रेखा गुप्ता ने संभाली दिल्ली की कमान, यमुना की करेंगी सफाई

नई दिल्ली: भाजपा नेत्री रेखा गुप्ता ने गुरुवार को दिल्ली की कमान संभाल ली। इससे पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई दिग्गज नेताओं और फिल्मी सितारों की मौजूदगी में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पद की शपथ लेते ही वह एक्शन मोड में भी आ गई।
रेखा गुप्ता दोपहर तीन बजे दिल्ली सचिवालय पहुंचीं और उन्होंने कार्यभार संभाला। इसके बाद उन्होंने शाम को अपने मंत्रियों के साथ यमुना बाजार के वासुदेव घाट का दौरा किया और यमुना आरती भी शामिल हुई। भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में सबसे अहम मुद्दा यमुना में गंदगी भी रहा था।
हालांकि दिल्ली में यमुना का इतिहास हमेशा से ऐसा गंदला नहीं रहा है। यहां का पानी अंग्रेजों के दौर में भी पीने और नहाने लायक था, बल्कि मुगल सल्तनत के दौर में तो यमुना ने चारदीवारी दिल्ली की न सिर्फ रक्षा प्रणाली को मजबूत बनाया था, बल्कि शाहजहां के बसाए शाहजहांनाबाद शहर और लालकिले की किलेबंदी के साथ इस प्रमुख शहर की प्यास भी बुझाई थी। इतिहास के इस हिस्से को पर्यावरण और जल मुद्दे पर काम करने वाले अनिल अग्रवाल और सुनीता नारायण ने अपनी किताब (बूंदों की संस्कृति) में दर्ज किया है। किताब बताती है कि, शाहजहां ने लाल किला बनाने के साथ शाहजहानाबाद शहर की भी नींव रखी थी। तब उन्होंने एक आर्किटेक्ट, अली मर्दन खां को खासतौर पर सिर्फ इस काम के लिए लगाया कि वह यमुना का पानी शहर से होते हुए किले तक पहुंचाए।
अली मर्दन खां ने यमुना को नहर के जरिए महल के अंदर तक पहुंचाया, इस नहर का नाम अली मर्दन ही रखा गया, जिसे फैज नहर के नाम से भी जानते थे। इसके साथ ही अली मर्दन ने तुगलक की बनवाई नहर की भी मरम्मत कराई थी। यह नहर अभी दिल्ली की सीमा पर स्थित नजफगढ़ के पास है। दिल्ली शहर में प्रवेश करने के पहले अली मर्दन नहर 20 किमी. इलाके के बगीचों को सींचती थी। इस नहर पर चद्दरवाला पुल, पुलबंगश और भोलू शाह पुल जैसे अनेक छोटे-छोटे पुल बने हुए थे। नहर भोलू शाह पुल के पास शहर में प्रवेश करती थी और तीन हिस्सों में बंट जाती थी। यहां से ये जलराशि ओखला, मौजूदा कुतुब रोड और निजामुद्दीन इलाके में जलापूर्ति करती थी। इस शाखा को इतिहास में सितारे वाली नहर का नाम मिला था।
दूसरी शाखा चांदनी चौक तक आती थी। लाल किले के पास पहुंचकर यह दाहिने मुड़कर फैज बाजार होते हुए दिल्ली गेट के आगे जाकर यमुना नदी में गिरती थी। इसकी एक और उपशाखा पुरानी दिल्ली गेट के आगे जाकर यमुना नदी में गिरती थी। एक उपशाखा पुरानी दिल्ली स्टेशन रोड वाली सीध में चलकर लाल किले के अंदर प्रवेश करती थी। नहर का पानी किले के भीतर बने कई हौजों को भरता था और किले को ठंडा रखता था। इस नहर को चांदनी चौक में नहर-ए-फैज और महल के अंदर नहर-ए-बहिश्त कहा जाता था। हालांकि चांदनी चौक की नहर 1740 से 1820 के बीच यह कई बार सूखी थी, पर इसे बीच-बीच में ठीक कराया गया।
1843 में भी शाहजहानाबाद में 607 कुएं थे जिनमें 52 में मीठा पानी आता था। बाद में बहुत से कुएं बंद कर दिए गए, क्योंकि इनमें गंदी नालियों का पानी भर जाता था। 1890 में चारदीवारी वाले शहर के अंदर इसका पानी आना बंद हुआ। आज भी इस नहर के अवशेष चांदनी चौक इलाके में कहीं-कहीं दिख जाते हैं। 1890 में चारदीवारी वाले शहर के अंदर इसका पानी आना बंद हुआ और यह एक तरह से शुरुआत थी, जब यमुना नदी में भी बड़े पैमाने पर गंदगी डाली जाने लगी थी और नदी ने प्रदूषित होना शुरू कर दिया था। फिर भी ब्रिटिश पीरियड में साल 1920 तक दिल्ली के कई गांवों में यमुना का पानी सीधे तौर पर पीने के उपयोग में लाया जाता था और इसके किनारे लोग नहाते भी थे। ये दिल्ली में यमुना का वो इतिहास है, वो कहानी है, जब पानी के पंप, बिजली और क्लोरीन-अमोनिया जैसे केमिकल से दूर भी दिल्ली एक शहर था। लोग घड़ों से पानी पीते थे। उन घड़ों में कुओं और सीढ़िदार बावड़ियों-दीघियों से पानी आता था। इन कुओं में नहरों से जलस्तर बढ़ता था। ये नहरें यमुना से निकलती थीं और घूम फिर कर यमुना में मिल जाती थीं। वही यमुना जो आज सिर्फ मलबा, कचरा और नालों का पानी बहाने का जरिया भर रह गई है।