कान्हा आओ…फाग सूना पड़ा है तुम्हारे बिना
परवाज़े-अमन की निशस्त में शायरों व शायरात ने जमाया रंग, अंबिका रूही ने लूटी महफ़िल, अनेकता में एकता भारत की सबसे बड़ी ताकत: सूर्यकांत धस्माना, शिक्षाविद डीएस मान ने बढ़ाया हौसला

देहरादून: परवाज़े-अमन की अध्यक्ष अंबिका रूही ने जब अपनी नज़्म कान्हा के नाम ख़त की यह पंक्तियां
‘कान्हा खुद आओ या बुला लो मुझे
फाग सूना पड़ा है तुम्हारे बिना
दिल की गलियों की रौनक है रूठी हुई
राग सूना पड़ा है तुम्हारे बिना
आज मथुरा की रंगत पे छाया धुंआ
देखते क्यों तमाशा छुपकर वहां
उस तरफ है ज़ुलेखां सिसकती हुई
इस तरफ कोई मीरा सौदाई हुई
देवता प्यार के आ भी जा छोड़ ज़िद
इश्क तन्हा पड़ा है तुम्हारे बिना’ … पढ़ी तो श्रोताओं की आंखें नम हो गई। मौका था मेजबान शायरा अंबिका रूही के ओल्ड मसूरी रोड स्थित आवास में आयोजित निशस्त का।
इस मौके पर युवा शायरात मोनिका मुंतशिर ने ग़ज़ल
‘याद की हिचकी हमारे दिल को ऐसी आई है,
शहरे-जां का आज़ मौसम भीना भीना हो गया’ गाकर खूब तालियां बटोरी।
उर्दू शायर सुनील साहिल ने ग़ज़ल
‘उफ्फ़ ! ये दिल पे कैसी आफत आ गई।
रूह तक दिल की अज़ीयत आ गई।’
तुमने तितली को पकड़ कर क्या किया।
उसके रंगों पर मुसीबत आ गई।।’
से खूब वाहवाही लूटी।
युवा शायर आरिफ अतीब की ग़ज़ल
‘तौबा कर ली इश्क़ पुराना छोड़ दिया।
उसकी गली में आना जाना छोड़ दिया।।
देखो इश्क़ क़फ़स से भी हो सकता है।
पंछी ने अब सर टकराना छोड़ दिया। ‘
भी खूब पसंद की गई।
उर्दू के शायर बदरुद्दीन ज़िया की शायरी ने भी खूब तालियां बटोरी, जब उन्होंने अपनी गजल
फिर संवारे कहाँ संवरती है।
कोइ तस्वीर जब बिगड़ती है।।
मेरे चेहरे की सलवटें देखो।
ज़िंदगी किस तरह मसलती है।। पढ़ा तो उनको खूब वाह वाही मिली।
इसके अलावा, परमवीर कौशिक की नज़्म ‘उर्दू क्या और हिंदी क्या है सब की एक ही बोली हो।
सबके घर में ईद मने और सबके घर में होली हो’ को भी खूब दाद मिली। दर्द गढ़वाली के चार मिसरे
‘बोल रहा है गूंगा देखो।
देख रहा है अंधा देखो।।
चिल्लाना अब बंद करो तुम।
सुन ना ले वो बहरा देखो।।’ को भी खूब सराहा गया।
युवा शायर अमज़द खान अमज़द ने कतअ्
‘कौन कहता है परेशानी से डर जाता हूँ।
सख़्त राहों से भी मैं हंस के गुज़र जाता हूँ।
हादसे भी मिरी रखवाली में लग जाते हैं,
लेके जब माँ की दुआ सम्त-ए-सफर जाता हूँ।’ से समां बांध दिया।
एएस शाह ने दो शेर
‘तुझी से मांगता हूँ मैं ये दिल तेरा भिखारी हूं,
बड़ी उम्मीद से झोली तेरे आगे पसारी है।
हमें आपस में लड़वा कर जो हम पर राज करते हो,
हमें नादां न समझो तुम हमें सब जानकारी है।’ सुनाकर रंग जमाया।
इस दौरान युवा शायर राजकुमार राज़ ने निशस्त की निजामत करते हुए अपनी ग़ज़ल
‘सच में थोड़ा झूठ मिलाना ठीक रहेगा,
शायद ये नुस्ख़ा अपनाना ठीक रहेगा।
नए ज़माने के कछुओं ने हमें बताया,
ख़रगोशों पर दाँव लगाना ठीक रहेगा।’ से भरपूर दाद बटोरी।
मशहूर शायर इक़बाल आज़र ने सदारत करते हुए सभी शायरों की हौसला अफजाई की। उन्होंने अपने इस शेर ‘पड़ोसी सा न मिल पाया पड़ोसी।
मेरी किस्मत भी हिंदुस्तान जैसी है।’ सुनाकर सबका दिल जीत लिया।
इस खूबसूरत शाम में बतौर मुख्य अतिथि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष संगठन सूर्यकांत धस्माना व विशिष्ट अतिथि के रूप में शिक्षाविद् सरदार डीएस मान ने पूरे समय शायरों-शायरात की रचनाओं पर उनकी हौसला अफ़जाई करते रहे।
धस्माना ने बतौर मुख्य अतिथि अपने संबोधन में परवाज़े अमन की अध्यक्ष अंबिका रूही को बधाई देते हुए कहा कि भारत की सबसे बड़ी ताकत अनेकता में एकता का सिद्धांत है और सर्वधर्म संभाव व आपसी प्रेम हमारे देश की रग रग में बसा हुआ है, इसीलिए देश भर में अमन के दुश्मनों के लाख चाहने के बाद भी बीते दिनों होली और जुम्मे की नमाज शांति पूर्ण तरीके से संपन्न हो गई। धस्माना ने कहा कि हिंदी और उर्दू मौसेरी बहनें हैं व अन्य सभी भारतीय भाषाएं इनकी छोटी बहने हैं इसलिए जो बहनों को आपस में लड़ाने भिड़ाने की बात करते हैं वे देश के और अमन के दुश्मन हैं। धस्माना ने कहा कि हमें आने वाली पीढ़ियों को इस अनेकता में एकता के मंत्र को समझाना और उस पर अम्ल करना सिखाना होगा तभी देश तरक्की करेगा। शिक्षाविद् व दून इंटरनेशनल स्कूल के संस्थापक अध्यक्ष सरदार डीएस मान ने परवाज़ ए अमन की पहल का स्वागत करते हुए कहा कि देहरादून व पूरे उत्तराखंड में इस प्रकार के आयोजन होने चाहिए।