दर्द गढ़वाली की शायरी में ज़िंदगी की तल्ख़ हक़ीक़त
दर्द गढ़वाली के ग़ज़ल संग्रह 'इश्क़-मुहब्बत जारी रक्खो' की समीक्षा

तमाम अख़बारात-ओ-रिसाइल हिंदुस्तान की सरजमीं पर छपा करते हैं। सोचिए अख़बार के लिए काम करने वाला कोई शख़्स शायर हो जाए तो उसकी शायरी किस तरह की होगी। ज़िंदगी की तल्ख़ हक़ीकत को सादे तौर पर कह देने का हुनर दर्द गढ़वाली साहब की ख़ासियत है।
शायरी की दुनिया में नक़ाब पहनने का रिवाज़ है। गौर से देखिएगा तो पाइएगा कि शायर के शेर कुछ कहते हैं और शायर ख़ुद कुछ और। मगर ये शायर जो लिखता है, वो एक जिम्मेदारी के साथ लिखता है। यानी जो बात ये दिल से समझता है, जिस बात पर भरोसा करता है, अमल करता है, वही लिखता है। सच्ची शायरी और अच्छी शायरी के हवाले से ये शेर देखिए :
शहर में साया नज़र आता नहीं अब।
धूप का जंगल उगाया जा रहा है।।
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नदी के पास भी प्यासे खड़े हैं।
कई किस्से सुने थे बेबसी के।।
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इस क़दर ख़ौफ़ उसका तारी है।
रात को रात भी नहीं कहते।।
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हमीं से है अमीरे-शहर का रुतबा।
हमीं ने तो उसे सर पर बिठाया है।।
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बेटियां चीखकर कह रही हाकिमों।
कब तलक निर्भया कब तलक दामिनी।।
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बेबसों की बेबसी भी देखिए।
कह रहे तुम दिन सुहाने आ गए।।
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दर्द मेरे बांटता थकता नहीं है जो कभी।
और ज़ख़्मों को हवा दे रहा कोई तो है।।
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छोटे मिस्रों में बड़ी बात कहना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन दर्द गढ़वाली साहब के कई शेर बूंद में समुंदर की तरह हैं। इनमें ये शेर काबिले गौर हैं:
दूर रहें सब नफ़रत से।
इतना तो फ़नकार करें।।
घर को घर ही रहने दें।
घर को मत अख़बार करें।।
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हम मुहब्बत के गीत गाएंगे।
नफ़रतों को हवा नहीं देंगे।।
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जिसने हमको दर्द दिया है।
चुपके-चुपके रोता होगा।।
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छोटी बह्र पर दर्द गढ़वाली साहब का काम वाकई काबिले-तारीफ़ है। कई शेर दरे-अहसास पर दस्तक देते हैं। समाजी और सियासी मौज़ुआत पर कई शेर मतलब परस्ती पर तंज कहते हैं। यही देखिए:
धूप बने फिरते हैं सब।
कब होते हैं साये लोग।।
दर्द नहीं है कुछ सीने में।
पत्थर से पथरीले लोग।।
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कब आएगा कब जाएगा।
सब कुछ जैसे लिख रक्खा है।।
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यही चमकीलापन है इनके शेरों में, जोकि बादलों भरी रात में किसी बर्क़ की तरह लहराता है, अब्र में बर्क़ की तरह। दर्द गढ़वाली साहब के नए ग़ज़ल संग्रह ‘इश्क़-मुहब्बत जारी रक्खो’ के लिए मैं उन्हें दिली मुबारकबाद पेश करती हूं और अपनी नेक ख़्वाहिशात का इज़हार करती हूं।
ग़ज़ल संग्रह: इश्क़-मुहब्बत जारी रक्खो
शायर: दर्द गढ़वाली, देहरादून
मोबाइल: 09455485094
पृष्ठ: 132
मूल्य: 150 रुपये
प्रकाशक: समय साक्ष्य, देहरादून
समीक्षक: मीरा नवेली, वरिष्ठ कवयित्री एवं शायरा
मोबाइल: 91493 41439
दर्द गढ़वाली के ग़ज़ल संग्रह ,’ इश़्क-मुहब्बत जारी रक्खो’ को आप इस लिंक से खरीद सकते हैं।