जब राहत इंदौरी ने राष्ट्रपति से कहा- यार शे’र सुन
♦️ जानी वाकर पीकर भी राहत के दोस्तों को मज़ा नहीं आया तो पंहुचे कलाली, और फिर आ गया महफ़िल से एक-एक करके उठने का वक़्त

मरहूम शायर राहत इंदौरी दिल से भी ख़ुशमिज़ाज़ थे। उनके कई किस्से दोस्तों में मशहूर हैं, जो आमजन में भी चर्चा का विषय बने हुए हैं। आज का किस्सा भी बड़ा मजेदार है। राहत इंदौरी कभी-कभार किसी बड़े मुशायरे में अपने दोस्तों को भी बाहर ले जाया करते थे। बात उस समय की है जब ज्ञानी जैल सिंह देश के राष्ट्रपति हुआ करते थे। वे शाइरी के बड़े शौक़ीन थे। वे राष्ट्रपति भवन में मुशायरा आयोजित करवाया करते थे। एक बार राहत इंदौरी भी उस मुशायरे में बुलवाए गए। उन्होंने मोहन पेंटर से पूछा कि दिल्ली चलना है क्या.. राष्ट्रपति भवन देखने? मोहन पेंटर फ़ौरन तैयार हो गए। अब दोनों दिल्ली पहुंचे। उन्हें बेहतरीन होटल में ठहराया गया। वहां और भी शाइर थे जो शराब के शौक़ीन थे लेकिन किसी ने राष्ट्रपति का लिहाज़ करते हुए मुशायरे से पहले शराब पीना मुनासिब नहीं समझा, तो किसी ने बहुत थोड़ी-सी शराब पी। लेकिन राहत इंदौरी ने तो उस दिन अपने निर्धारित कोटे से भी ज़्यादा शराब पी ली और मोहन पेंटर को भी पिलवा दी। अब रात को मुशायरे के लिए सभी शाइरों को राष्ट्रपति भवन पहुंचाया गया। फिर राष्ट्रपति जेल सिंह के आते ही मुशायरा शुरू हुआ। मुशायरे में कई बड़े अधिकारी, मंत्री और गणमान्य नागरिक भी मौजूद थे। श्रोता बड़े बेहतरीन तरीके से मुशायरा सुन रहे थे। अब संचालक ने राहत इंदौरी को शे’र सुनाने की दावत दी।
(फोटो में राहत इंदौरी के साथ दाढ़ी वाले रमेश चोकसे हैं और उनके पास मोहन पैंटर हैं। दूसरी फोटो में मोहन पेंटर की दुकान पर बैठे हैं उनके शागिर्द सुरेन्द्र पेंटर जिन्होंने आज भी अपने गुरु का नाम दुकान से मिटने नहीं दिया।)
राहत इंदौरी ने अपने अंदाज़ में पहले हल्की-फुल्की बातों के साथ कुछ मत्तफ़रिक शे’र सुनाते हुए अपना माहौल बनाना शुरू किया। अभी उन्होंने कुछ शे’र ही पढ़े थे कि राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के पास बैठे किसी व्यक्ति (जो ज़ाहिर है वीआईपी ही होगा) ने उनसे कुछ कहा तो ज्ञानी जैल सिंह उनकी तरफ़ झुककर उस बात का जवाब देने लगे। राहत इंदौरी जो अब अपने फार्म में आ चुके थे, उन्होंने जब ज्ञानी जैल सिंह को बात करते देखा तो वो जैसा अक्सर मुशायरे में किसी को भी एक दम से बोल पड़ते थे, वैसा ही बोल बैठे। उन्होंने कहा-
यार.. जैल सिंह ! शे’र सुन यार..!
उनके ऐसा कहते ही एक पल को माहौल में सन्नाटा छा गया। श्रोताओं के साथ सारे शाइर भी भौंचक्के रह गये। सबको लगा कि आज राहत इंदौरी सबको फंसवाएगा। लेकिन जैल सिंह तो शाइरों के बीच उठने-बैठने वाले आदमी थे। और ख़ुद भी थोड़ी बहुत शाइरी कर लेते थे, वो शाइरों के मिज़ाज से वाकिफ़ थे, सो उन्होंने राहत इंदौरी की बात पर फ़ौरन जवाब देते हुए कहा–
हम आपको ही तो सुनने आए हैं हुज़ूर… इनायत करें।
राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के इस जवाब के बाद सबने राहत की सांस ली और माहौल फिर नार्मल हो गया। राहत इंदौरी ने भी ख़ूब सुनाया और राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने भी उन्हें ख़ूब दाद दी।
जब राहत इंदौरी और मोहन पेंटर वापस आए तो कई दिनों तक महफ़िलों में मोहन पेंटर ये वाक़या लोगों को सुनाया। सुनने वालों में मोहन पेंटर के एक शागिर्द सुरेन्द्र पेंटर भी थे, उन्हीं की ज़बानी ये वाक़या मुझ तक पंहुचा।
जानी वाकर पीकर सब पहुंच गए कलाली-
+++++++++++++++++
शोहरत-दौलत आने के बाद भी राहत इंदौरी ने अपने पुराने दोस्तों कभी दूरी नहीं बनाई। चूंकि वो अक्सर बाहर मुशायरों में रहते थे, सो उनसे अपने दोस्तों की रात की महफ़िलें भी छूटने लगी थीं। लेकिन जब कभी इंदौर आते तो अपने दोस्तों से ज़रूर मिलते और उनका पूरा ख़याल भी रखते थे।
एक बार राहत साहब शायद दुबई या शारजाह मुशायरे से लौट कर आए तो वो उस समय की बड़ी मंहगी शराब, जानी वाकर की दो बोतल साथ ले आए। एयरपोर्ट से टैक्सी करके वो सीधे ग्वाल टोली में मोहन पेंटर की दुकान पर पहुंचे। मोहन पेंटर के शागिर्द सुरेन्द्र पेंटर भी वहीं मौजूद थे। राहत इंदौरी ने टैक्सी से उतर कर मोहन पेंटर को जानी वाकर की एक बोतल देते हुए कहा कि ये तुम लोगों के लिए है.. तुम लोग पी लेना..मेरा इंतज़ार मत करना.. मैं घर जाकर अब सोऊंगा। मोहन पेंटर तो महंगी शराब की बोतल देखकर ही ख़ुश हो गये।
फ़िर राहत साहब ने सुरेन्द्र पेंटर को एक तरफ़ बुला कर दूसरी बोतल दी और कहा कि इसे अपने पास रखना। रात को रवि (शबाब)आएगा तो अपन साथ पिएंगे।
सुरेन्द्र पेंटर ने कहा- ठीक है ‘गुरु’।
फिर टैक्सी में बैठते-बैठते राहत इंदौरी को शरारत सूझी तो उन्होंने सुरेन्द्र पेंटर को बुलाकर कहा कि इन सबकी ( मोहन और उनके दोस्तों की) रिपोर्ट मुझे शाम को बताना। सुरेन्द्र पेंटर ने सर हिला कर हां कह दिया।
अब राहत इंदौरी आराम करके रात को मोहन की दुकान पर पहुंचे तो वहां सुरेन्द्र पेंटर मिल गया।
राहत इंदौरी ने उनसे पूछा- क्या रिपोर्ट है सुरेन्द्र..?
सुरेन्द्र पेंटर ने राहत साहब को बताया कि आपके जाने के बाद भी दोपहर में कमल, बालू और रमेश बाबू जी भी आ गये थे। मोहन उस्ताद ने जैसे ही उन्हें बताया कि ‘गुरु’ उनके लिए बाहर से महंगी वाली शराब लाए हैं तो सब ख़ुश हो गये। फिर तो किसी से सब्र नहीं हुआ। जानी वाकर की बोतल खोल ली गई। सभी ने आपकी बड़ी तारीफ़ करते हुए शराब पी। जब शराब पीने के कुछ देर बाद भी किसी को नशा नहीं हुआ तो सब कहने लगे कि यार ये कैसी दारू है..साली चढ़ ही नहीं रही है। सारा मूड ही ख़राब कर दिया। चलो अपन तो कलाली चलते हैं, तभी कुछ मज़ा आएगा। और सभी लोग कलाली को रवाना हो गए। इतना सुनते ही राहत इंदौरी ज़ोर से हंस पड़े और सुरेन्द्र पेंटर से बोले – सालों को कलाली के सिवा कोई शराब नहीं चढ़ सकती।
महफ़िलों का वक़्त भी मुकर्रर होता है —
————————-
राहत इंदौरी और उनके दोस्तों की महफ़िल ख़ूब आबाद हुईं और फिर एक-एक करके महफ़िल से उठने की शुरुआत हो गई। शुरुआत चांद पेंटर से हुई जिन्हें बहुत पहले ही कैंसर हो गया था। ये इस महफ़िल का पहला शख़्स था, जिसने सबसे पहले अलविदा कह दिया। उसके कई साल बाद मोहन पेंटर भी कैंसर का शिकार होकर चलते बने। प्रकाश मैकेनिक बहुत तेज़ बुलेट चलाते थे। उनकी एक एक्सीडेंट में मौत हो गई। फिर रमेश बाबू जी भी थक गए और वे भी महफ़िल को अलविदा कह गए। और फिर इस महफ़िल के नायक-हीरो राहत इंदौरी कोरोना का शिकार हो गए और इस महफ़िल की सारी रौनकें अपने साथ ले गए।
कई सालों बाद कल मैंने स्टेशन के पास छोटी ग्वालटोली में एक बार फिर मोहन पेंटर की 54 साल पुरानी दुकान पर मोहन पेंटर के शागिर्द सुरेन्द्र पेंटर से मुलाक़ात की। मोहन पेंटर के इंतकाल को बरसों हो गये लेकिन उनकी दुकान पर आज भी उन्हीं का नाम लिखा हुआ है। इस दुकान को अब उनके शागिर्द सुरेन्द्र पेंटर चलते हैं।
3×8 फुट की ये दुकान गवाह है कि इसमें कैफ़ भोपाली, नीरज, अंजुम जबलपुरी, नूर इंदौरी, मुज्तर इंदौरी,से लेकर न जाने कितने बड़े शाइरों ने शराबनोशी की है। आप जब इसे देखेंगे तो आपको यक़ीन नहीं होगा कि इस संकरी-सी गलीनुमा दुकान में कैसे 5-6 लोग बैठे भी जाते थे और वहां शराब की महफ़िल भी जम जाती थी।
सुरेन्द्र पेंटर से कल ये भी पता चला कि इस महफ़िल के सबसे पुराने एक शख़्स कमल पेंटर, धार रोड पर रहते हैं और बहुत बुज़ुर्ग हो चुके हैं। ख़ास बात ये है कि वे सेहतमंद हैं और आज भी उनकी सुबह का सूरज कलाली से ही उगता है और कलाली में ही अस्त होता है। उसी महफ़िल के साथी रवि शबाब और सुरेन्द्र पेंटर अपने-अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों में मसरूफ़ हैं और कभी-कभी मुझे राहत इंदौरी और उनके दोस्तों के क़िस्से सुनाकर पुरानी यादों को ताज़गी बख़्शते रहते हैं।
(✍️ अखिल राज, पत्रकार-लेखक-शायर)