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पुस्तक अनुदान की आय सीमा बढ़ाने के पीछे है बड़ा खेल

- उत्तराखंड भाषा संस्थान से जुड़े जुगाड़ुओं की नींद उड़ी, साहित्य गौरव पुरस्कार में कथित गड़बड़झाले पर तीखी प्रतिक्रिया से बौखलाहट

देहरादून : उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से वितरित साहित्य गौरव पुरस्कार में कथित गड़बड़झाले से संबंधित खबरों पर तमाम साहित्यकारों की तीखी प्रतिक्रिया आने के बाद संस्थान से जुड़े जुगाड़ुओं की नींद उड़ गई है। पहली बार सोशल मीडिया में तमाम ऐसी खबरें आ रही हैं, जिनसे इन जुगाड़ु किस्म के व्यक्तियों के हित प्रभावित हो सकते हैं।
दरअसल, उत्तराखंड भाषा संस्थान न केवल पुस्तकों के लिए अनुदान देता है, बल्कि खुद अपनी किताबें भी प्रकाशकों से छपवाता है। यही नहीं, तमाम प्रकाशकों के जरिए किताबें मंगवाता है, जिनमें संबंधित लोगों का मोटा कमीशन बंधा होता है। हाल ही में उत्कृष्ट पुस्तक योजना के अंतर्गत पात्रता के लिए आय सीमा बढ़ाना भी एक ‘बड़े खेल’ का हिस्सा है। अब ऐसे लोग भी किताबें प्रकाशित करा सकेंगे, जो थोक के भाव लिखते हैं, लेकिन वार्षिक आमदनी अधिक होने के कारण अनुदान पाने से वंचित रह जाते थे। आय सीमा बढ़ने से अब तीन साल के अंतराल में वह अनुदान लेकर आसानी से अपनी और रिश्तेदारों की किताबें छपवा सकेंगे। इसका फायदा सीधे प्रकाशकों को भी होगा। इनमें कई प्रकाशन संस्थान बाहरी राज्यों से भी हैं।
उत्कृष्ट पुस्तक अनुदान योजना में पात्रता की आय सीमा बढ़ाने को लेकर कई लोगों ने सवाल उठाए हैं, जिससे कई लोग तिलमिला गए हैं। बता दें कि अनुदान के लिए पात्र व्यक्ति की आय सीमा पहले पांच लाख रुपए सालाना होती थी, जिसे अब बढ़ा दिया गया है। वरिष्ठ साहित्यकार प्रेम साहिल का तो साफ कहना है कि पुस्तक के लिए अनुदान उसी व्यक्ति को दिया जाना चाहिए, जो आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण अपनी किताब प्रकाशित कराने में सक्षम न हो। आय सीमा बढ़ाने की बजाय इस बजट से साहित्य की अच्छी किताबें खरीदी जाएं और ऐसी लाइब्रेरी बनाई जाए, जहां बच्चे और युवक पढ़ सकें। इस बजट से बच्चों के लिए कार्यशाला आयोजित की जाएं, जहां उनमें साहित्य के प्रति समझ पैदा हो।

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