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योजना बनी बेमानी, ग्रामीण किशोरियों को नहीं दिए सेनेटरी पैड

- कैग रिपोर्ट में खुली कलई, बजट के बावजूद न प्रस्ताव लाए और न खरीदे सेनेटरी पैड, मासिक धर्म में स्वच्छता प्रबंधन के लिए बनाई गई थी सेनेटरी नैपकिन योजना, महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से आशा ने वितरित करने थे सेनेटरी पैड

*लक्ष्मी प्रसाद बडोनी
देहरादून: महिला सशक्तिकरण और बाल विकास विभाग की ओर से मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के तहत ग्रामीण किशोरियों के लिए शुरू की गई सेनेटरी नैपकिन योजना बेमानी होकर रह गई है। हाल यह है कि बजट होने के बावजूद सेनेटरी नैपकिन खरीदे ही नहीं गए, जिससे किशोरियों के स्वास्थ्य को जोखिम में डाल दिया गया।

दरअसल, लड़कियों में माहवारी 10-15 वर्ष की आयु के बीच शुरू हो जाती है। यह लड़कियों और महिलाओं को हर माह 4-5 दिन तक होती है। यह प्रक्रिया गर्भधारण के लिए लड़की को तैयार करती है। पूर्ण माहवारी चक्र प्राय: 28 दिन का होता है, लेकिन उससे कम या ज्यादा भी हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरी और महिलाएं इसे लेकर लापरवाह होती हैं और वह कपड़े का प्रयोग करती हैं, जिससे वह कई तरह की इंफेक्शन का शिकार हो जाती हैं।
ऐसे में वर्ष 2016-17 में भारत सरकार की ओर से सभी राज्यों में ग्रामीण किशोरियों को सैनेटरी नैपकिन वितरण की योजना बनाई गई। उत्तराखंड सरकार ने भी इसका महत्व समझते हुए सैनिटरी नैपकिन योजना शुरू की, जो किशोर लड़कियों और महिलाओं पर केंद्रित एक सामाजिक सुरक्षा पहल थी। यह कार्यक्रम रियायती कीमत पर सैनिटरी नैपकिन आसानी से उपलब्ध कराकर मासिक धर्म की गरीबी की समस्या से निपटता है। यह योजना लड़कियों और महिलाओं को अपने मासिक धर्म चक्र को स्वच्छता और आत्मविश्वास से प्रबंधित करने का अधिकार देती है। यह न केवल अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है बल्कि उन्हें शिक्षा और काम सहित दैनिक जीवन के सभी पहलुओं में पूरी तरह से भाग लेने की अनुमति देता है। सैनिटरी नैपकिन योजना को मासिक धर्म के बारे में चुप्पी तोड़ने और उत्तराखंड में मासिक धर्म स्वास्थ्य जागरूकता की संस्कृति को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया गया था। इस योजना के तहत सैनेटरी नैपकिन आशा के माध्यम से छह रुपए की दर से ग्रामीण किशोरियों को बांटे जाने थे, जिसके लिए बाकायदा बजटीय प्रावधान भी किया गया। इसका वितरण आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से होना था।
लेकिन, कैग की रिपोर्ट ने इस योजना की कलई खोल दी। वर्ष 2016-17 में तो सेनेटरी नैपकिन खरीदे गए, लेकिन अगले ही साल यानी वर्ष 2017-18 में कोई पैसा इस मद में प्रस्तावित नहीं किया गया। यही नहीं, वर्ष 2018-19 और 2020-21 में तो बजट उपलब्ध होने के बावजूद सेनेटरी पैड नहीं खरीदे गए। यही हाल 2021-22 में रहा, जब न तो सेनेटरी पैड के लिए बजट दिया गया और न खरीद ही की गई, जिससे ग्रामीण किशोरियों को जोखिम उठाना पड़ा।

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