‘तान रे सीना तान, जमाना बदल रहा है’
- मित्र लोक की मासिक कवि गोष्ठी में कवियों ने गीत-ग़ज़लों से समां बांधा

देहरादून: साहित्यिक एवं सामाजिक मंच मित्र लोक की मासिक कवि गोष्ठी रविवार को खुड़बुड़ा में योगमाया मंदिर स्थित मित्र लोक लाइब्रेरी में हुई, जिसमें कवियों और शायरों ने अपने गीत-ग़ज़लों से समां बांध दिया।
वरिष्ठ कवि कृष्ण दत्त शर्मा ‘कृष्ण’ ने मां सरस्वती की वाणी वंदना से कवि गोष्ठी का शुभारंभ किया। इसके बाद विविध रचनाओं का सिलसिला शुरू हुआ। सबसे पहले हरीश रवि ने कविता ‘ बरसात की एक रात हमारे घर में एक चोर घुस आया।’ सुनाकर पुलिस की लापरवाही पर तंज कसा। वहीं, संजय प्रधान ने ‘ख़ुद को संवारा सजाया जाए, मन में ये ख्याल बार बार आए, इस उम्र में, अल्हड़ दिनों का मजा लिया जाए, क्यों न खुद को, संवारा सजाया जाए।’ सुनाकर तालियां बटोरी।
वरिष्ठ शायर शिवचरण शर्मा ‘मुज़्तर’ ने छोटी बह्र की ग़ज़ल ‘सब मतलब की यारी है, हर बन्दा व्यापारी है। सबको ऐसा लगता है, मेरी गठरी भारी है। ‘ सुनाकर तालियां बटोरी। कार्यक्रम का प्रभावी संचालन कर रहे सतेन्द्र शर्मा ‘तरंग’ ने अपने गीत ‘तुमको मन से चाहा मैंने, तुमसे पावन प्रेम किया है।। यह भी सच है तुमने आकर, जीवन में रस घोल दिया है।।’ से खूब वाहवाही लूटी। हास्य कवि रविन्द्र सेठ रवि ने ग़ज़ल के दो शेरों’ मुश्किल ले ली बैठे ठाले। सांप आस्तीन में हमने पाले।। जिन्हें मुल्क से प्यार नहीं है। खुदा उन्हें जल्दी बुलवाले।। सुनाकर सबका दिल जीत लिया।
इसके अलावा, शादाब मशहदी ने कवि मंचों को लेकर अपने दोहे ‘नाटक, अभिनय, गर्जना, राग-विराग, प्रपंच। कविताओं के मंच पर बैठे हैं सरपंच।।’ से करारा व्यंग्य किया। सुभाष चंद वर्मा ने ग़ज़ल के दो शेरों ‘न हारी है चाहत, और न इंंसा थका है, वादों, इरादों का, अजब सिलसिला है। ये बस्ती है रोशन, घर जल रहे हैं, नयी रोशनी का, नया सिलसिला है’ से खूब वाहवाही लूटी। वरिष्ठ कवि आन्नद सिंह ‘आन्नद’ की कविता ‘तान रे सीना तान, जमाना बदल रहा है। कहता है विज्ञान, जमाना बदल रहा है। कंक्रीट की फसलें तूने बोई, हरियाली खेतों की खोई। ऊंचे बना मकान, जमाना बदल रहा है। तान रे सीना तान, जमाना बदल रहा है।’ को भी बहुत सराहा गया।
इसके अलावा, वरिष्ठ कवि कृष्ण दत्त शर्मा ‘कृष्ण’ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अपनी रचना ‘अपने गीत सुनाऊँ किसको प्रथम श्रोता कौन बनेगा। अगर शब्द कोई लिखा है उल्टा उसको सीधा कौन करेगा।’ से खूब तालियां बटोरी। आनन्द दीवान की कविता ‘कितना कठिन है जीवन पथ पर चलना। कितना जोखिम भरा है सरल होकर जीना-मरना।’ को भी पसंद किया गया। दर्द गढ़वाली ने ग़ज़ल के दो शेर ‘गूंगे-बहरे अंधे देखें। सपने अपने मरते देखें।। आंखों में है जाला उनके। सच को परखें कैसे देखें।।’ सुनाए, जिन्हें भी काफी सराहा गया। वरिष्ठ कवि नरेंद्र दीक्षित ने भी अपनी कविता से तालियां बटोरी।