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साहित्य गौरव सम्मान की चयन प्रक्रिया पर सवाल

- साहित्यकारों में आक्रोश, सीएम से जांच कराने की मांग, प्रख्यात शायर कंवल जियाई, नाज़ कश्मीरी और हरजीत सिंह को भुला दिया

लक्ष्मी प्रसाद बडोनी
देहरादून: उत्तराखंड में हाल ही में घोषित साहित्य गौरव सम्मान की चयन प्रक्रिया को लेकर साहित्यकारों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। साहित्यकारों ने चयन समिति पर सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री से पूरे मामले की जांच कराने की मांग की है। कुछ साहित्यकारों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिलने की भी बात कही है। उन्होंने दून के पुराने शायरों कंवल जियाई, हरजीत सिंह और बिपिन बिहारी सुमन ‘नाज़ कश्मीरी’ जैसे हस्तियों को दरकिनार करने के लिए भी भाषा संस्थान को आड़े हाथों लिया है।
उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से पिछले दिनों उत्तराखंड साहित्य गौरव पुरस्कार दिए गए थे। इनमें कुछ पुरस्कारों पर साहित्यकारों ने सवाल उठाए हैं। कुछ साहित्यकारों ने जहां पिता-पुत्र के चयन को लेकर चयन समिति पर सवाल खड़े किए हैं, वहीं पुस्तक चयन समिति के मानकों में शिथिलता पर भी आपत्ति जताई है। उन्होंने एक प्रोफेसर दंपति को पुस्तक के लिए अनुदान दिए जाने पर भी सवाल उठाए हैं।
गरूड़ निवासी वरिष्ठ साहित्यकार रत्न सिंह किरमोलिया ने तो पूरी चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए आवेदन मांगने को ही ग़लत ठहराया है। उनका कहना है कि भाषा संस्थान को पुरस्कारों के लिए आवेदन मांगने की जगह ऐसा डाटा एकत्र करना चाहिए, जिससे पारदर्शी तरीके से सही साहित्यकार का चयन हो सके। उन्होंने कहा कि पुरस्कार के लिए आवेदन प्रक्रिया में चार वरिष्ठ साहित्यकारों की संस्तुति बिल्कुल ग़लत है, क्योंकि यहीं से जुगाड़बाजी का सिलसिला शुरू हो जाता है। वरिष्ठ साहित्यकार कुसुम भट्ट ने चयन समिति में ऐसे सदस्यों को शामिल करने पर जोर दिया, जिनका उत्तराखंड से सरोकार न हो। वरिष्ठ साहित्यकार चंदन सिंह नेगी ने कहा कि देहरादून में कंवर जियाई, नाज़ कश्मीरी और हरजीत सिंह जैसे तमाम शायर रहे हैं, जिन्होंने देश भर में दून का नाम रोशन किया और अपनी पूरी जिंदगी शायरी में खपा दी थी, लेकिन उनके योगदान को भाषा संस्थान ने भुला दिया।

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