लखनऊ।
*सुख़न सरिता साहित्य सम्मान* – सुखन सरिता साहित्यिक संस्था देहरादून।
*गोस्वामी तुलसीदास सम्मान*2024 – युगधारा फाउंडेशन लखनऊ ।
*युगधारा रत्न* सम्मान-2024, युगधारा फाउंडेशन लखनऊ ।
*अमरनाथ चतुर्वेदी तातश्री स्मृति सम्मान* , Doon Meet-2025, हृदयांगन संस्था समूह, मुम्बई ।
*महामना मानस संतति सम्मान*-2025, डॉ॰ सत्या होप टाॅक , वाराणसी ।
*एक लघु शोध प्रबंध*, प्रकाशित कृतियों पर।
वर्तमान पता :-
म.न. 270 , किशन नगर (एक्सटेंशन) , देहरादून- 248001 .
उत्तराखण्ड
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साक्षात्कारकर्ता: लक्ष्मी प्रसाद बडोनी
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094