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‘राग सुनिए और डायबिटीज को भगाइए’

देहरादून: राग मन को शांति ही नहीं देते, बल्कि राग डायबिटीज, नर्वसनेस, ब्लडप्रेशर, एनीमिया और अस्थमा जैसे रोगों के इलाज में भी मददगार साबित हो सकते हैं। हजारों वर्ष पहले ऋषि-मुनि कैसे स्वस्थ रहते थे, इसका जवाब इन्हीं राग, ध्यान और योग में निहित है। संगीत विशेषज्ञ बताते हैं कि राग की रचना इस तरीके से हुई है कि यह मनुष्य के मन को भटकने नहीं देते, जिससे शरीर को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है। पश्चिमी देशों में तो संगीत आधारित चिकित्सा म्युजिकथैरेपी प्रचलन में भी आ चुकी है।

केंद्रीय विद्यालय के संगीत प्रवक्ता राजकिशन कल्याण ने संगीत के महत्व को रेखांकित करते हुए तमाम बीमारियों के उपचार में लाभ से संबंधित राग और गीत साझा किए। उन्होंने बताया कि तेज बुखार से पीड़ित मरीज को यदि राग बसंत बहार या मालकौंस सुनाया जाए, तो वह फायदेमंद हो सकता है। मालकौंस राग में ‘मन तड़पत है हरि दर्शन को आज’ भजन सुनाया जा सकता है। इसी तरह बारिश के समय होने वाले चर्म रोगों पर काबू पाने के लिए मल्हार, मेघ और देस राग से संबंधित गीत सुनाए या गाए जा सकते हैं। देस राग आधारित गीत ‘चली कौन से देस गुजरिया तू सज-धज के’, मल्हार में ‘बोल रे पपीहरा…’ और राग मेघ में ‘कहां से आए बदरा’गीत है। इसी तरह तिलक कामोद में स्व. गीता दत्त का गीत ‘जाने क्या तूने कही जाने क्या मैंने सुनी’ गीत सुनना-सुनाना चर्म रोग पर काबू पाने में सहायक है।
उन्होंने बताया कि एसीडिटी से पीड़ित रोगी के लिए राग मारवा और कलावती आधारित गीत फायदेमंद हो सकते हैं। डायबिटीज से पीड़ित रोगी यदि जय जयवंती और जौनपुरी रागों को सुनें तो उन्हें खासा लाभ होगा। मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए भी केदार, ललित, नंद, मांड जैसे राग आधारित गीत हैं, जिन्हें सुनकर वह काफी हद तक शांति महसूस कर सकते हैं।

इसी तरह, ललित राग पर आधारित गीत ‘एक शहंशाह ने बनवाकर हसीं ताजमहल सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है’, राग नंद में ‘तू जहां-जहां चलेगा तेरा साया साथ होगा’, व ‘ये वादा करो चांद के सामने भुला तो ना दोगे’, गीत लाभदायक है।
इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति खुद को नर्वस महसूस करता हो या भय लगता हो तो उसे अहीर भैरव जैसे राग सुनाए जा सकते हैं। अहीर भैरव का गीत ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई’ जैसे गीत फायदा पहुंचा सकते हैं। हृदय रो से पीड़ित मरीजों के लिए राग भैरवी, शिवरंजनी, अलैया विलावत और हंस जैसे राग आधारित गीत सुनना या सुनाना फायदेमंद हो सकते हैं। राग भैरवी का गीत ‘सुनो छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी’ और ‘तू गंगा की मौज में जमुना का धारा ‘ और शिवरंजनी राग में ‘जाने कहां गए वो दिन कहते थे..’ लाभदायक है। अस्थमा के लिए राग मारवा, पुरिया के अलावा यमन व मालकौंस लाभदायक है। यमन राग आधारित गीत ‘वो जब याद आए बहुत याद आए’, ‘अहसान तेरा होगा मुझ पर’ और ‘जब दीप जले आना…’ गीत फायदेमंद है। कलर ब्लाइंडनेस के लिए शास्त्रों में राग अंधत्व नाम दिया गया है, जिसके लिए राग मुल्तानी, बसंत बहार और तोड़ी राग प्रचलित हैं।
संगीतज्ञ राजकिशन कल्याण बताते हैं कि राग का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि तानसेन जब राग दीपक गाते थे तो कमरे में बेहद गर्मी हो जाती थी और जब मेघ या राग मल्हार सुनाते थे तो बारिश होने लगती थी। यही प्रयोग चिकित्सा क्षेत्र में भी होता है। दून अस्पताल से सेवानिवृत्त सीनियर एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ. राकेश बलूनी म्युजिक थैरेपी को लेकर बहुत ज्यादा आश्वस्त तो नहीं हैं, लेकिन इससे इन्कार भी नहीं करते हैं। उनका मानना है कि म्युजिक थैरेपी से मरीज का मन शांत होता है और उपचार में मदद मिलती है।

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