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हे दीदी..हे भुली…हे ब्वारी… गीत पर खूब झूमे श्रोता

-दून लाईब्रेरी में रुण-झुण चौमास‘ कार्यक्रम का आयोजन, गढ़वाली लोकगीतों का लोगों ने लिया आनंद

देहरादून: दून लाईब्रेरी एवं शोध मंडल की ओर से दून लाईब्रेरी में‘रुण-झुण चौमास‘ के क्रम में गढ़वाल अंचल में गाये जाने वाले परम्परागत वर्षाकालीन गीतों की शानदार प्रस्तुति दी गई। इसमें श्रीकृष्ण से सम्बन्धित कुछ गीतों की प्रस्तुति भी कलाकारों ने दी। गढ़वाली लोक संगीत के इस विशेष कार्यक्रम में आशा रावत, मीना उनियाल, पुष्पा रावत, अंजु भट्ट एवं बीना गुसाईं की शानदार प्रस्तुति ने श्रोताओं का मन मोह लिया।

कार्यक्रम की आखिरी प्रस्तुति के रूप में स्व. केशव अनुरागी की रचना ‘हे दीदी हे भुली हे ब्वारी गीत पर पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। कार्यक्रम में ढोलक पर साकेत मंडल, बांसुरी पर महेश चन्द एवं हारमोनियम पर रॉबिन करमाकर ने साथ दिया।


कार्यक्रम में प्रस्तुत गीतों में रुण-झुण चौमास और हरे-भरे हो गये पहाड़, सूखी धरती की तीस बुझने, गाड़-गदेरों, नौलों-धारों में पानी छलछला उठने, कुहरे के पसरने जैसे सौन्दर्य के साथ पहाड़ के धुर छानियों में रह रहे पशुपालकों के जनजीवन, घनघोर वर्षा में प्रियतम के वियोग व विवाहिता बेटी के अपने मायके की याद से जुड़े अनेक मार्मिक पक्ष उजागर हुए। रुण-झुण चौमास के इन विविध रंगों की प्रस्तुति को श्रोताओं ने खूब सराहा।


प्रस्तुति देने वाले कलाकारों ने सबसे पहले पारम्परिक गढ़वाली लोकगीत ‘जय जय बद्रीनाथ जी झमको ‘ गाकर कार्यक्रम की शुरूआत की। इसके बाद ‘जलम्यूं नारैणा,‘ ‘ठंडु माठु चौमास‘, ‘सेरा की मींडोली‘, ‘ले पोथली को मास‘, ‘चौमासी रिमझिम‘, ‘मथुरा जनम तेरो बाल गोविन्दा जी‘, ‘ननि ननि घिंगर की डाळी‘, के साथ ही बीना कंडारी द्वारा रचित ‘टिकुली बिंदुली‘ व ‘डांडी कांठी‘ आदि गीतों की प्रस्तुति दी गई।


कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने श्रोताओं का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन शान्ति बिन्जोला ने किया। इस दौरान सभागार में अनेक संस्कृति प्रेमी, रंगकर्मी, लोकगायक, लेखक, साहित्यकार व पाठक सहित शहर के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

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