
शब्द क्रांति लाइव ब्यूरो, देहरादून: उत्तरकाशी जनपद में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को 17वें दिन रैट माइनर्स की मदद से सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना, वायु सेना ने भी इस अभियान को अंजाम तक पहुंचाने में सहयोग दिया। इस बीच, राहत और बचाव के इस महाभियान की सफलता से देश भर में जश्न का माहौल है। विदेशी मीडिया भी इस अभियान की सफलता पर भारत की प्रशंसा कर रहा है।
इस सबके बीच अब आपदा प्रबंधन पर नए सिरे से मंथन की जरूरत है। पहाड़ी क्षेत्रों में विकास कार्यों में अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है। उत्तराखंड में पहाड़ इतने मजबूत नहीं हैं कि उन्हें काटकर आसानी से सुरंग बनाई जा सके। यहां बारिश हो या गर्मी आपदा की घटनाएं हो रही हैं। मलबा सड़क पर आ-जा रहा है, जिसमें बड़ी संख्या में जान-माल की हानि उठानी पड़ रही है। ऐसे में हादसे रोकने को विकास कार्यों में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है। यह जानना भी जरूरी है कि सिलक्यारा सुरंग के निर्माण में क्या कमी रह गई थी कि सुरंग बंद हो गई। निर्माण एजेंसी की जवाबदेही तय करने का भी वक्त आ गया है, ताकि भविष्य में सिलक्यारा जैसी लापरवाही से बचा जा सके।
जानें क्या करते हैं 29 वर्षीय मुन्ना कुरैशी
सिलक्यारा सुरंग हादसे में सभी 41 श्रमिकों को बचाने में रैट माइनर्स की भूमिका अहम रही। रैट माइनर्स की इस टीम के महत्वपूर्ण सदस्य रहे मुन्ना कुरैशी। 29 वर्षीय मुन्ना कुरैशी राजधानी दिल्ली की एक रैट माइनिंग टीम में काम करते हैं। वे ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग कंपनी का हिस्सा हैं। यह कंपनी सीवर लाइन और पानी की लाइनों को साफ करती है। ऑपरेशन के बाद मुन्ना कुरैशी ने मीडिया से बातचीत में बताया कि जब उन्होंने सुरंग के अंदर के आखिरी पत्थर को हटाया और फंसे हुए लोगों ने उन्हें देखा तो वे खुशी से झूम उठे। टनल में फंसे मजदूरों ने खुशी में आतुर होकर मुन्ना कुरैशी को गले लगा लिया और खाने के लिए बादाम दिए। मुन्ना कुरैशी ने बताया कि हम पिछले 24 घंटों से इस ऑपरेशन को अंजाम दे रहे थे। जब ऑपरेशन सक्सेसफुल हुआ और मैं उनके पास पहुंचा तो टनल में फंसे लोग मुझे देख कर झूम उठे। उन्होंने पूरी टीम का धन्यवाद किया और जो इज्जत मुझे उनसे मिली, मैं जिंदगी भर उसे नहीं भुला सकता हूं।