
ग़ज़ल
अंधे गूंगे बहरे लोग।
निकले कितने झूठे लोग।।
ऐसे वैसे कैसे लोग।
कंधे पर हैं बैठे लोग।।
सबसे झुककर मिलते थे।
कितने थे वो ऊंचे लोग।।
आज सियासत में यारो।
मिलते कब हैं अच्छे लोग।
मंजिल तक पहुंचाने को।
बन जाते थे रस्ते लोग।।
पलभर में रंग बदलते हैं।
गिरगिट जैसे दिखते लोग।।
धूप बने फिरते हैं सब।
कब होते हैं साए लोग।।
जो हक की हैं बातें करते।
ऐसे हैं बस थोड़े लोग।।
देखो जान न दे दें अपनी।
खुद से हैं उकताए लोग।।
एक नजर उसने क्या देखा।
देख हमें इतराए लोग।।
देख सवारी राजा की।
हैं कितने घबराए लोग।।
अपनों से ही छल करते।
दिल के कितने मैले लोग।।
कितने नाच नचाते हैं।
बाबाजी के चेले लोग।।
अच्छे दिन कब आएंगे।
देखें कब तक सपने लोग।।
सबके मन की करते थे।
होते थे वो कैसे लोग।।
दर्द नहीं है कुछ सीने में।
पत्थर से पथरीले लोग।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094