
ऐसी मस्ती है दिखी उसके मिज़ाज में ।
साक़ी ने कुछ तो मिलाया है गिलास में।।
कल वो जब आया नशा सा तारी हो गया।
ऐसी ख़ुश्बू थी बसी उसके लिबास में।
मेरे रास्ते में अँधेरा कहीं, उजाला कहीं।
निकला हूँ मैं आज सूरज की तलाश में।।
वो जो चाहे तो हवाओं का रुख़ मोड़ दे।
पूरब से निकले चँदा मेरे क़यास में।।
नज़रें ना थीं चेहरे पे दिल में बसा लिया।
ये थी मौला की मुहब्बत सूर दास में।।
मैं तो हूँ काफ़ी अकेली पर ज़रा सुन लो।
तन्हा ही काफ़ी हूँ समय के अट्टहास में।।
जो फेहरिस्त होगी प्यासे क़लम कारों की।
मेरा भी होगा ज़िक्र उस प्यास – प्यास में।।
ख्वाहिश मेरी यही है कि दुनिया में आबरू दे।
रखना मुझको याद सभी अपनी अरदास में।।
डा. शाहिदा, प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)