दरिंदों को उम्रकैद की सजा से साहित्यकार संतुष्ट नहीं
- अंकिता के तीनों दोषियों को फांसी पर लटकाया जाना चाहिए था, फांसी का लाइव प्रसारण होता तब होता खौफ पैदा

देहरादून: बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड के दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाने के अदालत के फैसले से अधिकांश साहित्यकार और रंगकर्मी संतुष्ट नहीं हैं। खासकर महिला साहित्यकारों का मानना है कि ऐसे दरिंदों को फांसी की सजा सुनाई जानी चाहिए थी। यही नहीं फांसी की सजा का लाइव प्रसारण भी होना चाहिए था, ताकि उसे देखकर ऐसे अपराधियों की रूह कांपती। लेकिन जो फैसला आया है, उससे तो अपराधियों के हौसले और बुलंद हो सकते हैं। कोटद्वार में एडिशनल सेशन जज रीना नेगी की अदालत ने शुक्रवार को अंकिता भंडारी हत्याकांड में भाजपा नेता विनोद आर्या के पुत्र पुलकित आर्या समेत तीन अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए साहित्यकार और शिक्षाविद् कंचन नेगी ने कहा कि अंकिता के हत्यारों को फांसी की सजा सुनाई जानी चाहिए थी। मौके पर ही फांसी की सजा का लाइव प्रसारण होना चाहिए था, जिससे अन्य अपराधियों में भी खौफ पैदा होता। उन्होंने कहा कि एक मां की पीड़ा को एक मां ही समझ सकती है।
वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद डॉ.सविता मोहन का भी मानना है कि ऐसे दरिंदों को उम्रकैद की सजा कोई मायने नहीं रखती। तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाकर कड़ा संदेश समाज में जाना चाहिए था।

वरिष्ठ कथाकार और कवयित्री डॉली डबराल ने कहा कि अंकिता भंडारी हत्याकांड ने उन्हें निर्भया की याद दिला दी थी, जिसे देश की राजधानी दिल्ली में कुछ दरिंदों ने खौफनाक तरीके से न केवल उससे बलात्कार किया था, बल्कि निर्मम हत्या कर डाली थी। उन्होंने कहा कि ऐसे दरिंदों को तुरंत सजा सुनाकर फांसी पर लटका देना चाहिए था।

रंगकर्मी डॉ. वीके डोभाल का कहना है कि अदालत का फैसला तो आया, लेकिन अंकिता और उसके माता-पिता को इंसाफ नहीं मिल पाया। उन्होंने कहा कि पहले तो वीवीआईपी का नाम सामने नहीं आने दिया गया और अब अंकिता के हत्यारों को सिर्फ उम्रकैद की सजा सुनाकर जनभावनाओं से भी खिलवाड़ किया गया। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह जिला अदालत का फैसला बदलते हुए तीनों दरिंदों को फांसी की सजा सुनाकर एक कड़ा संदेश अपराधियों को देगी।
युवा साहित्यकार धर्मेंद्र उनियाल ने उम्र कैद की सजा को कम बताया और कहा कि यह कोई सजा नहीं है। तीनों दरिंदों को सरेआम फांसी पर लटकाने की सजा सुनाई जानी चाहिए थी।

साहित्यकार कल्पना बहुगुणा ने कहा कि तीनों दोषियों पर जब जुर्म साबित हो चुका है, तो उन्हें निश्चित तौर पर फांसी की सजा ही दी जानी चाहिए थी। उम्र कैद की सजा का कोई मतलब नहीं है।