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भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत लीला

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष

*कृष्ण जी के बारे में कुछ तथ्य*
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पौराणिक प्रसंगवश श्री कृष्ण के प्रति कई भ्रामक उक्तियाँ हैं, कुछ तो श्री कृष्ण के अस्तित्व को ही सिरे से नकार देते हैं, कृष्ण के बारें में विस्तृत विवरण विभिन्न ग्रंथों में हैं जिनमें प्रमुख, श्री भागवत महापुराण, महाभारत, विष्णु पुराण, ब्रह्मवैवत पुराण, नारद पुराण हैं | अन्य जगह पर नारायण के रूप में प्रतिपादित किया गया है | कृष्ण जीवन को हम तीन स्थान एवं तीन काल में बाँट सकते हैं, गोकुल-बृन्दावन, मथुरा एवं द्वारिका उसी प्रकार बाल लीला, महाभारत की लीला, द्वारिका की लीला |


बाल लीला का विस्तृत वर्णन श्रीमद भागवत महापुराण के दशम स्कंध के पूर्वार्ध में दिया गया है, भागवत को पंचम वेद भी कहा जाता है, दशम स्कंध को भागवत का प्राण कहा जाता है | कृष्ण जन्म से लेकर कृष्ण के गोलोक गमन तक की सम्पूर्ण कथा बताई गयी है, प्रत्येक श्लोक अध्यात्म का ,जीवन दर्शन का एक अद्भुत उदहारण है, भागवत के कुल १८००० श्लोकों में करीबन एक तिहाई इस स्कंध में ही हैं |
बाल लीला में प्रभु के अवतरण का मुख्य उद्देश्य बताया गया है, वह हम सभी जानते हैं, अध्यात्मिक दृष्टी से अर्ध काली रात्री को, घनघोर वर्षा की ऋतू में आना सूचक है की काली रात्री है अज्ञान, घनघोर वर्षा के बादल प्रतिक हैं निराशा के, व्यक्ति के जीवन में जब भी निराशा एवं अज्ञानता आये तब तब प्रभु शरण में जा कर उन्हें बुलाएं तब कारागार के बंद द्वार की भांति सारी विकृतियाँ अपने आप दूर हो जाएँगी |
अवतरण के पहले नारायण ने पांच संकल्प लिए थे बाल लीला के,
कम से कम ११ वर्ष ब्रज धरा पर विराजेंगे,
ब्रज प्रवास के अन्दर वे अपने पग पर कुछ धारण नही करेंगे,
असुरों के उद्धार हेतु वे अस्त्र या शस्त्र नही प्रयोग करेंगे
वे सीले हुए वस्त्र नही धारण करेंगे
वे केश कर्तन नही करेंगे ||
अपने इन नियमों का पालन करते हुए वे ११ वर्ष ५६ दिन तक ब्रज में रहे एवं तदुपरांत मथुरा प्रस्थान किये एवं कंस वध किया | उन्होंने कभी भी कुछ अपने पग पर नही पहना वे ब्रज भूमि पर नंगे पाँव ही रहे, इसीलिए उस भूमि की रजकण का इतना महत्त्व है, ब्रज का अर्थ है ब्रह्म रज अथार्थ ब्रह्मस्वरूप परमात्मा की पग धूली | कृष्ण ने बाल रूप में जितने भी वध किये पूतना, त्रुनासुर, सक्तासुर, इत्यादि सब का वध हाथों से किया किसी भी शस्त्र का उपयोग नही किया, सुदरसन चक्र धारण तो उन्होंने मथुरा जाने के पश्चात किया, सारी बाल लीला में वे एक पीताम्बरी लपेटे रहते हैं, उनके घुन्घर्वारे केश कितने अलबेले थे वह तो सब को पता ही है |
मात्र एक सप्ताह की अवस्था में पूतना का वध किया, पूतना क्या है ? पूतना अविद्या है जो हमारे अन्दर बैठी है एवंकुसंस्कारों का विष नित्य पिला रही है इस विष को हमें चूस कर बाहर कर देना है एवं अविद्या से विद्या में प्रवेश करना है |
तृणसुर द्योतक है हमारे अन्दर विद्यमान अहम का, जो होता तो तृण के सामान भारहीन पर उड़ा ले जाता है हमें ऊँचे बहुत ऊँचे जहाँ हमारा अहम हमें समाप्त कर देता है, इस अहम पर विजय पानी है तो हमें अपनी गुरुता बढ़नी होगी एवं खूब उपर से इस अहम को निचे धरातल पर पटक देना होगा
सकटासुर क्या है बोझ जो हमे दबा रहा है वह बोझ अंतरात्मा का , वह बोझ जो हम ढोये चले आ रहे हैं अपने कृत्य से, इस बोझ को एक झटके से हटा देना है और परे धकेल देना है इतनी दूर की यह वापस न आये। इसे सदा सर्वदा के लिए समाप्त कर देना है।
लीलाधारी की हर लीला एक जीवन संदेश देती है, जीवन के जीने का ढंग सीखती है, कालिया मर्दन पर्यवरण के बारे में चीरहरण नदी की पवित्रता एवम स्नान के ढंग को बताती है तो वहीं माखनचोरी की लीला बताती है हमे अपने हक को कैसे भी सुरक्षित रखना है माखन उस समय कर के रूप में कंस के यहां जबरन ले जाया जाता था उसके विरोध में माखन की उपलब्धि कम करने हेतु यह लीला हुई, सबसे बड़ी लीला जिसे प्रायः आज के तथाकथित बुद्धिजीवी कृष्ण को अय्याश बताने में लगे हैं वह है रास लीला ।
रास रस से उत्पन्न हुआ है, गोपी इंद्रियों की प्रतीक हैं यह लीला इंद्रियों के शमन की लीला है, अध्यात्म की पराकाष्ठा है ये पांच अध्याय जिसे पंच रास अध्याय भी कहा गया है, गोपी गीत समस्त उपलब्ध ग्रंथों का शिरमोर है। कनकमंजरी में लिखा यह अध्याय न केवल छांदस विधा का बेजोड़ नमूना है बल्कि आत्मा का परमात्मा के एककीकरण का दर्शन है।
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श्री कृष्ण जन्माष्ठमी 2023 पर विशेष*

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हे गोकुल स्वामी गोरक्षक’, हे गोपाला गोसुत वल्लभ
राजीव पद कृष्ण के कोमल, वन्दनीय हैं सुर मुनि दुर्लभ
कृष्ण छवि मनोहर करुणाकर, मन्मथ तनु सोहे मन रंजन
किंजल्क पीत धारण करते, अंखियन चंचल ज्यूँ दो खंजन

मूर्ति किशोर गुणाधिक करूण, केकिपिच्छ सोहे भाल लखा
चारु कुंडल लोल नृत्य करें, नीलोत्पल लोचन देखि सखा
कृष्ण आनन पूर्ण मयंक सा, सुंदर कच केश घुंघराले
मोहक तिलक मस्तक लगाए, कटार भौंह चित्त हर डाले

तुलसी रचित लावण्य कवित्त’, वृन्दावन बिहारी लाल का

आ शीघ्र त्रास हरो गोविंद’, जपूँ नाम नित्य गोपाल का
हे गोकुल स्वामी गोरक्षक, हे गोपाला गोसुत वल्लभ
राजीव पद कृष्ण के कोमल, वन्दनीय हैं सुर मुनि दुर्लभ

  • अनुप्रास अलंकार के श्रृंगार से सज्जित दूसरी रचना:

गोविंद गोविंद गाती गाती गोपिका गीता हुई
प्यारे की प्यारी प्रेम प्रीत की प्रतीक प्रणीता हुई
नयन नीर निकले नद नाले’ सी बह नवल निशिता हुई
मोहन मोह मे’ मंजुल मीरा मानिंद मनस्विता हुई

नंद नंदन की नंदिता नील नभ नवल नायिका नई
चंचल चपल चम चम चमकती चन्द्रानन तारिका भई
इंदु वदन इंदु की ईशिता ईश हुई इंदुमुखी वो
श्वेत सरोरुह की सितता सङ्ग सांवरे की हुई सखि वो

**सुरेश चौधरी ‘इंदु’

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