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उत्तरकाशी आपदा: यही प्रकृति के गुस्से की भाषा

जनकवि डॉ. अतुल शर्मा की क़लम से आंसू बनकर निकली कविता

उत्तरकाशी जनपद के धराली गांव में बादल फटने से हुई तबाही से देशभर के लोग सन्न रह गए। कवियों की कलम भी इस मंज़र को देखकर कराह उठी। जनकवि डॉ. अतुल शर्मा ने प्रकृति के गुस्से को बयान करती हुई एक कविता विशेष तौर से हमारे पाठकों के लिए लिखी, जिसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।


कविता

किनारे मझधार हो गये
क्या पैंतीस सैकेंड में

यही प्रकृति के
गुस्से की भाषा

तेज़धार पानी बस्ती से
बहता
बहा ले जाता मकानों के साथ सब
बादल फटता है तो
हो सकता है कुछ भी

डर से लिपटी बरसात
तबाही ओढ़े
नही सुनती किनारे खड़े लोगों की चीख

बह जाता देखते ही देखते सब
दबा क्या क्या
सूखे हुए आंसुओं मे
दबा सब
किनारे मजधार हो गये

किनारे
जो घर बने हैं
वो खतरों के पास हैं

यह है प्रकृति के
गुस्से की लिपियाँ
उफनती लहरों सी

किनारे
मजधार हो गये

_ डॉ. अतुल शर्मा

 

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