कवि सम्मेलन का बजट पचा गया संस्कृति विभाग
-स्थानीय कवियों और राज्य आंदोलनकारियों ने जताई नाराजगी, संस्कृति विभाग पर लगाया उपेक्षा का आरोप, मेलों में भी कर रहे अनदेखी

देहरादून: स्थानीय साहित्यकारों के सम्मान के लिए बड़ी-बड़ी बातें सरकार की ओर से कही जाती हैं, लेकिन इनसे जुड़े विभाग सरकार की मंशा को पलीता लगाने पर तुले हुए हैं। इस साल तो दोनों राष्ट्रीय पर्वों पर कवि सम्मेलन/मुशायरे तक का आयोजन नहीं किया गया। ऐसी क्या मजबूरी थी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। ऐसे में स्थानीय कवियों और कविता से प्रेम करने वालों में नाराजगी पैदा हो रही है। उनका कहना है कि सरकार और सरकार से पोषित संस्थाएं राज्य में आयोजित तमाम मेलों में बाहरी राज्यों के तथाकथित बड़े कवियों को बुलाकर करोड़ों रुपए की बंदरबांट कर रही है और स्थानीय कवियों की घोर उपेक्षा की जा रही है। हाल यह है संस्कृति विभाग के पास तो स्थानीय कवियों की सूची ही नहीं है। यही नहीं, कई कवि तो ऐसे हैं, जिन्हें एक बार भी संस्कृति विभाग की ओर से न्योता नहीं मिला, जबकि उनकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान है।
गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि संस्कृति विभाग में तो ऐसे लोग बैठे हैं, जिनका संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है। उनके पास तो स्थानीय कवियों तक की सूची नहीं है, जिसकी सिफारिश चली गई, उसे ही बुला लिया जाता है।
राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती का कहना है कि पृथक राज्य आंदोलन में स्थानीय कवियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उनकी घोर उपेक्षा की जा रही है, जो निंदनीय है। उन्होंने सवाल किया कि कवि सम्मेलन का बजट कहां गया, इसका जवाब जिम्मेदार अधिकारियों को देना चाहिए।
हर साल राष्ट्रीय पर्वों 26 जनवरी और 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर कवि सम्मेलन/मुशायरे की परंपरा रही है, लेकिन इस बार दोनों ही आयोजन नहीं किए गए। जनकवि अतुल शर्मा ने बताया कि 60 और 80 के दशक में तो कवियों के लिए तीन-तीन आयोजन होते थे, जो धीरे-धीरे घटकर दो हुए और इस बार तो एक भी आयोजन नहीं हुआ, जबकि विभाग को राज्य स्थापना दिवस (9 नवंबर) पर भी सांस्कृतिक चेतना जगाने के लिए कवि सम्मेलन का आयोजन करना चाहिए।
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाले जाने-माने कवि नीरज नैथानी को संस्कृति विभाग ने एक बार भी कवि सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया। नैथानी का कहना है कि बाहर के कवियों को बुलाकर स्थानीय कवियों का हक छीना जा रहा है। युवा कवि अवनीश मलासी ने कहा कि गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक तमाम मेलों में कवि सम्मेलन होते हैं, लेकिन उनमें बाहरी कवियों का ही बोलबाला होता है। स्थानीय कवियों के नाम पर दो-चार गिने-चुने कवियों को मौका देकर चुप करा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज को इस मामले का खुद संज्ञान लेना चाहिए और स्थानीय साहित्यकारों से बात करनी चाहिए, ताकि वह उपेक्षित महसूस न करें। इस मामले में संस्कृति विभाग के सचिव हरीश चंद्र सेमवाल से फोन पर संपर्क करना चाहा, तो वह स्विच ऑफ मिला।