उत्तराखंडसाहित्य

पुंगी के किरदार में खो गए श्रोता

समाज में बिखरी पड़ी कहानियों का शब्द चित्र है - 'बातों का कैनवस'

शब्द क्रांति लाइव ब्यूरो, देहरादून: पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से शनिवार सांय संस्थान के सभागार में हिन्दी के एक विशिष्ट उपन्यास “बातों का कैनवस“ का लोकार्पण, बातचीत और वाचिक अभिनय का विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। रेखा शर्मा व रंजना शर्मा ने संयुक्त रुप से इस उपन्यास को लिखा है। कार्यक्रम के दौरान उपन्यास में मौजूद कुछ प्रमुख किरदारों का वाचिक अभिनय भी प्रस्तुत किया गया।

बातचीत का संचालन कर रहे लेखक व जनकवि डाॅ. अतुल शर्मा ने कहा कि यह उपन्यास एक गूंगी महिला पुंगी पर केन्द्रित है जो सबसे ज्यादा मुखर है। इसमे बहुत से पात्र हैं और बहुत सी घटनाएं है। लेखिका रेखा शर्मा ने कहा कि मूलतः यह उपन्यास समाज के आस पास बिखरी पड़ी अनेक कहानियों में से एक कहानी का शब्द चित्र है। लेखिका रंजना शर्मा ने उपन्यास का एक अंश पढा कि जब महिला दिवस पर उन महिलाओं को सम्मानित किया गया, जहां वे डेरी चलाती थीं और स्वाभाविक तौर पर मेहनत करती थीं। देखा जाय तो यह एक सकारात्मक सामाजिक उपन्यास है।
बातों के कैनवस उपन्यास के वाचिक अभिनय के दौरान रंगकर्मी सोनिया गैरोला ने इस उपन्यास के महत्वपूर्ण व रोचक अंशो का पाठ किया । एक पात्र “ अम्मा “ से संबंधित घटना का रंगमंचीय पाठ किया । दरअसल अम्मा को सुनाई नही पड़ता था और वह कपड़े सिलकर अपनी आजीविका चलाती थी,कान में लगाने वाली मशीन उसे उसके बेटे ने दिलाई थी। एक रात वह कान में लगी मशीन निकाल कर सो गयी और सुबह जब उठी तो उसके बेटे की मृत्यु हो चुकी थी। दरवाजा खटखटाने की आवाज़ उसे सुनाई नहीं दी थी। इस अंश का भावपूर्ण रंग अनुभव सब श्रोताओं को भावुक कर गया। रंगकर्मी अरुण ठाकुर ने जब उस घटना का वाचिक अभिनय किया जिसमें एक लड़के को रोज़गार के लिए थ्री-व्हीलर दिलाया जाता है पर जब एक दिन वह बेहोश हो गया और उसे पैरालिसिस हो गया तो उसका पूरा रोजगार ही बन्द हो गया तब उपन्यास की एक गूुंगी पात्र पुंगी ने उसे आर्थिक सहायता दी। इस अवसर पर रविन्द्र जुगरान ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण उपन्यास है और इसका वाचन एक विशिष्ट नाट्य अनुभव की सैर कराता है।
कहानी और उपन्यास का वाचन व नाट्य रुप को दर्शकों द्वारा सराहा गया। कार्यक्रम के अंत मे श्रोताओं और दर्शकों ने अपनी जिज्ञासाएं भी व्यक्त की। जनकवि डा अतुल शर्मा ने इन सवालों का उत्तर दिया और कहा कि एक तरह से इस कार्यक्रम को किस्सागोई विधा के अभिनव प्रयोग के तौर पर माना जा सकता है।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने आंमत्रित अतिथियों व श्रोताओं का स्वागत किया। इस मौके पर समाज सेवी रविन्द्र जुगरान, उत्तराखंड आन्दोलन मंच के अध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी, सुनीता प्रकाश, पुष्पलता ममगाईं, सुन्दर सिंह बिष्ट, रामचरण जुयाल, राम लाल खंडूरी, प्रदीप डबराल, समदर्शी बड़थ्वाल व जितेंद्र नौटियाल आदि सहित कई लेखक, बुद्धिजीवी, और दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के युवा पाठक मौजूद रहे।

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