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भारतीय समाज को प्रबुद्ध बनाने को बाबा साहब के विचारों की जरूरत

दून लाइब्रेरी में अम्बेडकर और मार्क्स पर बातचीत का आयोजन

देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से शुक्रवार सायं आज का भारत: अम्बेडकर और मार्क्स पर एक बातचीत का आयोजन किया गया। जाने-माने लेखक, चिंतक तथा सामाजिक व पर्यावरण कार्यकर्ता विद्या भूषण रावत के साथ जाति और वर्ग पर केन्द्रित इस बातचीत में शिक्षाविद और साहित्यकार डॉ. राजेश पाल मंच पर मौजूद रहे। कार्यक्रम में जनगीतों का गायन भी किया गया।

मुख्यतः इस महत्वपूर्ण बातचीत में भारतीय सामाजिक संरचना में अंबेडकर वर्ण (जाति) एवं वर्ग को किस तरह देखते थे और मार्क्स के समय भारतीय समाज की संरचना किस तरह से थी इस विषय पर चर्चा की गई। इसके अलावा आज के भारत में वर्ग एवं वर्ण को लेकर क्या स्थितियां बनी है और आर्थिक समाजवाद भारत में कैसे संभव होगा आदि बिन्दुओं पर बातचीत की गई।बातचीत के दौरान डॉ. राजेश पाल का यह सवाल भी था कि क्या यह संभव है कि वर्ण और वर्ग को एक साथ होकर क्षमता मूलक समाज की रचना और आर्थिक समानता का उद्देश्य प्राप्त किया जाए।
आज के इस कार्यक्रम में विद्या भूषण रावत की पुस्तक अंबेडकरवाद विचारधारा और संघर्ष का लोकार्पण भी किया गया। इस पुस्तक में कुछ ऐसे कई ख्यातिलब्ध लोगों के भी साक्षात्कार है जो भीम राव अंबेडकर के साथ जुडे़ रहे हैं।
उल्लेखनीय बात यह है कि विद्या भूषण रावत पिछले तीस वर्षों से मानवाधिकारों के लिए कृत संकल्पित हैं। अम्बेडकरी आंदोलन से उनका रिश्ता 1990 से जुड़ा जब उनका दिल्ली आगमन हुआ। कुछ समय तक अंग्रेजी के महान साहित्यकार डॉ. मुल्कराज आनंद के साथ रहने के बाद उनका परिचय भगवान दास, एनजी ऊके, वीटी राजशेखर जैसे प्रख्यात अम्बेडकरवादियों से हुआ और इसने उनके अंदर भारत के अंदर जातिभेद की समस्या को बेहतर तरीके से समझने में मदद की। उन्हें यह महसूस हुआ कि भारतीय समाज को प्रबुद्ध बनाने के लिए अम्बेडकरी विचारधारा की आवश्यकता है। उन्होंने 2003-04 से ये साक्षात्कार रिकार्ड करने शुरू किया और अभी तक प्रारम्भिक दौर के बहुत से महत्वपूर्ण अम्बेडकरवादियों के साथ बातचीत कर सकें। ये सभी साक्षात्कार अलग-अलग समय में हुए और बहुत से अवसरों पर ये काम बिना किसी सहायक के हुआ। इस पुस्तक में 13 ऐसे ही महत्वपूर्ण अम्बेडकरवादियों से हम रूबरू होते हैं, जो बाबासाहब के विचारों को समझने में बहुत काम आएँगे।
विद्या भूषण रावत की यह 21वीं पुस्तक है। हिंदी में ये उनकी 6वीं पुस्तक है। उन्होंने दुनिया भर में जाति, रंगभेद और नस्लभेद के प्रश्नों पर बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखी है। लेखक को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भाग लेने और महत्वपूर्ण सम्मेलनों में अपनी बात रखने का अवसर भी मिला है। 2011 में उन्हें नार्वे की राजधानी ओस्लो में भारत में मानववादी सोच को आगे बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। 2018 में अम्बेडकर एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका ने उन्हें डॉ. अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। इस बातचीत के अवसर पर शहर के सामाजिक विचारक, लेखक ,पत्रकार, साहित्यकार और अन्य लोग उपस्थित रहे।

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