हास्य-व्यंग्य…तारीफ पे तारीफ
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार अशोक व्यास के व्यंग्य लेख का आनंद उठाइए

आज मेरी प्रकाशित रचना मैंने सोशल मीडिया और कई ग्रुपों में डाली साथ ही यूट्यूब चैनल को भी चालू कर दिया लेकिन तारीफ के तूफान को छोड़ो लाइक का एक पत्ता भी नहीं हिला , शेयर की हल्की से सुरसुराहट भी नहीं हुई , सब्क्राईब्स की सुनामी नहीं आई , बधाई की वाही तबाही नहीं मची कुल मिलकर बड़ी सूनी सूनी सी जिंदगी है ये जिंदगी . कलाकार हो, साहित्यकार हो, खिलाड़ी हो , या नेता हो उन सबको तारीफ चाहिए बिना नागा चाहिए और इतनी चाहिए कि बार-बार हो लगातार हो . तारीफ पे तारीफ नहीं हुई तो एक्स्पोज़र का क्या फायदा . तारीफ आई सी यु में भर्ती मरीज की ओक्सिजन है , शारीर की इम्युनिटी बड़ाने का च्यवनप्राश है , कमजोर की गिज़ा है और वह कमजोरी यह है कि हर व्यक्ति ध्यान चाहता है कि उस पर ध्यान दिया जाए जिसके लिए वह कई जतन करता है , उल जलूल हरकतें करता है और इन हरकतों के कारण कभी-कभी गिनीज वाले रिकार्ड भी बन जाते हैं . जिसके लिए वह अपनी जान तक को को दांव पर लगाता है . जनता , दर्शक , पाठक तालियां बजाकर उत्साह बढ़ाते हैं तारीफ करते हैं तब जाकर उसे चैन मिलता है . लेकिन कई बार कुछ भी कर लो लोग ध्यान ही नहीं देते तब वह उटपटांग हरकतें करता है नाक में , भोंहो में और जबान पर बाली पहनता है शरीर के विशिष्ट अंग पर टैटू बनवाता है और जाने क्या-क्या जतन करता है . मंच पर कविता पढ़ने वाला तारीफ के लिये स्टेंडअप कामेडीयन की तरह बोल्ड एंड ब्यूटीफुल चुटकुले सुनाने लगता है जनता भी ठोको ताली करने लगती है तब जाकर उसकी सांस में सांस आती है
किसी भी कलाकार के लिए , रचनाकार के लिए तारीफ वो शय है जिसकी कोई सीमा तय नहीं जितनी मिले कम पढ़ती है कई बार तो झूठी प्रशंसा में भी मजा आने लगता है . प्रशंसा करने वाले की वास्तव में मंशा क्या है एसी छोटी छोटी बातों पर तारीफ के इच्छाचारी कतई ध्यान नहीं देते हैं . तारीफ वो स्टेरायड है जो किसी कमजोर में भी शक्ति का संचार कर सकती है मुर्दों में भी जान डाल सकती है . तारीफ वो फूंक है जिसे भरने पर कोई भी फूल कर कुप्पा हो सकता है उसके बाद वह फूला फूला और खिला खिला फिरता है जब तक उसके फूलेपन पर जन्मदिन पर लगाये गए गुब्बारों पर आलोचना की अगरबत्ती ना लगा दे . हालांकि कई लोग इस मामले में बड़े पोजिटिव होते है वह बदनामी को भी सकारात्मक लेते हैं उनका मानना है कि बदनाम हुए तो क्या हुआ हमारे नाम को आगे बढ़ाने में कुछ सहयोग ही दिया है इसलिए वह भी धन्यवाद का पात्र है . कई होते हैं जो बेशर्मी से चमड़ी को इतनी मोटी बना लेते हैं कि किसी भी आलोचना का असर उन पर नहीं होता है या यूं कहले कि वह अपमान जैसी टुच्ची बातों से ऊपर ऊठ चुके हैं . बल्कि उसे भी सकारात्मक रूप से लेते हैं कि बस नाम होना चाहिए भले ही बदनाम हो जाए क्योंकि उसमे भी नाम जुड़ा हुआ है .
हमारे शहर के एक अख्यात वार्ड प्रतिनिधि थे जो पार्टी के हर कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते थे जरुरत पढ़ने पर गला फाड़कर जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे भी लगाते थे . लेकिन पार्टी नेताओं में उनकी पूछ परख नहीं थी क्योंकि पार्टी में उनका कोई गॉडफादर नहीं था . पहले कैंडिडेट का फॉर्म रद्द होने के कारण डमी केंडीडेट बनाने के कारण जीत गए थे इस मामले में वह किस्मत के धनी थे . इसलिए पार्टी में इतनी सक्रिय भूमिका होने के बावजूद भी वह कहते रहते थे कि यार कुछ भी कर लूं लेकिन अगले चुनाव में टिकट मिलना मुश्किल है . तब वह अपने राजनीतिक गुरु के पास गए और उनके गुरु ने जो गुरु ज्ञान दिया था उसके सुपरिणाम बाद में ज्ञात हुए . ज्ञान प्राप्ति के कुछ ही दिनों बाद एक महिला ने उन पर बलात्कार का आरोप लगा दिया . पुलिस में रिपोर्ट डाल दी फिर तो पेपरों में टीवी में छा गए बच्चे से लेकर पार्टी के बड़े बूढ़ों की जुबान उनके किस्सों का चटखारे लेकर उनका ही नाम लेने लगे . पूरी पार्टी उनके बचाव में आ गई और यह तय हो गया कि इतने लोकप्रिय जनप्रतिनिधि का अगले चुनाव में टिकट पक्का है तो कई बार बदनामी भी तारीफ का कारण बन जाती है .
इसी प्रकार जब हम कोई रचना सुनते हैं , खेल दखते हैं , फिल्म देखते है उनको देखकर उनके रचना कर्म को , कलाकारी को , खेल को देखकर जब तालियां बजती है वही तालियां उनके लिए अगली फिल्म का या टीम में सिलेक्शन का और रचनाकार को पुरस्कार मिलने का द्वार खोल देती है . तालियां वह गरजता बरसता तेज पानी है जिसके ऊपर तारीफों का पुल बनता है जिस पर चलकर बंदे को एवरेस्ट फ़तेह करने जैसा कुछ कुछ एहसास होने लगता है अपनी श्रेष्ठता पर उसका भरोसा बढ़ने लगता है . जो थोड़ा बहुत शक शुबहा अंतरात्मा की आवाज सुनने के कारण होता भी है तो वह भी तालियों और तारीफों के शोर में डूब जाती है . तारीफ पे तारीफ ऐसे बरसनी चाहिए जैसे सावन की झड़ी लगती है यह बात अलग है कि आजकल प्रत्येक मौसम बेईमान हो गया है इसलिए सावन की झड़ी कम ही लगती है इसी प्रकार तारीफ करने में भी लोग कंजूस हो गए हैं जैसे उनकी जेब से पैसे खर्च हो रहे हैं और करेंगे भी तो बदले में वह भी आपसे तारीफ चाहेंगे जैसे तारीफ कोई खुजली है कि तु मेरी पीठ खुजा में तेरी पीठ खुजाऊं . यह क्या बात हुई क्या तारीफ कोई एक्सचेंज ऑफर है जो हवा के बदले हवा करने लगे , पानी के बदले पानी बरसाए यह सब तो प्रकृति प्रदत्त हैं इसी प्रकार तारीफ़ भी प्रकृति प्रदत्त है बस आपको जबान हिलाना आना चाहिए .
मेरा विचार यह है कि तारीफ के बदले में आप भी तारीफ पे तारीफ चाहते हैं तो ठीक है कर देंगे हम भी जब जरूरत होगी . लेकिन वैसी कुव्वत तो पैदा करो . तुम कोई यु ट्यूबर हो , चेनल पर बैठ कर किसी को भी गाली देने का हुनर आपमें है , बिग बोस में जाने की आपकी हैसियत है , धर्म और राष्ट्र को कोस सकते हो , कोई ब्लागर हो , उलजलूल शब्दों का उपयोग करने वाले रेपर हो या इसी टाइप की योग्यता रखने वाले सेलिब्रिटी हो तो आपको तारीफ पे तारीफ मिल सकती वर्ना आप भी मामूली आम आदमी कहलाओगे जिसके लिये तारीफ करने से किसी की भी जबान घिस सकती है . आम आदमी की तारीफ तो सिर्फ चुनाव के समय याद आती है इसलिए गौर से सुनो ‘’ ऐ आम आदमी तुम्हारी तारीफ पे तारीफ हम चुनाव आने पर करेंगे और भैया आम आदमी तुम बिलकुल मत घबराना हिंदुस्तान में चुनाव का मौसम सदा जवान रहता है अतः तुम्हारे हिस्से की तारीफ तुम्हे मिलती रहेगी। ‘’
- -अशोक कुमार व्यास, भोपाल