पश्चिमी संगीत के मील के पत्थर थे बीथोवेन
- सुपरिचित संगीतज्ञ बीथोवेन के जीवन व संगीत पर निकोलस ने दिया व्याख्यान - दून लाइब्रेरी में शनिवार को हुआ आयोजन, कई संगीत-प्रेमियों ने लिया लुत्फ

देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के सभागार में शनिवार को जर्मन संगीतकार बीथोवेन के जीवन और उसकी संगीत यात्रा पर आधारित एक महत्वपूर्ण वीडियो व्याख्यान दिया गया। फ़िल्म और संगीत के जानकार और अध्येता निकोलस की ओर से यह व्याख्यान दिया गया।
उल्लेखनीय है कि दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र द्वारा समय-समय पर पुस्तक वाचन और चर्चा, संगीत, वृत्तचित्र फिल्म, लोक परंपराओं और लोक कलाओं, इतिहास, सामाजिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर केंद्रित कार्यक्रम किये जाते रहते हैं। इसी क्रम में आज”और फिर वह बीथोवेन भी था ” शीर्षक से एक संगीत आधारित व्याख्यान आयोजित किया गया।
निकोलस ने इस महान संगीतज्ञ जीवन और उसकी संगीत यात्रा के विविध पक्षों पर प्रारम्भिक जानकारी देते हुए विविध बिंदुओं पर क्रमबद्ध जानकारी दर्शकों के समक्ष रखी।
लुडविग वान बीथोवेन एक जर्मन संगीतकार और पियानोवादक थे, जिन्हें पश्चिमी संगीत के इतिहास में निर्णायक व्यक्ति के तौर पर जाना जाता है। बीथोवेन का जन्म दिसंबर 1770 में हुआ था। बीथोवेन 1792 में वियना चले गए, जहाँ उन्होंने हेडन जैसे प्रभावशाली संगीतकारों से मुलाकात की और गंभीरता से संगीत के कार्यक्रम से जुड़ गए। बाद में उनकी सुनने की क्षमता में कमी आ गयी थी।
बीथोवेन ने 1802 में अपना पियानो सोनाटा नंबर 14 तैयार किया। ‘मध्य काल’ में उन्होंने वाल्डस्टीन और अपासियोनाटा सोनाटा जैसे पियानो कार्यों के साथ-साथ अपने एकमात्र ओपेरा, फिदेलियो की भी रचना की, जिसे अनगिनत बार फिर से लिखा गया और संशोधित किया गया। खराब स्वास्थ्य और बढ़ते बहरेपन के कारण बीथोवन के जीवन के अंत में गिरावट आई, लेकिन फिर भी वे 1825 में अपने ‘लेट क्वार्टेट्स’ जैसे महत्वपूर्ण कार्यों का निर्माण करने में सफल रहे, जो उस समय के लिए बेहद आविष्कारशील थे। बीथोवन का निधन 26 मार्च 1827 को वियना में हुआ।
इस अवसर पर विजयलक्ष्मी,सी.बी.रासायली, देवी बिजू नेगी, चंद्रशेखर तिवारी, राजेश कुमार, सुशीला भंडारी, सुरेंद्र सजवाण, श्री मनमोहन चढ्ढा, विजय शंकर सुकल, सुंदर बिष्ट, विनोद सकलानी, अम्मार नक़वी, राघव पाण्डेय, कुमार राकेश आदि उपस्थित रहे।