
देहरादून: चैत के महीने की संक्रांति को, जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है, सर्दियों के मुश्किल दिन बीत जाते हैं, तब फूलदेई का त्योहार मनाने को गांवों में बच्चों की टोली एकत्रित हो जाती है। बच्चे सुबह-सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार जैसे जंगली फूल इकट्ठा करते हैं। इन फूलों को रिंगाल की टोकरी में सजाया जाता है। टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़ और चावल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं। इन फूलों और चावलों को गांव के घर की देहरी, यानी मुख्यद्वार पर डालकर लड़कियां उस घर की खुशहाली की दुआ मांगती हैं। इस दौरान एक गाना भी गाया जाता है जिसके बोल ‘फूलदेई, छम्मा देई…जतुकै देला, उतुकै सही…दैणी द्वार, भर भकार’… हैं।
उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई मुख्यमंत्री आवास में मुख्यमंत्री ने सपरिवार धूमधाम से मनाया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की उपस्थिति में मुख्यमंत्री आवास में रंग बिरंगे परिधानों में सजे बच्चों ने देहरी में फूल व चावल बिखेरकर पारंपरिक गीत ‘फूल देई छमा देई, जतुक देला, उतुक सई, फूल देई छमा देई, देड़ी द्वार भरी भकार’ गाते हुए त्योहार की शुरुआत की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने सभी बच्चों को आशीर्वाद देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों को फूल देई के त्योहार की हार्दिक बधाई व शुभकामनायें देते हुए देश व प्रदेश की सुख-समृद्धि की कामना की। उन्होंने कहा कि लोकपर्वों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है।