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‘मेहनतकश की आवाज थे त्रिलोचन’

-दून लाइब्रेरी में प्रगतिशील कवि त्रिलोचन शास्त्री को किया गया याद

देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र तथा ‘अन्वेषा’ की ओर से शुक्रवार सायं केंद्र के सभागार में हिंदी की प्रगतिशील काव्य परंपरा के सृजनशील कवि त्रिलोचन शास्त्री को उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध पक्षों के जरिये याद किया गया।

कार्यक्रम में वक्ताओं ने कवि त्रिलोचन को हिंदी में प्रयोगधर्मिता का समर्थन करने वाला कवि बताया। वक्ताओं की दृष्टि में वे नवसृजन को बढ़ावा देने वाले कवि के साथ नये रचनाकारों के लिए एक तरह से उत्प्रेरक थे। कवि त्रिलोचन शास्त्री ने वही लिखा जो समाज के निचले व कमज़ोर व्यक्ति के पक्ष में रहता था। वो मेहनतकश समाज की मजबूत आवाज़ थे। उनकी रचनाएं भारत के ग्राम समाज के उस वर्ग पर केन्द्रित रहती थी जो कहीं जगने का प्रयास कर रहा था।

कार्यक्रम में सुपरिचित कवि व समालोचक राजेश सकलानी और संजीब सिंह नेगी ने कवि त्रिलोचन के जीवन व उनकी रचनाओं के विविध पक्षों पर गहन विश्लेषण के साथ गहराई से प्रकाश डाला।

राजेश सकलानी ने कहा कि हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील चेतना के संवाहक और अग्रिम पंक्ति के कवि त्रिलोचन शास्त्री का नाम प्राय: नागार्जुन और केदारनाथ अग्रवाल के साथ लिया जाता है। उन्हें भाषा विज्ञानी के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने आगे बताया कि वे हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत, उर्दू और अंग्रेजी भाषा में पारंगत थे।अपने सरल रूप विधान की कविताओं के अतिरिक्त सॉनेट में काव्य रचने के लिए प्रसिद्ध थे।

उनकी कविताओं पर सकलानी ने कहा कि कवि त्रिलोचन की रचनाएं अपने ग्रामीण समाज के यथार्थ से भली प्रकार परिचित करातीं हैं। और प्रायः बाज़ार के प्रभाव से अलग जनवादी व आधुनिकता का मार्ग प्रशस्त करती दिखायी देती हैं।

संजीब सिंह नेगी ने प्रगतिशील काव्य धारा के इतिहास पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए अज्ञेय मुक्तिबोध जैसे कवियों की बात करते हुए कहा कि कवि त्रिलोचन की कविताओं में आमजन की पीड़ा मिलती है। त्रिलोचन की अधिकांश कविताओं में एक देहाती परिदृश्य खासकर किसान जीवन का चरित्र आम तौर पर मिलता है। इस वजह से उन्हें देशज आधुनिकता का कवि माना जाता है।

कार्यक्रम में जन कवि डॉ. अतुल शर्मा ने भी कवि त्रिलोचन के देहरादून से जुड़े कई महत्वपूर्ण संस्मरणों को साझा किया।

उल्लेखनीय है कि कवि त्रिलोचन शास्त्री प्रमुख हिंदी कवि व प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख हस्ताक्षर माने जाते हैं. उनका मूल नाम वासुदेव सिंह था और वे उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कटघरा चिरानी पट्टी में 20 अगस्त 1917 को जन्मे थे. उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एम.ए. अंग्रेजी की एवं लाहौर से संस्कृत में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी।उनकी चर्चित रचनाओं में ‘धरती’, ‘गुलाब और बुलबुल’, ‘उस जनपद का कवि हूं’, और ‘ताप के ताए हुए दिन’ शामिल हैं, जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने वक्ता अतिथियों व उपस्थित लोगों का स्वागत किया. कार्यक्रम का संचालन अन्वेषा की कविता कृष्णपल्लवी ने किया।. कविता कृष्णपल्लवी ने कहा कि, त्रिलोचन 60-70 के दशक के उन पाँच महत्वपूर्ण कवियों में से एक हैं जिन्होंने हिन्दी की प्रगतिशील काव्य परम्परा के शिल्प, कथ्य और शैली के व्यापक वर्णक्रम का निर्माण किया है। त्रिलोचन की कविताएँ भारतीय जनता के जीवन, सपनों और संघर्षों का व्यापक चित्र प्रस्तुत करती हैं। त्रिलोचन की कविता में जहाँ एक तरफ़ जीवन की जीवटता, संघर्षशीलता और व्यवहारिकता है वहीं भविष्य के आशावाद की कल्पनाशीलता भी है।

कार्यक्रम के दौरान दिनेश जोशी, चन्द्र मोहन मिश्रा, नरेन्द्र सिंह रावत, अरुण कुमार असफल, नवीन कुमार नैथानी, कान्ता डंगवाल घिल्डियाल, शोभा शर्मा, रंजना शर्मा, कल्याण सिंह बुटोला, डॉ. वी. के . डोभाल, शैलेन्द्र नौटियाल, लक्ष्मी प्रसाद बडोनी, प्रवीन भट्ट, जगदीश बाबला, जगदीश सिंह महर, रजनीश त्रिवेदी, सुंदर सिंह बिष्ट सहित शहर के लेखक, साहित्यकार, कवि, साहित्य प्रेमी और अनेक पाठक, युवा छात्र व प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे।

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