कई सीएचसी में नहीं है प्लास्टर तक लगाने की सुविधा
कैग की रिपोर्ट में हुआ खुलासा, मरीजों को लेनी पड़ती है निजी अस्पतालों की शरण

*लक्ष्मी प्रसाद बडोनी
देहरादून: उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाएं रामभरोसे हैं। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि सीएजी रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। हाल यह है राजधानी के समीप ही कई सीएचसी में मामूली शल्य चिकित्सा तक की सुविधा नहीं है। ऐसे में मरीजों को दून अस्पताल या निजी अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है।
एनएचएम एसेसर्स गाइड बुक 2013 एवं डीएच/एसडीएम के लिए आईपीएचएस के अनुसार जनरल सर्जरी, प्रसूति एवं स्त्री रोग, बाल रोग चिकित्सा, नेत्र विज्ञान, ईएनटी सेवाओं एवं हड्डी रोग से संबंधित शल्य चिकित्सा जिला चिकित्सालय में उपलब्ध होनी चाहिए। सीएचसी के लिए आईपीएचएस मानदंडों के अनुसार सीएचसी को शल्य चिकित्सा में सामान्य एवं आपातकालीन परिचर्या प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए। इसमें ड्रेसिंग, चीरा एवं ड्रेनेज, हर्निया, हाइड्रोसिल, अपेंडिसाइटिस, बवासीर, फिस्टुला एवं घावों में टांके लगाने की शल्य चिकित्सा शामिल हैं। इसे आंतों की रुकावट, रक्तस्राव आदि जैसी आपात स्थितियों को संभालने एवं फ्रेक्चर को कम करने एवं स्पिलंट/प्लास्टर लगाने में भी सक्षम होना चाहिए। लेकिन कैग की टीम को ज्यादातर सीएचसी में अधिकतर सुविधाएं नहीं मिली।
कैग रिपोर्ट के अनुसार चार सीएचसी चकराता, साहिया, बेतालघाट और कोटाबाग में इनमें से एक भी शल्य चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं थी। हैरत की बात तो यह है एसडीएच प्रेमनगर, सीएचसी डोईवाला सहसपुर और भीमताल में हेमरेज और बवासीर तक के इलाज की मामूली सर्जरी तक की सुविधा नहीं है। ऐसे में मरीजों को निजी चिकित्सालय की शरण लेनी पड़ रही है। यह हाल तो उन चिकित्सालयों का है, जहां कैग की टीम निरीक्षण को पहुंची। ठेठ पहाड़ की सुदूर सीएचसी की बात की जाए, तो कई में प्लास्टर तक लगाने की सुविधा नहीं है। ऐसे में सरकार के बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के सरकारी दावे बेमानी साबित हो रहे हैं।