‘अब नदियों पर संकट है, सारे गाँव इकट्ठा हों’
- ऐतिहासिक पल: जब सोनम वांगचुक ने डॉ. अतुल शर्मा के साथ मिलकर गाया उन्हीं का लिखा जनगीत.....नदी तू बहती रहना...सारा सभागार तालियों से गूंज उठा

टाउन हॉल देहरादून, शाम लगभग पांच बजे:
लद्दाख़ से आये प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण व्यक्तित्व सोनम वाग्चुक। छोटे से कद का बड़ा आदमी मेरे सामने था। बहुत सरल और सहज लद्दाख़ी चेहरा। वहीं की पोशाक पहने हुए। लोग उनसे हाथ मिलाने आते और मोबाइल से फोटो खिंचवाते। कार्यक्रम उनके आने पर शुरू हुआ। प्रसिद्ध चिपको नेता पर्यावरण विद् सुन्दर लाल बहुगुणा की चौथी पुण्यतिथि थी। इसमे लोककवि घनश्याम शैलानी और दीक्षा जी को हिमालय गौरव सम्मान मिलना था। साथ ही हिमालय को केंद्र मानकर चर्चा भी थी। उसमें मुझे अपना लिखा एक जन गीत सुनाने के लिए आमंत्रित किया गया था।
औपचारिकता के बाद संचालक ने मेरा नाम लिया। मैं मंच पर गया और सीधे सोनम वांगचुक के पास पहुच गया। मैने पूरे सम्मान और आदर भाव से उनसे कहा कि मै अपना एक जनगीत प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह आन्दोलनों मे खूब गाया जाता है। तो क्या आप मेरे साथ इस जन गीत को गा सकेगे।
मेरे सारे संशयो को तोड़ कर वे तुरंत तैयार हो गये ।
यह संस्समरण था जो इतिहास बो गया। मैने और सोनम ने वह जन गीत गाया। लगातार लोगो ने पूरे समय तालियां बजायी । लोगो मे जोश भर गया। मै एक लाइन गाता जिसे सोनम ध्यान से सुनते और उसी धुन मे दोहरा देते।
गीत समाप्त हुआ तो उन्होने गले मिलकर कहा यही तो सच है।
जन गीत था,,, अब नदियों पर संकट है, सारे गाँव इकट्ठा हों, अब सदियों पर संकट है सारे गाँव इकट्ठा हों,,,, और दूसरा था, नदी तू बहती रहना।
दोनो गीत मैने नदी बचाओ आन्दोलन के लिए लिखे थे ।
जिस जन गीत के लिये बहुगुणा जी की दूसरी पुण्यतिथि पर दो साल पहले मेधा पाटकर ने मंच से कहा था कि यह जन गीत हम दस वर्षों से नर्मदा बचाओ आन्दोलन मे गाते है पर उनके लेखक से आज ही मिलना हुआ।
सोनम वांगचुक ने बहुत सादे शब्दों मे गहरी बातें कहीं कि सच को सच और झूठ को झूठ कहना ज़रूरी है।
कार्य क्रम मे वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा ने परिचय दिया।और मधु पाठक और कमला पंत ने परिचयात्मक वक्तव्य दिये।स्व विमला बहुगुणा की स्मृति मे दो मिनट का मौन रखा गया।संयोजन समीर रतूड़ी रहे व संचालक योगेश धस्माना थे।