
कुछ दिनों पहले मैंने ग़ज़ल के व्याकरण या अरूज़ से संबंधित, डाॅ कृष्ण कुमार बेदिल साहेब, (मेरठ) और श्री कुँवर कुसुमेश साहेब (लखनऊ) द्वारा हिन्दी में लिखी दो महत्वपूर्ण पुस्तकों की चर्चा की थी। दोनों पुस्तकें मुझे उन्हीं दिनों डाक से प्राप्त हुईं थी। उन्हीं की निरंतरता में आज डाॅ कृष्ण कुमार नाज़ साहेब लिखित, हिन्दी में उपलब्ध ग़ज़ल के व्याकरण पर तीसरी महत्वपूर्ण किताब, “व्याकरण… ग़ज़ल का” जिसे उन्होंने अपने उस्ताद तथा महान शाइर कृष्ण बिहारी ‘नूर’ साहेब को समर्पित की है, की भी चर्चा करना चाहता हूँ। वैसे तो मैं उन्हीं दिनों इस किताब की भी चर्चा करना चाहता था, परंतु स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने के कारण तथा कुछेक अन्य व्यस्तताओं के कारण उन दिनों यह संभव नहीं हो सका था। लेकिन आज मुझे बेहद ख़ुशी हो रही है कि मैं इस पटल के मित्रों को इस महत्वपूर्ण पुस्तक से अब अवगत करा रहा हूँ।
डाॅ कृष्ण कुमार नाज़ साहब की मौज़ूदा किताब का दूसरा संस्करण 2018 में प्रकाशित हुआ है। मेरे लिये यह विशेष सम्मान की बात है कि आदरणीय डाॅ कृष्ण कुमार नाज़ साहेब ने पुस्तक प्राप्ति की मेरी इच्छा जानकर पिछले वर्ष ही डाक द्वारा भेजकर इस पुस्तक की एक प्रति उपलब्ध कराने की कृपा की थी।
पुस्तक प्राप्ति के बाद ही, अपनी आदत के मुताबिक, पूरी पुस्तक मैं एक ही बैठक में पढ़ गया। लेकिन 128 पेज की इस किताब में ऐसी कुछ ख़ास बात थी कि इसे मैंने कई बार पढ़ा। कम से कम चार बार तो इसे पढ़ ही चुका हूँ।
इसे पढ़कर हिन्दुस्तानी ग़ज़ल-लेखन से बावस्ता कोई भी पाठक विद्वान लेखक और सिद्ध शायर डाॅ कृष्ण कुमार नाज़ की पैनी दृष्टि का कायल हुए बिना नहीं रह सकता है।
डाॅ नाज़ की यह पुस्तक 5 अध्यायों में विभक्त है। प्रथम दो अध्याय आपको इस तरह से सम्मोहित करते हैं कि आप पूरी किताब पढ़ते चले जाते हैं। लेकिन अध्याय 3-4 भी आपको पूरी तरह एंगेज करके रखते हैं। आप कई-कई बार रुकते हैं और वर्णित विषय को आत्मसात करने की कोशिश में उन्हें फिर पढ़ते हैं। आप कई बार पढ़ते हैं, लेकिन बोर नहीं होते। यह बड़ी ख़ास विशेषता है डाॅ नाज़ की लेखन शैली की।
लेकिन जब आप अध्याय 5 तक पहुँचते हैं तो सच में पुस्तक ‘रसमय’ लगने लगती है। व्याकरण जैसे विषय की नीरसता का लेश मात्र अंश नहीं मिलता है, इस अध्याय में। इस किताब से गुज़रते हुए आप जान पाते हैं कि बड़े-बडे और नामचीन शायर भी भावातिरेक में आकर कुछ अनावश्यक गलतियाँ कर बैठते हैं, व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध शेर कहकर निकल जाते हैं; जबकि उन्हें और अच्छी तरह से व्याकरण की शुद्धता को बरक़रार रखते हुए कहा जा सकता था। कहने का आशय यह है कि इस पुस्तक के अध्याय 5 को पढ़ते हुए आप महसूस करते हैं कि ग़ज़ल के बड़े-बड़े नाम आपको डराते नहीं हैं, बल्कि आपमें आत्मविश्वास पैदा होता है कि अगर आप सहज रहेंगे, जल्दबाजी नहीं करेंगे तो आप वैसी गलतियों से ख़ुद को बचा सकते हैं। ध्यान रहे, ऐसा तभी हो सकता है जब आप नामचीन ग़ज़लकारों की गलतियों को व्याकरण-सम्मत नियम मानते हुए या क्षम्य मानते हुए दुहराने की कोशिश न करें। विद्वान लेखक ने, इसीलिए, निर्भीक होकर बड़े-बड़े ग़ज़लकारों की गलतियों को रेखांकित करते हुए पाठकों को वैसी गलतियों से बचने की सलाह दी है।
इस दृष्टि से देखें तो डाॅ कृष्ण कुमार नाज़ की यह किताब एक ज़रूरी किताब बन जाती है, हिन्दी या हिन्दुस्तानी में लिखने वाले हर उम्र के ऐसे शाइर के लिये, जो उर्दू नहीं जानते हैं।
सरल और सहज व्यक्तित्व के मालिक, एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी होते हुए भी विनम्रता की प्रतिमूर्ति, डाॅ कृष्ण कुमार नाज़ साहेब को मैं अपना मित्र भी कह सकता हूँ, यह सोचकर गौरवानुभूति होती है।
डाॅ कृष्ण कुमार नाज़ जैसे महत्वपूर्ण शायर और अरूज़ी लंबे अरसे से ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) से भी जुड़े हुए हैं, जिसके सम्मानित सदस्य आप सभी हैं, ये जानकर आपको भी हर्ष की प्रतीति हो सकती है।पुस्तक के विवरण:
किताब का नाम: व्याकरण…ग़ज़ल का (द्वितीय संशोधित संस्करण), 2018
किताब के लेखक का नाम — डाॅ कृष्ण कुमार नाज़
प्रकाशक — गुंजन प्रकाशन, लक्ष्मी विहार, हिमगिरि कालोनी, काँठ रोड, मुरादाबाद (उप्र)-244001
दूरभाष-9927376877, 9808315744
email: kknaz1@gmail.com
- समीक्षकः अमर पंकज