उत्तराखंडधार्मिक

खरना पूजा के साथ महिलाओं का निर्जला व्रत शुरू 

देवभूमि में छठ महापर्व को लेकर जबर्दस्त उत्साह, संतान सुख और परिवार की खुशहाली के लिए रखा जाता है यह व्रत

देहरादून : सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना के महापर्व छठ पूजा को लेकर लोगों में जबर्दस्त उत्साह है। हर साल देहरादून में हजारों लोग चार दिनों तक चलने वाले इस कठिन व्रत को संतान सुख, सुख समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए रखते हैं। नहाए खाए के बाद छठ पर्व के दूसरे दिन बुधवार को खरना शुरू हुआ। व्रती महिलाओं ने पूजा पाठ के साथ साथ छठी मैया का प्रसाद बनाया।

देहरादून में मालदेवता, टपकेश्वर, प्रेमनगर, चंद्रबनी समेत 30 से ज्यादा स्थान छठ पूजा के लिए चिह्नित किए गए हैं। बुधवार से खरना के तहत 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो गया। व्रती महिलाएं अब शुक्रवार को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद अपना व्रत खोलेंगी। इससे पहले महिलाओं ने मिट्टी के बर्तन में चावल, गन्ने  और गुड़ के रस से रसियाव (खीर) तैयार की। पूजा के बाद प्रसाद के रूप में परिवार के सब लोगों ने खीर खा। इसके बाद मध्य रात्रि से महिलाओं का निर्जला व्रत शुरू हुआ, जो 36 घंटे बाद खुलेगा। पूर्वा सांस्कृतिक मंच के महासचिव सुभाष झा ने बताया कि देहरादून जिले में करीब पौने दो लाख महिलाएं इस व्रत को करती हैं। कुछ पुरुष लेटकर घाट तक जाकर व्रती महिलाओं का साथ देते हैं। यह व्रत बहुत कठिन होता है।

राम-सीता की कथा से जुड़ी छठ पूजा की परंपरा :पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत तब हुई जब भगवान श्री राम 14 वर्षों का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे। राज्याभिषेक के बाद माता सीता ने अपने परिवार और राज्य की सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देव की उपासना की और छठ व्रत का पालन किया। मान्यता है कि उनकी इस आराधना से राज्य में सुख-शांति का संचार हुआ और तभी से यह परंपरा हर वर्ष जारी है।

छठ व्रत का कठोर तप, शुद्धता की विशेष परंपरा : छठ व्रत को अत्यंत कठिन तपस्या माना जाता है। इसमें व्रती चार दिनों तक निराहार रहकर सूरज की पहली और अंतिम किरण को अर्घ्य देते हुए व्रत का पालन करते हैं। छठ पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। यह पर्व जाति, धर्म की सीमाओं से परे है। समाज में आपसी समर्पण और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है। लोग अपने दुख सुख को भूलकर एक साथ छठी मैया की उपासना करते हैं, जिससे समाज में एकता और प्रेम का संदेश फैलता है।

छठ पूजा में विशेष रूप से शुद्धता का ध्यान रखा जाता है। बाजार से लाया गया गेहूं के आटे का प्रसाद पवित्रता के साथ बनाया जाता है। प्रसाद में इस्तेमाल फलों और फूलों की शुद्धता का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।

सूर्य देवता और छठी मैया का आशीर्वाद :छठ व्रत में सूर्य देव और छठी मैया की विशेष पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि छठी मैया संतान सुख, स्वास्थ्य और सौभाग्य की देवी हैं, जो व्रती श्रद्धा भाव से इस पूजा का पालन करते हैं, उनके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। उनके घर में सुख समृद्धि आती है।

मुख्यमंत्री ने दी बधाई
देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को छठ पूजा की बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भगवान भास्कर व छठी मइया सबकी मनोकामना पूर्ण करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि छठ पूजा का पर्व सूर्य देवता की उपासना और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का महान अवसर है। यह पर्व प्रकृति और मानव के बीच के प्रेम को भी दर्शाता है। सूर्य देवता की आराधना से हम जीवन के हर पहलू में सकारात्मकता और नई ऊर्जा का अनुभव करते हैं। सीएम धामी ने कहा कि छठ पूजा का महत्व सिर्फ धार्मिक आस्था में नहीं, बल्कि हमारे समाज की संस्कृति, एकता और सौहार्द में भी निहित है। यह पर्व हमें एकजुट करता है और हमें अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभाने की प्रेरणा देता है।

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