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उर्दू के ख़िदमतगारों से कन्नी काटती मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी

- जिसे सबने ठुकराया, उसे सैफ़ी स्कूल ने अपनाया, उस्ताद शायर अनवर सादिकी को दिया सहारा, उर्दू अकादमी ने नहीं सैफ़ी स्कूल ने दिया उर्दू मुहब्बत का सबूत, संस्था 'काफ़िला मुहब्बत का' ने की सराहनीय पहल

इंदौर (मध्य प्रदेश):  जो लोग सरकार पर उर्दू के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाते हैं, उससे मैं ज़रा भी सहमत नहीं हूं। सरकार का काम फंड और बुनियादी सुविधाएं मुहैय्या करवाने का है, जिसे वो ईमानदारी से कर रही है। ख़ास तौर पर मध्य प्रदेश की सरकार। तो फिर सवाल उठता है कि इसके बावजूद प्रदेश में उर्दू के सच्चे खिदमतगारों तक वो सरकारी लाभ क्यों नहीं पहुंच रहा है? इसका जवाब ये है कि सरकार ने जिन लोगों को इस काम की ज़िम्मेदारी दी है, वो ही इसमें घालमेल कर डालते हैं और आप सरकार को कोसते रह जाते हैं।

मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। इस अकादमी में बैठे हुओं को या तो प्रदेश के उन उर्दू साहित्यिकों की जानकारी ही नहीं है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन इस ज़बान को बचाए रखने में समर्पित कर दिया। या फिर वो जानकारी होने के बावजूद ऐसे साहित्यकारों को जानबूझकर दरकिनार किए हुए है और जिनसे उन्हें लाभ मिल रहा है, ऐसे लोगों पर उनकी नज़रे इनायत है।

 

मैं आपको इंदौर के एक बेशकीमती शायर- उस्ताद मोहतरम अनवर सादिकी साहब का उदाहरण बताता हूं। मैं आपको उनके तआर्रुफ में ये बताता चलूं कि इस वक्त मध्य प्रदेश में उर्दू ग़ज़ल की फ़न्नी बारीकियों को समझने वाले जो 5-7 उस्ताद बचे हैं, ये उनमें से एक हैं। इंदौर में जो 17-18 बड़े उस्ताद हुए हैं, उनमें से सिर्फ मास्टर रशीद शादानी और अनवर सादिकी साहब ही ऐसे दो शायर हैं, जिन्हें अपने उस्तादों से उनकी जांनशींनी मिली है। इससे आप उनकी काबिलियत का अंदाजा लगा सकते हैं।
उन्होंने इंदौर के फ़िलबदी मुशायरों में तकरीबन हर मर्तबा सबसे ज़्यादा शेर कहे हैं। एक घंटे में 40-50 शेर कहना तो उनके लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। उस पर सबसे बड़ी बात ये कि आपको सिर्फ काफ़िया पैमाई नहीं मिलेगी, बल्कि मेयारी शायरी मिलेगी।
आज से 18-20 साल पहले तक वो रिक्शा चलाते थे। बाद में उन्हें ऐसी बीमारी हुई कि डॉक्टर ने पेट की तिल्ली निकालने का कह दिया। उनके पास इतना पैसा नहीं था कि आपरेशन करवा सके। उर्दू अकादमी ने तो अपने रवैए के मुताबिक कुछ ध्यान नहीं दिया। शहर की साहित्यिक संस्थाओं ने भी कोई मदद नहीं की। तब परेशान हाल अनवर सादिकी सा. का सहारा बने उनके कुछ शायर दोस्त। एमवाय में आपरेशन के बाद अनवर साहब में रिक्शा चलाने की हिम्मत नहीं रही। वे कई दिनों तक रोज़गार से महरूम रहे। जब ये बात छत्रीबाग स्थित सैफ़ी स्कूल के मैनेजमेंट को पता चली तो उन्हें शहर के इस अज़ीम शायर की हालत पर बहुत दुख हुआ। उन्होंने फौरन अनवर साहब को बुलवाया और अपनी स्कूल में बतौर सेक्यूरिटी गार्ड उन्हें रख लिया। मैनेजमेंट ने उनकी सेहत का ख़्याल रखते हुए सेक्युरिटी कैबिन में बैठे रहने की व्यवस्था करवा दी। इस तरह सैफ़ी स्कूल ने इस शहर में ये उदाहरण पेश किया कि वो उर्दू मुहब्बत का सिर्फ दिखावा नहीं करती बल्कि वक्त आने पर उर्दू के ख़िदमतगारों का सहारा भी बनती है। आज अनवर साहब को इस स्कूल में काम करते 18 बरस से ज़्यादा वक्त हो गया है। वे अब 81 साल के हो चुके हैं और इसी स्कूल से मिलने वाली तनख्वाह से उसका गुज़र बसर हो रहा है। अपनी ज़िंदगी के 60-62 साल उर्दू शायरी में सर्फ़ करने वाले अनवर साहब को इतने सालों में सिर्फ एक किताब के लिए उर्दू अकादमी ने आर्थिक सहायता दी थी। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी में बरसों पहले अकादमी का सिर्फ एक मुशायरा भोपाल में पढ़ा है। बाकी कुछ एक मुशायरों में अकादमी ने उन्हें इंदौर में ही पढ़वा कर अपनी खानापूर्ति कर दी। एक बार अकादमी ने इंदौर के वरिष्ठ चार शायरों को 10-10 रुपए देकर उनका सम्मान कर दिया। कुछ मिलाकर उर्दू शायरी का ये अज़ीम फ़नकार आज तक उस सम्मान से महरूम है, जिसका वो हक़दार है।

मेरा निवेदन शहर की उन बड़ी साहित्यिक संस्थाओं से है जो लाखों रुपया खर्च कर मुशायरे करवाती हैं, अगर वो तय कर लें कि हर साल अपने फंड से सिर्फ एक लाख रुपए इंदौर के शायरों पर खर्च करेगी,तो उससे बहुत बड़ा काम किया जा सकता है। ये राशि किसी शायर को सम्मान राशि के रूप में दी जा सकती है। अगर वो शायर ग़रीब है तो वो राशि उसके ज़िन्दगी को कुछ आसान करने के काम आएगी। अगर कोई बीमार है तो वो उस राशि से अपना इलाज करवा पाएगा। कोई संस्था ये पहल भी कर सकती है कि वो हर साल किसी एक शायर की किताब प्रकाशित करेगी और अपने मुशायरे में उसका विमोचन करेगी। ये पहल 17 फ़रवरी 2024 को ‘काफ़िला मुहब्बत का’ संस्था ने अपने पहले कार्यक्रम ‘यादे- राहत’ के दौरान की थी। उसने शहर के एक ग़रीब बुजुर्ग शायर गोहर देवासी की किताब ‘तलवार पर आंसू गिरे’ को शाया कर उसका शानदार विमोचन भी किया। ये संस्था इसलिए भी बधाई की पात्र है क्योंकि उसका ये पहला ही बड़ा प्रोग्राम था और उसने अपने शहर के एक बुजुर्ग शायर के लिए बेहतरीन काम को अंजाम दिया जबकि इसकी बागडोर चंद युवाओं के हाथ थी। संस्था ‘काफ़िला मुहब्बत का’ ने उर्दू के साथ राष्ट्र भाषा हिंदी का भी ध्यान रखते हुए शहर के ख्याति प्राप्त राष्ट्रीय कवि सत्य नारायण सत्तन जी का भी उसी कार्यक्रम में सम्मानित कर उन्हें सम्मान राशि भी भेंट की। इस तरह इस संस्था ने देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को बचाए रखने में अपनी भूमिका को जो विस्तार दिया वो भी यकीनन सराहनीय है। प्रदेश के हर शहर में होने वाले कार्यक्रमों में अगर ऐसी पहल होने लगी तो शायरों और अदीबों की उर्दू अकादमी पर निर्भरता खत्म हो जाएगी।

आख़िर में एक बार फिर सैफ़ी स्कूल (छत्रीबाग- इंदौर) को हज़ारों सलाम जिन्होंने शहर के एक अनमोल उर्दू शायर को अपना कर इंदौर के अदब पर बड़ा एहसान किया है और साबित किया है कि उर्दू से मुहब्बत का दावा करना अलग बात है और सचमुच मुहब्बत करके दिखाना अलग है।
अनवर साहब बताते हैं कि इस स्कूल के मैनेजमेंट से लेकर टीचर और बच्चों से उन्हें जो सम्मान मिलता है, वो मुझे एक नयी ताज़गी दे जाता है। मैं खुश किस्मत हूं कि जिन लोगों में मै काम कर रहा हूं, उन्होंने मेरी इतनी क़द्र की।
काश हमारी उर्दू अकादमी भी सैफ़ी स्कूल वालों की तरह अनवर सादिकी जैसे उर्दू अदब के अनमोल रत्नों की कद्र करना शुरू कर दे।

-अखिल राज
पत्रकार-लेखक-शायर

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