उत्तराखंडपर्सनालिटीपुस्तक समीक्षाभाषा/बोलीमध्यप्रदेशमुशायरा/कवि सम्मेलनसंस्कृतिसंस्मरणसाहित्य

मापदंडों पर खरे उतरते हैं राजेश शर्मा के नवगीत

वरिष्ठ ग़ज़लकार राम अवध विश्वकर्मा की गीतकार राजेश शर्मा के गीत संग्रह 'हल्दी आखत गीत के' पर टिप्पणी

देशभर में चर्चित नवगीतकार भाई राजेश शर्मा जी के निवास पर अपने प्रिय मित्र ग्वलियर के ही ग़ज़लकार श्री दिनेश शर्मा विकल के साथ अभी हाल ही में बिना पूर्व सूचना के अचानक जाना हुआ। दैवयोग से राजेश भाई घर पर ही थे। हम दोनों कभी एक ही साहित्यिक संस्था के सहयात्री थे। बाद में राजेश भाई ने अपना पंथ बदल लिया लेकिन हम दोनों के बीच आज भी वही आत्मीयता कायम है। नदियों का रास्ता बेशक अलग अलग हो सकता है लेकिन मंजिल सबकी एक ही होती है। राजेश जी एक श्रेष्ठ गीतकार के रूप में प्रतिष्ठित हुये हालांकि उन्होंने कुछ उम्दा ग़ज़लें भी कही है।

‘हल्दी आखत गीत के’ उनका प्रथम गीत संग्रह है। किसी के लेखन का आकलन उसकी गीतों की संख्या से नहीं किया जा सकता है। सही मायने में आकलन उसकी गुणवत्ता से होता है। लेखन कितना प्रभाशील प्रेरणादायक एवं समाज को उद्वेलित आन्दोलित आनन्दित करने वाला है इन मूल्यों पर आकलन होना चाहिये। राजेश भाई के नवगीत अपने मापदण्डों पर खरे उतरते हैं । बार बार पढ़ने का मन करता है और बार बार पढ़ने के बाद भी पुन: पढ़ने की इच्छा बनी रहती है। उनके नवगीत सतही न होकर गूढ़ अर्थ लिये हुये हैं। पाठक को चिन्तन करने पर विवश करते हैं। विद्वान एवं पारखी महानुभावों की पैनी नजरें उनके गीतों की विलक्षणता को खोज ही लेती हैं यही कारण है कि प्रसिद्ध विद्वान व्याख्याकार आदरणीय डाक्टर श्रीकांत उपाध्याय जी निवासी पुणे महाराष्ट्र ने उनकी गीतों की व्याख्या बहुत सुन्दर एवं निष्पक्ष रूप से की।

उनकी व्याख्या के पश्चात पुस्तक की समीक्षा लिखना धृष्टता होगी। इसलिए पाठक तक उनके कुछ नवगीत के अंश यहां अवलोकनार्थ एवं मनन हेतु प्रस्तुत है।

अक्षर हल्दी छूकर सपने, द्वारे द्वारे जायेंगे
शायद कुछ लौटे आमंत्रण, अब स्वीकारे जायेंगे।
काँधों पर सूरज को ढोया, आँखों में बरसात कटी
आते जाते दिन बीता है, गाते गाते रात कटी
लेकर सजल उनींदी आँखें, हम भिनसारे जायेंगे
शायद कुछ लौटे आमंत्रण,अब स्वीकारे जायेंगे।

एक दूसरे गीत का बंद देखें

अबकी बार कहाँ ले जायें
ये व्यापार कहाँ ले जायें
ढाई आखर लुटे यहाँ भी
बंदनवार कहाँ ले जायें
हिमगिरि को गलने की पीड़ा
नदियों को चलने की पीड़ा
खारापन भी दे जाता है
सागर में मिलने की पीड़ा
सागर की पीड़ा कहती है
ये विस्तार कहाँ ले जायें

इसी क्रम में एक बंद और देखें
हमें फिर पास ले आया
इसी आभास का ढोना
तुम्हारा गोत्र है मृगजल
हमारी जाति मृगछौना
जहाँ ठंडी तपिश का एक
झरना पास बहता हो
जहाँ पर आँख का आँसू
खुशी के साथ रहता हो
तुम्हारे नाम लिख देंगे
उसी आवास का कोना
पुस्तक में गीत के साथ कुछ दोहे और कुछ मुक्तक भी पठनीय हैं।

पुस्तक सुलभ रूप से नवगीतकार भाई राजेश शर्मा जी से उनके मोबाइल नम्बर 7354556695 पर बात कर प्राप्त किया जा सकता है।
टिप्पणीकार – राम अवध विश्वकर्मा ग्वालियर
मोबाइल 9479328400

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button