
जाने-माने ग़ज़लकार दीक्षित दनकौरी ने एक अनूठा प्रयोग किया है। दीक्षित दनकौरी बताते हैं कि दुनियाभर में बड़ी संख्या में गज़़ल को पसंद किया जाता है। हर कोई गज़़ल लिखने की कला सीखना चाहता है। इसी मकसद से उन्होंने “गज़़ल की पाठशाला” शुरू की है। आप भी इस पाठशाला से ऑनलाइन गज़़ल लिखना, पढ़ना व गाना सीख सकते हैं।
खुशबू सक्सेना माथुर के कुशल संचालन में गाजिय़ाबाद व दिल्ली एनसीआर से पधारे गोविंद गुलशन, अरविंद असर, अनिल मीत, चेतन आनंद, गुर चरन मेहता रजत, पूनम माटिया, गार्गी कौशिक, श्वेता त्यागी, सोनम यादव, चेतना कपूर सहित करीब 40 शायर/शायराओं ने गज़़ल पाठ करके गोष्ठी को बुलंदियों पर पहुंचाया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर सीमाब सुल्तानपुरी ने की। कार्यक्रम- संयोजक, अकादमी के अध्यक्ष दीक्षित दनकौरी (9899172697) ने बताया कि गज़़ल लिखना सीखने के इच्छुक गज़़ल प्रेमियों के लिए भविष्य में भी अकादमी ‘गज़़ल की पाठशाला’ के ऐसे त्रैमासिक पाठ्यक्रमों को जारी रखेगी। इस अवसर पर स्वागताध्यक्ष राजीव सिंहल ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
आप ऐसे कर सकते हैं संपर्क
हिन्दुस्तानी गज़़ल अकादमी के अनोखे कार्यक्रम “गज़़ल की पाठशाला” में आप भी शामिल हो सकते हैं। आप मोबाइल नम्बर 9899172697 पर संपर्क करके गज़़ल सीखने के लिए अपना नाम लिखवा सकते हैं। यह तीन महीने का कोर्स है। इस दौरान गज़़ल के अनेक विशेषज्ञ गज़़ल की विद्या का ज्ञान प्रदान करते हैं।
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कौन हैं दीक्षित दनकौरी
दीक्षित दनकौरी एक प्रसिद्ध शायर व कवि हैं। उनका पूरा परिचय तो यहां देना संभव नहीं है। यहां हम संक्षिप्त में दीक्षित दनकौरी से आपका परिचय करा रहे हैं। दीक्षित दनकौरी का पूरा नाम भुवनेश्वर प्रसाद दीक्षित है। दीक्षित दनकौरी उनका साहित्यक नाम है। दीक्षित दनकौरी मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जिले के दनकौर कस्बे के रहने वाले हैं। वें शिक्षक के तौर पर दिल्ली सरकार में अपनी सेवाएं देकर सेवानिवृत्त हुए हैं। इन दिनों उनका पूरा प्रयास देश व दुनिया में नए कवि व शायर पैदा करने का है। भारत ही नहीं विदेशों में भी दीक्षित दनकौरी खूब प्रसिद्ध हैं। वे आए दिन देश व दुनिया में कवि सम्मेलनों व मुशायरों में शिरकत करते रहते हैं। उनके अनेक काव्य संग्रह व गज़़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। “डूबते वक्त” उनका अनूठा गज़़ल संग्रह है।
दीक्षित दनकौरी की दो ग़जलें
ग़ज़ल
मुददा बयान हो गया
सर लहू-लुहान हो गया।
कैद से रिहाई क्या मिली
तंग आसमान हो गया।
तेरे सिर्फ एक बयान से
कोई बेजुबान हो गया।
छिन गया लो कागजे-हयात
खत्म इम्हिान हो गया।
रख गया गुलाब कब्र पर
कौन कद्रदान हो गया।
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ग़ज़ल
आग सीने में दबाए रखिए
लब पे मुस्कान सजाए रखिए।
जिससे दब जाएं कराहें घर की
कुछ न कुछ शोर मचाए रखिए।
गैर मुमकिन है पहुंचना उन तक
उनकी यादों को बचाए रखिए।
जाग जाएगा तो हक मांगेगा
सोए इन्सां को सुलाए रखिए।
जुल्म की रात भी कट जाएगी
आस का दीप जलाए रखिए।
साभारः चेतना मंच