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सान्याल के चित्रों में थी देहात की ताजगी

दून पुस्तकालय में प्रसिद्ध कलाकार बी. सी. सान्याल पर वृतचित्र फ़िल्म का प्रदर्शन

देहरादून : दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आज सायं सुपरिचित कलाकार बीसी सान्याल पर केंद्रित एक बेहतरीन वृतचित्र फ़िल्म का प्रदर्शन किया गया। इस फ़िल्म की अवधि 51 मिनट की थी। इस दौरान फ़िल्म के पटकथा लेखक और निर्देशक पार्थ चटर्जी भी उपस्थित थे।

फ़िल्म प्रदर्शन से पूर्व पार्थ चटर्जी ने फ़िल्म के विषय वस्तु पर प्रकाश डालते हुए बीसी सान्याल के कला के क्षेत्र में दिये गए महत्वपूर्ण योगदान को याद किया। उन्होंने कहा कि बीसी सान्याल पर बनी यह 16 एम.एम. ईस्टमैन कलर डॉक्यूमेंट्री फिल्म, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली द्वारा 1987 में कमीशन की गई थी और 1988 में पूरी हुई थी।

बीसी सान्याल पर एक फिल्म बनाने के पीछे का विचार एक महत्वपूर्ण कलाकार के रूप में उनके योगदान को उजागर करना था, जिनके काम ने अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ा है। उल्लेखनीय है कि सान्याल स्वतंत्रता पूर्व से ही आधुनिक भारतीय कला जगत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। उनके सभी चित्र मानवतावादी भावना के उदाहरण हैं और उनमें मानवीय करूणा, सहानुभूति तथा संवेदनशीलता के दर्शन होते हैं।
यह फिल्म चित्रकार, मूर्तिकार और ड्राफ्ट्समैन के रूप में उनके काम की विविधता को काफी विस्तार से दिखाती है। शुरू से अंत तक दर्शकों को यह उनके अंतर्निहित गुणों की प्रदर्शित करने में सफल रही है। फिल्म में दिखाए गए संगीत का चयन और संकलन पार्थ चटर्जी ने मौजूदा अभिलेखीय रिकॉर्डिंग से किया था, जैसे उस्ताद इलियास खान की सितार पर छायानट (संगीत नाटक अकादमी (एसएनए) अभिलेखागार), उस्ताद अमीर खान की रामदासी मल्हार (एसएनए अभिलेखागार), केसर बाल केरकर की मियां की मल्हार, हिमांशु बिस्वास की बांसुरी (एचएमवी रिकॉर्डिंग से) और तिमिर बरन की ऑर्केस्ट्रा रिकॉर्डिंग (ऑल इंडिया रेडियो अभिलेखागार)।यह फिल्म 1990 में पहले बॉम्बे इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रतिस्पर्धा में थी। बीसी सान्याल की यह फिल्म 1990 में बम्बई में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय वृत्तचित्र और लघु फिल्म महोत्सव में प्रतिस्पर्धा में थी।


इस फिल्म की पटकथा पार्थ चटर्जी ने लिखी है और निर्देशन भी उन्होंने किया हैं। समीरा जैन ने इसका निर्माण और संपादन किया है। छायांकन अनूप जोतवानी का व ध्वन्यांकन सहयोग एम. ए. मैथ्यू का है। फिल्म पर शोध पार्थ चटर्जी और समीरा जैन द्वारा एक वर्ष से थोड़े अधिक समय में किया गया था। संगीत पार्थ चटर्जी द्वारा संकलित किया गया था, और शीर्षक शुका जैन, रीति जैन और जेरोम येप द्वारा निष्पादित किए गए थे।

उल्लेखनीय है कि सान्याल का जन्म 22 अप्रैल सन् 1901 को डिब्रूगढ़, असाम में हुआ था। स्वतंत्रता पूर्व से ही आधुनिक भारतीय कला जगत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने लाहौर के मेयो स्कूल ऑफ आर्ट एण्ड क्राफ्ट में 1929- 36 में शिक्षण कार्य किया। बाद में उन्होंने एक कला संस्था और एक स्वतंत्र कला स्टूडियो की स्थापना की। जिसका नाम था लाहौर स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स। जो बाद में सान्याल स्टूडियो के नाम से लोकप्रिय हुआ। यह स्टूडियो कलाकारों और बुद्धिजीवियों में अपनी कला गतिविधियों के कारण लोकप्रिय हुआ। वे मुख्यतः प्रकृति चित्रक थे और कुशल मूर्तिशिल्पी थे। उन्हें जीवन से प्यार था। उनके मन में लोगों के प्रति दया और हमदर्दी थी। वे जीवन भर सृजनशील रहे। बीसी सान्याल के आरंभिक कार्य अकादमिक पद्धति के हैं। पीड़ित वर्ग व निम्न श्रेणी के लोग इनके प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। गांधी जी का चित्र उनकी सर्वाेत्तम कृतियों में से है। तूलिकाघातों वाली अनोखी चित्रण शैली का विकास किया। सान्याल के दृश्य चित्रों में देहात की ताजगी है। उन्होंने प्रकृति की विभिन्न स्थितियों को सुंदर रंगों में उतारा है।

भवेश सान्याल के चित्रों में मानवतावादी भावना के उदाहरण मिलते हैं। एक भरपूर सृजनात्मक जीवन जीते हुए 102 वर्ष की आयु में 9 अगस्त, 2003 में उनका निधन हो गया था।

कार्यक्रम में केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी व कार्यक्रम सलाहकार निकोलस ने उपस्थित लोगों का स्वागत किया और उनके प्रति आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर लोगों ने सवाल जबाब भी किये।
कार्यक्रम के दौरान अरविंदर सिंह, डॉ.योगेश धस्माना, डॉ. अतुल शर्मा, अभिजीत भट्टाचार्य, हिमांशु आहूजा, हरि चंद निमेष, डॉ.योगेंद्र सिंह नेगी, कुलभूषण, शोभा शर्मा, रंजना शर्मा, जगदीश बाबला, सुंदर सिंह बिष्ट, मेघा विल्सन, सहित शहर के अनेक कला प्रेमी, साहित्यकार, लेखक, पत्रकार और पुस्तकालय के युवा पाठकगण उपस्थित रहे।

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