‘बंद पड़ी थी यादें सारी बक्से में’
दर्द गढ़वाली की ग़ज़ल

ग़ज़ल
क्या-क्या चीजें रख रक्खी थी बक्से में।
बंद पड़ी थी यादें सारी बक्से में।।
पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ कहता था।
चलता था जो लेकर आरी बक्से में।।
बाहर आने को आतुर थे कुछ किस्से।
मच रक्खी थी मारामारी बक्से में।।
खेल रहे हैं नोटों में अब तो हम भी।
जब से रक्खी है ख़ुद्दारी बक्से में।।
समझौते की फाइल भी है इक इसमें।
जाहिर अपनी है तैयारी बक्से में।।
ख़्वाब भरे हैं आंखों में नींदें ग़ायब।
बेदारी भी लाचारी भी बक्से में।।
चंद किताबें सूखे फूल जले कुछ ख़त।
कितनी सारी चीज रखी थी बक्से में।।
छोड़ गए बाबू जी जब से ये दुनिया।
अम्मा की है दुनियादारी बक्से में।।
बच रक्खी थी जो भी पुस्तक सीलन से।
दीमक ने सब चट कर डाली बक्से में।।
चाहे कितना भरमाओ तुम बोलो झूठ।
अब तो जाएगी सुलतानी बक्से में।।
मिसरा-ऊला कैसे पूरी बात कहे ।
मुद्दत से है मिसरा सानी बक्से में।।
तहखाने में फुफकारे बैठे हैं सांप।
होती कितना खींचातानी बक्से में।।
यादे-माज़ी पर भारी मौजूदा दौर।
जोराजोरी गुत्थमगुत्थी बक्से में।।
‘दर्द’ रमे हैं सब बच्चे मोबाइल में।
बेबस परियां राजा-रानी बक्से में।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094