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पिता के बहाने बयां की विभाजन की पीड़ा 

- कैप्टन प्रवीण डावर की पुस्तक 'ही ऑलमोस्ट प्रीवेंटेड पार्टीशन : द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ डॉ. एम. सी. डावर' पर सार्थक चर्चा 

देहरादून: दून पुस्तकालय  में गुरुवार शाम कैप्टन प्रवीण डावर की पुस्तक ‘ही ऑलमोस्ट प्रीवेंटेड पार्टीशन : द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ डॉ. एम. सी. डावर’ पर एक सार्थक चर्चा का आयोजन किया गया। इसमें चर्चाकार के रूप में पूर्व पुलिस अधिकारी आलोक बी. लाल, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल नौरिया और राज्य सभा टीवी के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी गुरदीप सिंह सप्पल ने प्रतिभाग किया।

 इस महत्वपूर्ण चर्चा में वक्ताओं का कहना था  कि यह  पुस्तक  स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण को  सार्थक रूप से उजागर करती है जिसके वजह से  विभाजन की परस्थितियाँ उत्पन्न हुईं। यह पुस्तक  डॉ. एम सी डावर के एक युवा क्रांतिकारी  से शांतिवादी बने व्यक्ति के अंतिम क्षण तक देश के विभाजन को रोकने के लिए किए गए तमाम दृढ़ प्रयासों पर सम्यक प्रकाश डालती है। यह पुस्तक औपनिवेशिक सरकार द्वारा होम्योपैथी को मान्यता दिलाने, शरणार्थियों के पुनर्वास, भारत-पाक मैत्री और सार्वभौमिक शांति को बढ़ावा देने में डॉ. डावर की महत्वपूर्ण भूमिका को भी समेटने का शानदार प्रयास करती है। जिन्ना, नेहरू और शास्त्री द्वारा डावर को लिखे गए तमाम पत्र पुस्तक की आकर्षकता को और अधिक बढ़ाते हैं।

  चर्चा में यह बात भी निकलकर आयी कि पुस्तक में एक ऐसे व्यक्ति की कहानी प्रकट होती है, जिसने भारत के विभाजन से बचाने को अपने जीवन का एक मिशन बनाकर खुद को समर्पित कर दिया। वक्ताओं का मानना था कि उपमहाद्वीप का विभाजन अविश्वसनीय मानवीय कीमत पर हुआ। डॉ. एम.सी. डावर ने विभाजन की पीड़ा को स्पष्टता से देखकर विभाजन के कारण बेघर और निराश हो चुके शरणार्थियों की पीड़ा को महसूस किया, जिसे तब टाला नहीं जा सकता था। उन्होंने न्याय, क्षतिपूर्ति, उचित मुआवजे और बुनियादी मानवाधिकारों के लिए तमाम संघर्ष किये।

  दरअसल यह पुस्तक एक ऐसे महान व्यक्ति की गाथा बताने का यत्न करती है, जिसने पहले अपने देश के लिए स्वतंत्रता हासिल करने और फिर उसके बर्बर विभाजन को रोकने का अथक प्रयास किया। यही नहीं उन्होंने एक बहुलतावादी और प्रगतिशील भारत का सपना भी देखने कि कोशिश की थी। एम शसी डावर के बेटे कैप्टन प्रवीण डावर द्वारा लिखी गई एक बेहतरीन जीवनी के रूप में  सामने आती है। जो एक बेहद पठनीय और ज्ञान से भरपूर  पुस्तक कही जा सकती है। प्रवीण डावर ने अपने पिता और एक स्वतंत्रता सेनानी की यह जीवनी  अब तक अज्ञात अभिलेखों पर आधारित है। मुख्य बात यह है कि तत्कालीन सन्दर्भ में विभाजन को टालने के लिए उनके पिता द्वारा किए गए अथक प्रयासों और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाये रखते हुए मैत्री पूर्ण संबंधों को बनाए रखने की वकालत करती है।

कार्यक्रम में दून पुस्तकालय के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी, निकोलस हॉफलैंड, डॉ. योगेश धस्माना, हरि चंद निमेष, केबी नैथानी, शैलेन्द्र नौटियाल, डॉ अतुल शर्मा, सुन्दर सिंह बिष्ट,बिजू नेगी,  हिमांशु आहूजा, देवेंद्र  कुमार कांडपाल आदि उपस्थित रहे।

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