जहालत की अंधी सुरंग में ‘कैद’ मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी के कर्ताधर्ता
-कई हिंदू शायरों के उस्ताद को उर्दू अकादमी नहीं मानती उर्दू का शायर, समर कबीर साहब को भारी पड़ गया देवनागरी में किताबें छपवाना, उज्जैन के पहले शायर जिनकी कुल्लियात समेत पांच किताबें

इंदौर (मध्य प्रदेश): देश की सबसे कठिन परीक्षा यूपीएससी पास कर आईएएस या आईपीएस बनना तो आसान है लेकिन मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की परीक्षा पास कर सम्मानित होना, दुनिया का सबसे कठिन काम है। कई लोग शेरो- अदब की दुनिया में काम करते हुए अपनी ज़िंदगी के बरसों-बरस गुज़ार देते हैं लेकिन तब भी उर्दू अकादमी की परीक्षा पास नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों के फेल होने की वजह होती है –(1) ग़रीबी (2) ईमानदारी (3) चाटुकारिता का अभाव (4) बड़ी सिफारिश का अभाव।
लेकिन हाल ही में एक ऐसे शायर के बारे में पता चला है जो इन सब कारणों के साथ एक और नये कारण की वजह से उर्दू अकादमी की परीक्षा में बरसों से फेल होता आ रहा है।
नाम है – उस्ताद समर कबीर। उम्र – 67 साल। शायरी की उम्र- 50 साल। निवासी- उज्जैन। किताबें -(1)समरा (2) गुल (3)कौकब (4)तन्वीर-ए- सुख़न (5) कुल्लियात- कायनात-ए-ग़ज़ल (6) इस्लाह लेने वालों की तादाद- सैकड़ों।
उस्ताद समर कबीर साहब का गुनाह–
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आइए अब समर कबीर साहब के उस गुनाह की बात करें जिसकी वजह से मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी ने उन्हें आज तक उनकी उर्दू ख़िदमात को स्वीकार नहीं किया। जबकि उज्जैन के वो अकेले ऐसे उस्ताद शायर हैं जिनकी पांच किताबें मंज़रे- आम पर आ चुकी हैं। दरअसल उर्दू अकादमी ने उनके हिंदी प्रेम को गुनाह-ए-अज़ीम माना है क्योंकि उसकी सारी किताबें उनके हिंदू शागिर्दों ने देवनागरी में प्रकाशित करवाई हैं। शायरी उर्दू की ही है,बस लिपि देवनागरी कर दी गई है।
हुआ यूं है कि देश-दुनिया में फैले उनके सैकड़ों शागिर्द जो व्हाट्सएप ग्रुप – इस्लाहे-सुख़न और वेबसाइट- Open books on line के ज़रिए उनसे इस्लाह लेते हैं, उनमें से ज़्यादातर हिंदू शायर हैं, जो ग़ज़लें कहते हैं। वो उर्दू लिपि नहीं जानते हैं। इसलिए वे उर्दू के अल्फाज़ को देवनागरी में लिखते हैं। इन शागिर्दों में देश के बड़े-बड़े आईएएस और आईपीएस समेत कई अधिकारी भी शामिल हैं। आप अगर इसका नमूना देखना चाहें तो इस वेबसाइट की ज़रुर विजिट करें। तब आपको पता चलेगा कि कितने लोग इस प्लेटफार्म के ज़रिए समर कबीर सा. से जुड़े हैं। उन्हीं शागिर्दों ने उसकी किताबें इसलिए देवनागरी में छपवाई ताकि उन्हें उसका लाभ मिल सके। शागिर्दों का यही काम उर्दू अकादमी को पसंद नहीं आया जो खुद अपने कार्यक्रमों के पोस्टर हिंदी में भी रिलीज करती है। इस बात पर उन्हें कितना नुक़सान उठाना पड़ा है इसका ज़िक्र आगे किया जाएगा।
सवाल —
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क्या अगर कोई शायर अपनी उर्दू शायरी को लिपि बदलकर देवनागरी में छपवाता है तो क्या मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी उसे उर्दू का शायर नहीं मानेगी?
इस गंभीर और ज़रुरी सवाल का जवाब उर्दू अकादमी को देना ही चाहिए।
मुशायरे में किया समर सा.का अपमान,लोकल पर लगाई पाबंदी –
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जीवन के 50 बरस से ज़्यादा उर्दू शायरी को देने वाले उस्ताद समर कबीर सा. को उर्दू अकादमी ने अब तक सिर्फ तीन बार अपने प्लेटफार्म पर आने का मौका दिया है। समर कबीर सा. बताते हैं कि आज से 8-10 साल पहले उज्जैन के एक मुशायरे में अकादमी ने उन्हें बुलाया था और लोकल शायर की हैसियत से तीन हजार का पेमेंट दिया था। उसके बाद देवास में ‘तलाशे-जोहर’ प्रोग्राम में जज की हैसियत से बुलाया गया और उन्हें पांच हज़ार रुपए दिए गए। इसके बाद अकादमी ने तीसरी बार 17 अगस्त 2024 को उज्जैन के आल इंडिया मुशायरे में बुलाकर पांच हज़ार का पेमेंट दिया। ग़ौरतलब है कि इस मुशायरे में समर साहब हर लिहाज़ से सबसे वरिष्ठ शायर थे। लेकिन इसके बावजूद मुशायरे की सदारत बहुत ही जूनियर शानदार शकील आज़मी को दी गई। हद तो तब हो गई जब शकील आज़मी ने ये जानते हुए कि समर कबीर सा. के अलावा स्टेज और भी ऐसे शायर मौजूद हैं,जो उससे सीनियर हैं, उसने सदारत करना मंज़ूर कर लिया। इस तरह उर्दू अकादमी ने न सिर्फ समर कबीर सा. का बल्कि वहां मौजूद उन सभी शायरों का अपमान किया जो शकील आज़मी से सीनियर थे। अपमान का ये सिलसिला यहीं नहीं रुका। जब मुशायरा शुरू हुआ तो शायरों को उर्दू अकादमी के पोस्टर पर छपे शायरों के फोटो की सिक्वेंस के हिसाब से पढ़ाया गया और पेमेंट भी सीनियरिटी का ध्यान रखे बगैर किया गया। अकादमी ने हमेशा की तरह उज्जैन में भी लोकल शायरों पर ये पाबंदी लगा दी कि वे अपनी दो ग़ज़लों से सिर्फ 5-5 शेर से ज़्यादा नहीं पढ़ें। इंदौर में भी अकादमी ने यहां के शायरों पर ऐसी ही पाबंदी लगाई थी और एक अखबार ने इसे प्रमुखता से छापा भी था।
उर्दू अकादमी को ये जवाब देना चाहिए कि जहां भी वो आल इंडिया मुशायरा करती है, वहां के लोकल शायरों पर पाबंदी क्यों लगाती है? उसने लोकल और आल इंडिया शायरों की शायरी में कौन सा ऐसा बुनियादी फर्क देखा जिसकी वजह से वो लोकल शायरों को आल इंडिया शायरों से कमतर मानती है और उन्हें मुशायरा पढ़ने की औपचारिकता के तौर पर ही बुलाती है। उज्जैन में भी उसने यही किया और वहां के शायरों को भी अप्रत्यक्ष रूप से अपमानित किया।
रिवायत का पालन करवाएं–
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अभी तक तो मुशायरों की यही रिवायत रही है कि हमेशा सबसे सीनियर शायर ही मुशायरे की सदारत करता है। लेकिन लगता है कि उर्दू अकादमी के मार्डन अधिकारियों को उर्दू मुशायरे की इस रिवायत और तहज़ीब का ज़रा भी इल्म नहीं है। अगर ऐसे ही लोग उर्दू अकादमी चलाते रहेंगे तो यकीन जानिए ये हमारी तहज़ीब से जुड़े इस अहम प्रोग्राम की रिवायत का सत्यानाश कर देंगे। सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों को फौरन अकादमी से दूर भेजे और ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करे जो मुशायरों की रिवायत को जानता-समझता हो। अगर ऐसा नहीं होता तो स्थानीय शायरों और श्रोताओं की ये ज़िम्मेदारी है कि वो उर्दू अकादमी को इस रिवायत की याद दिलाएं और उसका पालन करवाए। वर्ना वो दिन दूर नहीं जब हम किसी नाच-गाने वाले या कामेडियन को मुशायरे की सदारत करते देखें।
उर्दू अकादमी को देखना चाहिए थी समर अकादमी-
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17 अगस्त को उर्दू अकादमी के जो अधिकरी उज्जैन का मुशायरा संपन्न करवाने गये थे, उन्हें समर कबीर सा. के घर ज़रूर जाना चाहिए था। अगर वो वहां जाते तो पता चलता कि तंग गलियों के एक मोहल्ले में एक 7×8 के टूटे-फूटे से कमरे में बैठा एक बूढ़ा आदमी दुनिया भर के लोगों को कैसे शायरी सिखाने की अकादमी चला रहा है। जहां प्लास्टर उखड़ी दीवारों पर चिपके गत्ते के टुकड़े भी उस कमरे में होने का इसलिए गर्व करते हैं कि वो भी इस अकादमी का हिस्सा हैं।
टूटा-फूटा वो कमरा किताबों से भरा है और उसमें पड़ा है एक तख़त..जो कभी पलंग बनकर सोने के काम आता है तो कभी डायनिंग टेबल में तब्दील हो जाता है। आप कमरे में बमुश्किल तीन कुर्सियां किसी तरह रखकर बैठने की जगह बना सकते है। इस तंग से कमरे में रहने वाले आदमी को लोग समर कबीर के नाम से जानते हैं जो 67 की उम्र में कई बीमारियों का शिकार है। हर माह दवाइयों का खर्च ही पांच हज़ार रुपए का है। आंखों पर सबसे आखिरी नंबर का चश्मा है और उससे भी बहुत कम दिखता है। इसलिए मोबाइल पर मैसेज पढ़ने के लिए चश्मे के साथ हाथ में बिल्लोरी कांच रखना पड़ता है। तब कहीं जाकर वो मैसेज पढ़ पाते हैं। लेकिन इतनी जिस्मानी तकलीफ़ों के बावजूद ग़ज़ल कहने और सिखाने को जो जज़्बा है, वो उनमें कमाल का है। क्योंकि वो कोई सरकारी अकादमी नहीं हैं, जहां सिर्फ औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं। वो वाकई अदब की सच्ची अकादमी हैं जिनसे अब तक सैकड़ों शायर इस्तफ़ादा हासिल कर चुके हैं और सैकड़ों अभी भी कर रहे हैं।
अल्लाह समर कबीर साहब को अच्छी सेहत और लंबी उम्र अता फ़रमाए.. और उर्दू अकादमी को ऐसे गुणी शख़्स की क़द्र करने की अक्ल दे जो इस उम्र में भी ग़ज़ल की रौशनी लोगों तक पहुंचाने का काम पूरी शिद्दत से किए जा रहा है..। उस्ताद समर कबीर साहब, बेशुमार सलाम।
✍️ अखिल राज
पत्रकार-लेखक-शायर