
देहरादून:दून पुस्तकालय के सभागार में मंचित मुंशी प्रेमचंद के नाटक ‘ठाकुर का कुंआ’ ने अस्पृश्यता की समस्या पर कड़ा प्रहार किया। यह नाटक तत्कालीन समय के एक उस समाज की बात करती है, जिसमें कथित निचली जातियाँ जीवित रहने के लिए किस कदर संघर्ष करती हैं। गाँव में पीने के पानी को लेकर दलित महिलाओं की स्थिति पर भी यह नाटक ध्यान केंद्रित करता है।
सामाजिक लिंग जाति और वर्ग के भेदभाव की दशा को चित्रित करते इस नाटक की नायिका गंगी अपने बीमार पति को कुएँ से पानी नहीं पिला सकती, जो एक मरे हुए जानवर की दुर्गंध से पीने लायक नहीं रह गया है। समाज में दलित होने के नाते उसे पास के ठाकुर के कुएं का साफ पानी लाने की मनाही है।
मूलतः यह नाटक दलितों की इसी गंभीर समस्या को उजागर करता है, जिसे दूर करना हम सबका दायित्व बनता है। भारत ज्ञान विज्ञान समिति और इप्टा के तत्वावधान में मंचित इस नाटक का निर्देशन सतीश धौलाखंडी ने किया।
नाटक के मुख्य पात्रों में गंगी का अभिनय गायत्री टमटा, जोखू का अमित बहुखंडी, ठाकुर का धीरज रावत, ग्रामीण महिला का विनिता रितुंजया व सुमन, भिखू का सैयद अली, हरिया का सतीश धौलाखंडी और पंडित की भूमिका सुशील पुरोहित ने निभाई।
इससे पहले दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से भारतीय संविधान और संवैधानिक मूल्यों पर आधारित श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित भारतीय संविधान के दस एपिसोड की श्रृंखला के तीसरे भाग का प्रदर्शन किया गया।
कार्यक्रम में शिक्षाविद व साहित्यकार डॉ. नन्द किशोर हटवाल ने भाईचारा, बंधुत्व और हमारा संविधान पर चर्चा करते हुए कहा कि एक मज़बूत राष्ट्र के लिये ‘बंधुत्व’ या भाईचारा एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। आज हमारे देश के संदर्भ में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। बड़े पैमाने पर विविधता वाले भारत जैसे देश को आपस में एक सूत्र में बांधे रखने के लिए बंधुत्व और भाईचारे की भावना का विकास आवश्यक है।
भाईचारे की स्थापना से ही सही अर्थों में भारतीय समाज का पुनर्जागरण हो सकता है। आज कतिपय रुढ़िवादी, धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं बुराई का स्वरूप धारण कर चुकी हैं। इन बुराइयों को दूर करके समाज की जागृति से ही बंधुत्व की भावना का विकास हो सकता है। यही सच्चा राष्ट्रवाद है। उन्होंने आगे कहाँ कि आज़ादी, समानता, न्याय के साथ ‘बंधुत्व’ को हमारे संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया है।
वर्तमान समय बंधुत्व और भाईचारे पर संकट का समय है। समाज में भाईचारे की बहाली के लिए शिक्षा एक कारगर माध्यम हो सकता है। खासकर प्रारम्भिक कक्षाओं में शिक्षा के माध्यम से हम बंधुत्व और भाईचारे की बहाली करके संवैधानिक मूल्यों की रक्षा कर सकते हैं। हम देखते हैं कि बाल्यावस्था में ही बच्चे के अंदर बंधुत्व और भाई चारे के विरूद्ध भावनाएं विकसित होने लगती है। बच्चे के अंदर बचपन में ही जाति, धर्म, सम्पद्राय और लिंग भेद पनपने लगता है। उचित शिक्षा के द्वारा बच्चों के अंदर इन भावों के विकास को रोकते हुए भाईचारे और बंधुत्व की भावना का विकास किया जा सकता है।
कार्यक्रम के आरम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया। धन्यवाद सामाजिक चिंतक बिजू नेगी ने किया। इस कार्यक्रम का संचालन इप्टा के उत्तराखंड प्रभाग के अध्यक्ष डॉ. वी. के. डोभाल ने किया। इस अवसर पर हरिओम पाली, सहाब नक़वी, सुरेंद्र सजवाण,पत्रकार त्रिलोचन भट्ट, डॉ.अतुल शर्मा, दर्द गढ़वाली, सत्यानंद बडोनी, अवनीश उनियाल, हिमांशु आहूजा,सुंदर सिंह बिष्ट, जगदीश सिंह महर ,अवतार सिंह, विनोद सकलानी सहित शहर के अनेक रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकारों सहित दून पुस्तकालय के अधिसंख्य युवा पाठक उपस्थित रहे।