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‘ मैं रहूं या न रहूं भारत ये रहना चाहिए’

- कवियों ने स्व. त्रिवेदी को 86वीं जयंती पर दी काव्यांजलि,  प्रसिद्ध गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र के आवास में हुआ आयोजन, स्व. त्रिवेदी की यादें की साझा

देहरादून: अपने गीतों से देहरादून का नाम देश-दुनिया में रोशन करने वाले प्रसिद्ध कवि गिरिजा शंकर त्रिवेदी की 86वीं जयंती पर कवियों ने उन्हें काव्यांजलि दी। साहित्यिक और सामाजिक संस्था स्वयंप्रभा के बैनर तले रविवार को प्रसिद्ध गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र के बसंत इन्कलेव स्थित आवास पर आयोजित कार्यक्रम में स्व. त्रिवेदी को अदबी जगत में दिए गए उनके योगदान के लिए भी याद किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत स्व. त्रिवेदी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर की गई। इसके बाद गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र ने गिरिजा शंकर त्रिवेदी को लेकर अपनी यादें साझा की। उन्होंने कहा कि त्रिवेदी ने उत्तराखंड खासकर देहरादून में आयोजित तमाम कवि सम्मेलन में युवा कवियों को मंच प्रदान किया। कहा कि त्रिवेदी के समय जो माहौल कविता का देहरादून में था, वह खत्म हो गया है। उन्होंने दोहे और गीत भी सुनाए। इसके बाद वरिष्ठ कवयित्री डॉली डबराल ने पहले स्व. त्रिवेदी की रचना पढ़ी और इसके बाद अपनी कविता की इन पंक्तियों ‘कैसे कहूं किससे कहूं, संशय घना है, जिंदगी के मोड़ पर तम आ घिरा है’ से तालियां बटोरी। वरिष्ठ कवि सोमेश्वर पांडे की कविता ‘मजदूर की झोपड़ी कभी यहाँ तो कभी वहाँ बसी और उजड़ गई।

तुझे क्या पता कि कौन कौन दबा है नींव में, तेरा महल बनाने को’ को भी खासा सराहा गया। युवा कवयित्री और शिक्षाविद् भारती मिश्रा ने जब स्व. त्रिवेदी का गीत ‘ उनको चलना ही है मंजूर  नहीं, वरना  मंजिल है यहीं पास कहीं दूर नहीं’ पढ़ा तो श्रोताओं ने उन्हें खूब तालियों से नवाजा।

वरिष्ठ कवयित्री रेणु पंत ने भी स्व. त्रिवेदी को याद करते हुए अपनी कविता ‘देश से है प्यार तो हर पल ये कहना चाहिए, मैं रहूं या न रहूं भारत ये रहना चाहिए।सिलसिला ये बाद मेरे यूं ही चलना चाहिए’ सुनाकर महफ़िल में वाहवाही लूटी। कवि गोष्ठी का प्रभावी संचालन करते हुए वरिष्ठ कवयित्री बसंती मठपाल की यह पंक्तियां ‘ज्ञान और विज्ञान मनुज के रहे जगत में काम्या निरंतर। इनसे ही उत्कर्ष राग के फूटे हैं युग-युग में नव स्वर। फिर से उस विज्ञान वाटिका में नूतन अंकुर फूटे हैं, जिनके कारण अगणित रुढ़ि-रीतियों के बंधन टूटे हैं।।’ भी खूब पसंद की गई। शायर दर्द गढ़वाली के चार मिसरे ‘ क्या-क्या चीजें रख रक्खी थी बक्से में। बंद पड़ी थी यादें सारी बक्से में।। पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ कहता था। चलता था जो लेकर आरी बक्से में।।’ भी खासा पसंद किए गए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शिक्षाविद डॉ. लालिमा वर्मा ने सभी कवियों की सराहना करते हुए डॉ. त्रिवेदी की यादों को साझा किया। इस मौके पर स्व. त्रिवेदी के पुत्र रजनीश त्रिवेदी और सुनील त्रिवेदी को उत्कृष्ट आयोजन के लिए साधुवाद दिया गया।

 

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